रिक्शा चालक . फुटपाथ पर कट रही जिंदगी रहने को घर नहीं, हिंदोस्तां हमारा
शहर में मरंगा, जेल चौक, लाइन बाजार, खुश्कीबाग में रैन बसेरा तो बने हैं. किंतु ये रैन बसेरा जजर्र व सुविधा विहीन हैं. यहां रिक्शा चालकों का ठहरना फुटपाथ पर रहने जैसा है. लिहाजा इन रैन बसेरों का उपयोग नहीं के बराबर ही होता है. फलत: दूरदराज ग्रामीण इलाकों से रोटी की तलाश में आये […]
शहर में मरंगा, जेल चौक, लाइन बाजार, खुश्कीबाग में रैन बसेरा तो बने हैं. किंतु ये रैन
बसेरा जजर्र व सुविधा विहीन हैं. यहां रिक्शा चालकों का ठहरना फुटपाथ पर रहने जैसा
है. लिहाजा इन रैन बसेरों का उपयोग नहीं के बराबर ही होता है. फलत: दूरदराज ग्रामीण
इलाकों से रोटी की तलाश में आये गरीब रिक्शा चालक खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं.
बंद हो गयीं सस्ती रोटी की दुकानें
कुछ वर्ष पूर्व रिक्शा चालकों एवं मजदूरों के लिए शहर ही नहीं जिले के सभी प्रखंडों में भी
सस्ती रोटी दुकानों की व्यवस्था सरकार की ओर से की गयी थी. इस दुकान में एक से दो
रुपये में पेट भर भोजन कर लेते थे. किंतु हाल के वर्षो में अधिकांश दुकानें बंद हो गयी.
लिहाजा रिक्शा चालक अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च कर
देते हैं. उसके बावजूद उन्हें पेट भर पौष्टिक भोजन नसीब नहीं हो पाता है.
कहते हैं रिक्शा चालक
जलालगढ़ मटिहारी के टेंम्पो चालक मनोज कुमार ने बताया कि हम गरीबों की चिंता किसे
है. जैसे-तैसे जिंदगी की गाड़ी को चला रहे हैं. रिक्शा चालक जागो ऋषि ने बताया कि ठंड
में ठिठुर कर रात बिताते हैं. किसी रिक्शा पर ही सो कर रात गुजार लेते हैं. रिक्शा
चालक दिनेश ने बताया कि हम गरीबों का खाने का क्या कभी सत्तू कभी लिट्टी खाकर
गुजारा कर लेते हैं और रिक्शा ही अपना डेरा है.
कई राज्यों में भोजन की व्यवस्था
रिक्शा चालकों ने बताया कि राजस्थान के जयपुर शहर में गरीबों, रिक्शा चालकों, ऑटो
चालकों के लिए बहुत ही अच्छी योजना चलती है. उस योजना का नाम है अक्षय पात्र,
जिसमें शाम के पांच से छह बजे के बीच शहर के हर एक वार्ड के नुक्कड़ पर अक्षय पात्र
की भोजन की गाड़ी खड़ी कर दी जाती है, जहां सभी गरीब, मजदूर, रिक्शा चालक, टेंपो
चालक आदि पांच रुपये जमा कर भोजन कर लेते हैं. भोजन में उन्हें रोटी, चावल, सब्जी
अचार एवं प्याज भी मिल जाता है. इस पौष्टिक भोजन के सहारे आराम से मेहनत कर लेते
हैं. रिक्शा चालकों ने बताया कि यदि यहां सस्ती रोटी की दुकानें भी शुरू हो जाये, परिवार
के लिए कुछ पैसे बच जायेंगे.
शहर के हजारों रिक्शा एवं ऑटो चालक
खानाबदोश की जिंदगी जीने को विवश
हैं. इनके लिए न तो खाने का इंतजाम है
और न ही रात गुजारने की व्यवस्था है.
ऐसे में इन्हें सिर्फ चलते ही रहना है. जहां
जो मिल गया, कुछ खा लिया. नींद लगी
तो रिक्शा एवं टेंपो पर ही झपकी मार ली.
इनकी बद से बदतर जिंदगी पर किसी को
तरस भी नहीं आ रही है, जबकि रिक्शा
एवं टेंपो से नगर निगम को अच्छा खासा
राजस्व की प्राप्ति होती है. इसके बावजूद
अब तक इनके जीवन स्तर को सुधारने की
दिशा में कोई कवायद नहीं की जा रही है.
फुटपाथ पर जिंदगी
शहर में लगभग 5000 से अधिक रिक्शा
चालक हैं और 10000 अधिक टेंपो
चालक. इनमें से अधिकांश को खुले
आसमान के नीचे सोने एवं फुटपाथों पर
खाने की बाध्यता है. सरकार की ओर
इनके लिए न तो सरकारी रोटी की दुकानें
हैं और न ही कोई रैन बसेरा. ऐसे में इन
लोगों का फुटपाथ ही मुख्य ठिकाना होता
है. कड़ाके की ठंड हो या फिर प्रचंड गरमी
या मूसलाधार बारिश, इन लोगों की
जिंदगी फुटपाथ पर ही कटती है.
नगर निगम के बजट में कुछ
नहीं
नगर निगम का बजट बुधवार को पास
हुआ. तमाम रिक्शा चालक एवं ऑटो
चालक टकटकी लगाये बैठे थे, कि बजट
में उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया
जायेगा. किंतु बजट में उनके लिए कुछ
खास नहीं किया गया, जिससे तमाम
रिक्शा चालकों एवं टेंपो चालकों में
मायूसी देखने को मिल रही है.