शव आते ही गांव में फिर हृदय विदारक चीख रोते-बिलखते लोगों ने जनाजे पर डाली मिट्टी

सहरसा : दिल्ली के अनाज मंडी स्थित जैकेट फैक्ट्री में रविवार की रात आग लग जाने से नरियार के सात व नवहट्टा के एक युवक की दर्दनाक मौत हो गयी थी. मौत के तीन दिनों बाद मंगलवार की रात नरियार के मृतक मो फरीद व नवहट्टा के अफसाद का शव गांव पहुंचा. शव के गांव […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 12, 2019 8:27 AM

सहरसा : दिल्ली के अनाज मंडी स्थित जैकेट फैक्ट्री में रविवार की रात आग लग जाने से नरियार के सात व नवहट्टा के एक युवक की दर्दनाक मौत हो गयी थी. मौत के तीन दिनों बाद मंगलवार की रात नरियार के मृतक मो फरीद व नवहट्टा के अफसाद का शव गांव पहुंचा. शव के गांव पहुंचते ही गांववालों के कदम एक बार फिर उस पीड़ित परिवार के घर की ओर बढ़ गये. पूरे गांव में एक बार फिर मातमी सन्नाटा छा गया.

हर किसी की जुबान पर एक बार फिर दिल्ली अग्निकांड की कहानी सामने आ गयी. वे इन पीड़ित परिवारों की बेचारगी पर तरस जताने लगे. लोग फैक्ट्री मालिक जुबेर को 43 मौतों का जिम्मेवार बताने लगे और उसे भी फांसी की सजा दिलाने की मांग करने लगे.
ताबूत देखते ही फफक-फफक कर रोने लगे अपने: दिल्ली अग्निकांड में झुलस कर मरने वालों कुल 43 लोगों में सिर्फ सहरसा के नरियार गांव के सात और नवहट्टा के एक मजदूर थे. कुछ मृतकों के परिजन तो जानकारी मिलते ही दिल्ली भागे तो कुछ के सगे-संबंधियों ने वहीं पहचान कर ली.
इधर जिला प्रशासन ने एक अधिकारी को दिल्ली भेजकर शवों को लाने की जिम्मेदारी दी. जिन्होंने शवों के साथ बुधवार को दिल्ली से सहरसा आने की सूचना दे दी थी. बुधवार की सुबह जैसे ही ताबूत फरीद के घर पहुंचा. उसके परिजन फफक-फफक कर रोने लगे.
ताबूत खुलने के साथ ही उनके मुंह से बरबस निकल पड़ा कि यह कौन सा दिन दिखा दिया तुमने बेटा… मेरे होते हुए तुम पहले क्यों चले गये… तुम थे तो घर रौशन था… अब इस बूढ़े मां-बाप और परिवार को कौन देखेगा. पिता के इस करूण क्रंदन को सुन वहां मौजूद परिजन व ग्रामीणों की आंखें भी छलक गयी. बाप के सामने बेटे के पड़े शव को देख उनका भी कलेजा फट गया.
चाह कर दिलासा भी नहीं दे पा रहे थे लोग: इधर शव को देखते ही महिलाओं की चीख-चीत्कार पूरे गांव को गम में डूबा रही थी. छाती पीट-पीट कर बस चिल्लाये जा रही थी. अल्लाह! ये क्या कर दिया. मेरे लाल को इस उमर में क्यों छीन लिया. अभी तो उसने दुनिया को ठीक से देखा भी नहीं था.
उसके बदले हमें उठा लेते. ये कैसा जुल्म कर दिया. अब हमें कौन देखेगा. अपने बेटे को खोने वाली महिलाओं की चीख सुन हर कोई व्यथित व द्रवित हो रहा था. हर कोई उसे दिलासा देना चाह रहा था. ढ़ांढ़स बंधाना चाह रहा था. सांत्वना देना चाह रहा था. लेकिन किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल पा रही थी. वे सिर्फ इतना ही कहते कि क्या ढ़ांढ़स दिलायें. जवान बेटे की लाश किसी मां-बाप को कितना दुखी करती है. यह वही मां बाप-जानता है.

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