‘नहीं पता कि हमलोग भारत में हैं या नेपाल में…!’ खुली सीमा में 38 पिलर हो गए गायब, जानें ग्रामीणों की क्यों बढ़ी समस्या

भारत-नेपाल के बीच सीमांकन करनेवाली अधिकतर पिलर के गायब रहने के कारण दोनों देशों में मुश्किलें पैदा हो रही हैं. भारत-नेपाल की सुपौल जिले से लगी 57 किलोमीटर खुली सीमा है. इसमें 30 किलोमीटर के आसपास का भाग कोसी नदी से घिरा है. वर्ष 2000 में जब नेपाल में राजतंत्र के खिलाफ माओवादी आंदोलन चरम पर था, तो भारत-नेपाल की खुली सीमा पर पहली बार एसएसबी-18 बटालियन को लगाया गया था. आज यहां सीमा की सुरक्षा के लिए एसएसबी-45वीं बटालियन की तैनाती केंद्र सरकार की ओर से की गयी है.

By Prabhat Khabar | May 28, 2021 2:53 PM

संजय सिंह,वीरपुर(सुपौल): भारत-नेपाल के बीच सीमांकन करनेवाली अधिकतर पिलर के गायब रहने के कारण दोनों देशों में मुश्किलें पैदा हो रही हैं. भारत-नेपाल की सुपौल जिले से लगी 57 किलोमीटर खुली सीमा है. इसमें 30 किलोमीटर के आसपास का भाग कोसी नदी से घिरा है. वर्ष 2000 में जब नेपाल में राजतंत्र के खिलाफ माओवादी आंदोलन चरम पर था, तो भारत-नेपाल की खुली सीमा पर पहली बार एसएसबी-18 बटालियन को लगाया गया था. आज यहां सीमा की सुरक्षा के लिए एसएसबी-45वीं बटालियन की तैनाती केंद्र सरकार की ओर से की गयी है.

खुली सीमा की सुरक्षा में एसएसबी

एसएसबी की 18 बीओपी इस खुली सीमा की सुरक्षा में दिन-रात लगी है. इसमें बसमतिया, सात आना, फतेहपुर, शैलेशपुर, भीमनगर, रानीगंज, साहेवन, पिपराही, ढांढा, टेढ़ी बाजार, नरपतपट्टी, सिमरी घाट आदि बीओपी शामिल है, जो नदियों में बोट व सर्च लाइट के सहारे सीमा की सुरक्षा में लगे हैं. भारत-नेपाल सीमा के सीमांकन के लिए इन 57 किलोमीटर खुली सीमा में 96 पिलर रहने व इसमें से 38 पिलर के गायब होने की बात कही जा रही है. सीमांकन के लिए लगाये गये अधिकतर पिलर कोसी नदी के भीतर है. इनमें से अधिकतर पिलर या तो नदी के कटाव में विलीन हो गये अथवा कोसी नदी में बहकर भारी मात्रा में आनेवाले सिल्ट के नीचे दब गये, जो अब दिखाई नहीं दे रहे हैं.

पिलर का गायब होना बनी समस्या

लोगों का कहना है कि कोसी नदी कटाव के लिए जानी जाती है और हर साल दिशा बदलती रहती है. परिणाम स्वरूप पिलर एक-एक कर कटाव व सिल्ट के नीचे दब चुके हैं. सीमांकन के लिए लगाये गये पीलर के गायब रहने के कारण 08 से 19 किलोमीटर क्षेत्र में तटबंध के भीतर के गांव डुमरी मिलिक, गोबर्गरहा, छतौनी, परसाही, चौदीप, टेढ़ी बाजार आदि के लोगों को यह जानकारी नहीं है कि वह भारतीय प्रभाग में हैं या नेपाल प्रभाग में आवासित हैं. पिलर के गायब हो जाने के कारण उनके लिए सीमा निर्धारण कठिन हो चुका है. वहीं नेपाल के कई गांव भारतीय प्रभाग की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं.

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नो मैंस लैंड की पहचान हुई मुश्किल

दोनों देश के सीमा पिलर संख्या के बीच में जो खाली जगह होता है, इसको नो मैंस लैंड कहा जाता है. इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि करने का अधिकार दोनों देशों में से किसी के पास नहीं होता है. पिलर के गायब रहने से नो मैंस लैंड की पहचान भी मुश्किल हो गयी है. कभी-कभी इसको लेकर दोनों देशों के बीच समस्या भी आ जाती है.

कहते हैं सीओ

बसंतपुर सीओ विद्यानंद झा ने बताया कि बसंतपुर अंचल क्षेत्र अंतर्गत सीमा से गायब पिलरों के लिए सरकार की ओर से सर्वे शुरू किये जाने का निर्देश नहीं मिला है.

कहते हैं कमांडेंट

भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी-45वीं बटालियन के कमांडेंट एचके गुप्ता का कहना है कि कोसी नदी के क्षेत्र में दोनों देशों की सीमा को चिह्नित करनेवाली बड़ी संख्या में पिलर नदी के कटाव व बालू के नीचे दब जाने के कारण गायब है. सर्वे ऑफ इंडिया की टीम इसकी जांच में लगी है.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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