पद्मश्री प्राेफेसर दिगंबर हांसदा का जमशेदपुर में निधन, राजकीय सम्मान के साथ कल होगी अंत्येष्टि

Jharkhand News, Jamshedpur News, Prof Digambar Hansda: आदिवासी समाज के प्रमुख एवं जमशेदपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज करनडीह के पूर्व प्राचार्य रहे पद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा (81) का गुरुवार सुबह साढ़े नाै बजे करनडीह स्थित आवास पर निधन हो गया. वे कई माह से बीमार थे. शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा. सुबह 10 बजे अंतिम यात्रा पार्वती घाट के लिए रवाना हाेगी.

By Prabhat Khabar Print Desk | November 19, 2020 7:30 PM

Prof Digambar Hansda Dead: जमशेदपुर : आदिवासी समाज के प्रमुख एवं जमशेदपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज करनडीह के पूर्व प्राचार्य रहे पद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा (81) का गुरुवार सुबह साढ़े नाै बजे करनडीह स्थित आवास पर निधन हो गया. वे कई माह से बीमार थे. शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा. सुबह 10 बजे अंतिम यात्रा पार्वती घाट के लिए रवाना हाेगी.

प्रो हांसदा की पत्नी पार्वती हांसदा का काफी पहले स्वर्गवास हाे गया था. उनकी एक पुत्री तुलसी हांसदा का भी कुछ वर्ष पहले निधन हाे गया. प्रो हांसदा के निधन की सूचना मिलते ही पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, मंत्री चंपई साेरेन, विधायक संजीव सरदार, पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी, मेनका सरदार, उपायुक्त सूरज कुमार, एसएसपी एम तामिल वाणन समेत बड़ी संख्या में विभिन्न राजनीतिक दलाें के लाेग, शिक्षा क्षेत्र के प्रतिनिधि, स्थानीय बुद्धिजीवी व समाज के लाेग उनके आवास पर पहुंचे.

करनडीह स्थित सारजोमटोला निवासी दिगंबर हांसदा का जन्म 16 अक्तूबर, 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिला के घाटशिला स्थित डोभापानी (बेको) में हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई. मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाइस्कूल से पास की. वर्ष 1963 में रांची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और 1965 में एमए की परीक्षा पास की. एलबीएसएम कॉलेज के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही. वे लंबे समय तक करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज में शिक्षक रहते हुए टिस्काे आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी और भारत सेवाश्रम संघ, सोनारी से भी जुड़े रहे.

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साहित्य अकादमी के सदस्य

प्रो हांसदा का जनजातीय और उनकी भाषा के उत्थान में अहम योगदान रहा. उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं. वे केंद्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान व साहित्य अकादमी के सदस्य रहे. कई पाठ्य पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया. इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स तैयार किया. भारतीय संविधान का संथाली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद किया.

प्रो हांसदा कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे. उन्होंने सिलेबस की किताबों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया. इसके अलावा राज्य सरकार के अधीन उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स तैयार किया. वर्ष 2017 में दिगंबर हांसदा आइआइएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाये गये थे. प्रो हांसदा ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संथाली भाषा) के सदस्य रहे.

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सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेज मैसूर, इस्टर्न लैंग्वेज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जोहारथन कमेटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे, जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संथाली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नयी दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रह चुके थे. दिगंबर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल व ओड़िशा में भी काम किया.

पद्मश्री पर खुश हुए, बोले : अभी काफी कुछ करना है

वर्ष 2018 में प्रो हांसदा को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्म श्री से सम्मानित किया था. पद्म श्री मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एक पड़ाव मात्र है. सम्मान की घोषणा से अच्छा लग रहा है और यह खुशी की बात है. अभी संथाली भाषा के लिए बहुत कुछ करना है. उनकी प्रमुख पुस्तकों में सरना गद्य-पद्य संग्रह, संथाली लोककथा संग्रह, भारोतेर लौकिक देव देवी, गंगमाला शामिल हैं.

Posted By : Mithilesh Jha

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