देवघर : आरएन बोस लाइब्रेरी में चरणदास चोर का नाट्य मंचन, चोरी मेरा धर्म, सच्चाई मेरी ईमान

देवघर : शहर स्थित आरएन बोस लाइब्रेरी के रवींद्र मंच पर रविवार को पांच दिवसीय नाट्य उत्सव का तीसरा दिन था. उत्सव के तीसरे दिन लेखक विजय दास द्वारा रचित प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर जो (पदभूषण) से सम्मानित हैं. नाटक चरण दास चोर का मंचन रांची की संस्था एक्सपोजर मंचन द्वारा किया गया. आर्ट कलाकारों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 14, 2019 7:20 AM
देवघर : शहर स्थित आरएन बोस लाइब्रेरी के रवींद्र मंच पर रविवार को पांच दिवसीय नाट्य उत्सव का तीसरा दिन था. उत्सव के तीसरे दिन लेखक विजय दास द्वारा रचित प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर जो (पदभूषण) से सम्मानित हैं. नाटक चरण दास चोर का मंचन रांची की संस्था एक्सपोजर मंचन द्वारा किया गया.
आर्ट कलाकारों ने नाटक के माध्यम से सिस्टम के कई बुराइयों व अच्छाइयों पर फोकस किया. जहां चोरी का आतंक, गरीबों पर जुल्म , साहूकारों का आतंक व राजनेताओं पर चुटीले संवाद में प्रहार किया.
दर्शक कभी जोर के ठहाके लगाने पर तो कभी भावुक होने पर मजबूर हुए. वहीं नाटक में एक पेशेवर चोर की कहानी है. जो चोरी की घटनाओं को अंजाम देते हुए भी सत्य के साथ हमेशा रहता है, जिसके वजह से उसे एक दिन जान तक गंवानी पड़ती है.
दूसरे चरण में लांग मार्च नाटक का हुआ मंचन
प्रवीर गुहा रचित सुदीप नाटक लांग मार्च का मंचन किया गया. इसमें कछुआ व खरगोश के माध्यम से उच्च जाति व छोटी जाति के बारे में बताया गया. कैसे कछुआ बार बार रेस में जीत जाता है. वहीं खरगोश सोने की वजह से हार जाता है. लेकिन लगातार आठ बार खरगोश हारने के बाद नौवीं बार रेस में सोने का नहीं संकल्प लेता है.
इन कलाकारों ने निभायी भूमि
इस नाटक के संगीत संयोजक मृणालिनी ठाकुर एवं अजीत श्रीवास्तव वस्त्र सुनीता कुमारी, प्रकाश, सज्जा दीपक चौधरी, नृत्य संरचना मुकेश कुमार एवं मंकी केडिया मंच सज्जा चरण दास के निर्देशन में संजय लाल ने किया.
वहीं भूमिका राजा पांडेय, रोहित पांडेय, अवनीश भारद्वाज, नितेश कुमार, तन्वी कोमल, रिया, सौरभ, अंकुश ,आकाश दीप, यशराज ओझा, विशाल शुभम, बीपीन राशेशन, वैशाली, लक्ष्मी, सिद्धार्थ,सोनी, सरस्वती ने अहम भूमिका निभायी.
चरण को मौत की सजा से लोग हुए भावुक
चोर चरण दस की चोरी के आतंक से पूरा इलाका परेशान रहता है. साथ ही इलाके के आसपास के लोग चरण दास से डरते भी है. चरण दास एक दिन चोरी कर पुलिस के डर से भागने के क्रम में एक संत के आश्रम में घुस जाता है. संत को वहां चार वचन देता है.
वह कभी सोने के थाली में नहीं खायेगा, कभी भी हाथी पर बैठ कर जुलूस का नेतृत्व नहीं करेगा जो उसके सम्मान पर हो, कभी राजा नहीं बनेगा. साथ ही कभी किसी राजकुमारी से शादी नहीं करने का वचन देता है. वहीं उसके गुरु ने चरण दास से कभी झूठ नहीं बोलने का वचन लिया. जो की उसके जीवन में वरदान भी साबित हुआ व उसकी मौत का कारण भी बन गया.
एक दिन चरण दास चोरी के लिये निकला था. तभी उसे रास्ते में एक गरीब आदमी से मुलाकात हो गयी. गरीब आदमी चरण दास को देख कर डरने लगा, बिलखते हुए कहा कि तीन दिन से उसके बच्चे ने कुछ नहीं खाया हैं.
मेरे पास कुछ भी नहीं है. मेरी जान ले लो. चरण दास ने गरीब आदमी से पूछा क्यों ऐसा कह रहे हो. उसने साहूकार के द्वारा किये जा रहे जुल्म व सूद के चपेट में फंसे गरीबों के बारे में बतायी तो चरण दास ने साहूकार के पास जाकर पैसे मांगने की बात कहीं.
गरीब आदमी ने कहा कि साहूकार पैसे कभी नहीं देगा बल्कि जलील करेगा. साथ ही अपने पहलवानों से पिटवायेेगा भी. चरण दास ने कहा कि पहले तुम मांगों नहीं देगा तो हम देंगे.
मैं कभी झूठ नहीं बोलता. साहूकार ने गरीब आदमी को पैसा नहीं दिया व जलील कर दिया. चरण दास ने साहूकार के अनाज गोदाम में रखे सभी धान के बोरी चोरी कर गरीबों में बांट दिया. उसके बाद वो फिर अपने गुरु के आश्रम में पहुंचा.
गुरु ने कहा चरण दास तुम चोरी क्यों नहीं छोड़ते हो. इस पर चोर ने गुरुजी से कहा गुरुजी चोरी मेरा धर्म है और सच मेरी इमान इसे मैं नहीं छोड़ सकता. साथ ही चरण ने अगली चोरी की योजना सरकारी खजाने से करने की बात गुरु जी को बता दी.
इस पर गुरुजी ने काफी समझाया भी कहा इसमें तुम्हारी जान जा सकती है. नाटक में चरणदास के संवाद उसके दिल के अंदर की गहराई व रुढ़ीवादी परंपरा को चोट करते भाव ने कभी हंसाया तो कभी भावुक भी किया.
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