राजेंद्र प्रसाद के गांव में आज भी स्नातक की पढ़ाई के लिए 10 किलोमीटर चलना पड़ता है पैदल

गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की धरती पर आधी आबादी सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रही है.

By Prabhat Khabar | September 30, 2020 2:30 AM

जीरादेई : गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की धरती पर आधी आबादी सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रही है. चुनाव के वक्त हर दल लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था के लिए आश्वासन देते है. चुनाव जीतने के बाद यह मुद्दा उनके एजेंडे से गायब हो जाते है.

देशरत्न के नाम से विख्यात राजेंद्र बाबू ने खुद, तो उच्च शिक्षा ग्रहण कर देश का नाम रोशन किया. लेकिन बाबू की जन्म धरती पर उनके देखे हुए सपने साकार नहीं हुए. आलम यह है कि आज राजेंद्र बाबू के क्षेत्र आधी आबादी उच्च शिक्षा से वंचित हो रही हैं. देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के पैतृक क्षेत्र में एक भी कॉलेज नहीं जहां स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती हो. जो हाइस्कूल है उसे उत्क्रमित कर इंटर तक किया गया है. उसमें भी सभी विषयों की पढ़ाई शिक्षक के अभाव में नहीं होती. केवल खानापूर्ति के लिए उत्क्रमित कर दिया गया है. इस इलाके में हालात यह है कि लड़कियां 10 किलोमीटर की दूरी तय करके कॉलेजों में पढ़ने जाती हैं.

ऐसे में ज्यादातर लड़कियां, तो प्लस टू या इससे आगे की कक्षाओं में पढ़ाई करने से वंचित रह जाती हैं. उच्च शिक्षा से वंचित लड़कियों को शादी के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. इनके माता-पिता परेशान होते हैं. आज भी यहां के विद्यार्थी उच्च शिक्षा से वंचित होने का दंश झेल रहे हैं. उच्च शिक्षा के लिए छात्र-छात्राओं को 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तय कर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है. प्रखंड के 16 पंचायतों में प्राथमिक, मध्य एवं उच्च विद्यालय मिलाकर 111 विद्यालय है. पूरे प्रखंड की आबादी लगभग दो लाख से अधिक है.

जीरादेई गांव में एक वित्तरहित डिग्री कॉलेज देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम पर है, परंतु इसकी स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. उच्च शिक्षा से वंचित लड़कियों की शादी में परेशानी हो रही है. लड़के तो सीवान, पटना या यूपी के देवरिया, बनारस, गोरखपुर आदि जाकर पढ़ रहे हैं. लेकिन लड़कियों के लिए परेशानी है. यही कारण है कि हर साल करीब 10 हजार मैट्रिक पास करने वाली लड़कियों में करीब पांच से सात हजार इंटर पास करती हैं. कॉलेज न होने से स्नातक पास करने वाली लड़कियों की संख्या घटकर एक हजार से भी कम हो जाती है. पीजी करने वाली बच्चियों की संख्या सैकड़ों में होती है. लिहाजा धीरे-धीरे इस इलाके में आधी आबादी के बीच ज्ञान का प्रकाश धीमा पड़ने लगा है.

posted by ashish jha

Next Article

Exit mobile version