अच्छी खबर: अब प्लास्टिक के कचरे से चलेगी गाड़ियां, डीजल होगा तैयार, CSIR ने विकसित की तकनीक

jharkhand news: एक टन प्लास्टिक कचरे से 700 लीटर डीजल बनेगा. इस डीजल का उपयोग वाहनों के साथ-साथ जेनरेटर चलाने में किया जा सकेगा. सीएसआईआर ने एक तकनीक विकसित की है. फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देहरादून में इसकी शुरुआत हो गयी है.

By Prabhat Khabar Print Desk | December 2, 2021 4:52 PM

Jharkhand news: पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों के बीच काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने राहत भरी खबर दी है. CSIR ने एक तकनीक विकसित की है, जिससे देश में अब प्लास्टिक के कचरे से डीजल तैयार किया जा सकेगा. इस डीजल का उपयोग गाड़ियों के साथ-साथ जेनरेटर चलाने में किया जा सकेगा. यह जानकारी सीएसआईआर के चीफ साइंटिस्ट सह इनोवेशन मैनेजमेंट एंड डायरेक्टोरेट डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने दी.

हाल ही में जमशेदपुर स्थित CSIR-NML पहुंचे श्री सिंह ने प्रभात खबर से खास बातचीत में बताया कि फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देहरादून में इसकी शुरुआत की गयी है. प्लांट से निकलने वाले डीजल का इस्तेमाल सेना के वाहनों और सरकारी संस्थानों के अधिकारियों- कर्मचारियों के वाहनों में होगा.

डॉ सिंह ने बताया कि एक साल तक सफलतापूर्वक उत्पादन के बाद इसका कॉमर्शियल उत्पादन शुरू होगा. इस खोज के बाद प्लास्टिक कचरे को हानिकारक वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि एक संसाधन के रूप में उपयाेग किया जायेगा. साथ ही कहा कि प्लास्टिक की बोतल, ढक्कन, कप, टूटी बाल्टी, मग, टूथपेस्ट ट्यूब समेत अन्य पॉली ओलेफिन उत्पादों के एक टन कचरे से स्वच्छ श्रेणी का करीब 700 लीटर डीजल बन सकता है. इस तकनीक को सीएसआईआर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून के वैज्ञानिकों ने गेल इंडिया लिमिटेड के सहयोग से विकसित किया है.

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कैसे बनता है कचरे से डीजल

प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने के लिए सबसे पहले कचरे को ब्यूटेन में बदला जाता है. इससे ब्यूटेन को आइसो ऑक्टेन में तथा अलग-अलग प्रेशर व तापमान से आइसो ऑक्टेन को डीजल में बदला जाता है. 400 डिग्री सेल्सियस तापमान पर डीजल का निर्माण होगा. इस तकनीक से तैयार डीजल की कीमत बाजार में वर्तमान में मिल रहे डीजल से करीब आधे होगी.

पॉलिमर एक बार बन जाने के बाद नहीं होती है रीसाइक्लिंग

CSIR के चीफ साइंटिस्ट डॉ सिंह ने कहा कि पॉलिमर भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है. कारण एक बार पॉलिमर बन जाता है, तो उसकी रीसाइक्लिंग नहीं हो पाती है क्योंकि प्लास्टिक के ऊपर करीब 300 सालों तक कीटाणु का कोई असर नहीं होता है. करीब 70 फीसदी पॉली ओलेफिन पॉलिमर के कचरे को डीजल में ट्रांसफर किया जाता है.

2070 तक भारत में शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को मिलेगा बल

ग्लासगो में 26वें अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2070 तक भारत में शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की घोषणा की है. वहीं, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन कमी लाने का भी लक्ष्य तय किया गया है. ऐसे में यह प्रयास कार्बन तीव्रता में कमी लाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा. कारण प्लास्टिक से डीजल बनाने की तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है.

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रिपोर्ट: संदीप सावर्ण, जमशेदपुर.

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