Bihar Election 2020: बिहार चुनाव 2020 में नौकरी का मुद्दा क्या सरकार बदल देगी? जानिए किस पार्टी का क्या है वादा और क्या है जनता की सोच

Bihar Election 2020: बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार चुनावी मुद्दा बन गया है. शायद यही कारण है सभी राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र में रोजगार को प्रमुखता से जगह दी गई. हालांकि इसकी शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल के द्वारा 10 लाख नौकरियां देने की घोषणा से हुई.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2020 9:10 AM

Bihar Election 2020: बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार चुनावी मुद्दा बन गया है. शायद यही कारण है सभी राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र में रोजगार को प्रमुखता से जगह दी गई. हालांकि इसकी शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल के द्वारा 10 लाख नौकरियां देने की घोषणा से हुई. राजद नेता और महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव के इस ऐलान पर बीजेपी ने पहले तंज कसा, लेकिन जब मुद्दे की तासीर देखी तो बीजेपी को भी 19 लाख रोजगार के मौके बनाने का वादा करना पड़ा. इसे लेकर दोनों दलों में तीखे बयानो के तीर चल रहे हैं.

लोजपा और बिहार में बने अन्य मोर्चों ने भी अपने घोषणा पत्र में नौकरी देने का जिक्र किया है. लेकिन चर्चा में है महागठबंधन का 10 लाख और भाजपा का 19 लाख. टीवी चैनल पर इस मुद्दे को लेकर बहस हो रही है. नौकरियों के ये वादे पूरे होंगे या नहीं, आज ये सवाल अहम नहीं है, अभी सवाल यह है कि चुनाव में सबसे अधिक संख्या में वोट डालने वाले बिहारी युवक बेरोज़गारी के मुद्दे को लेकर कितने गंभीर है. क्या नौकरी के मुद्दे को लेकर बिहार के युवा मतदान करेंगे ये सबसे बड़ा सवाल है.

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हाल ही में आई लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफ़पीआर) सर्वे के मुताबिक, बेरोजगारी के मामले में बिहार पूरे देश में दूसरे स्थान (27.6) पर है. यह केरल (35.2 फीसदी) के ठीक बाद 31 फ़ीसदी पर है. बिहार से कम बेरोजगारी दर तेलंगाना (27.4 फ़ीसदी) और तमिलनाडु में (24 फ़ीसदी है). दूसरी ओर गुजरात में 8.4 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ में 9 फ़ीसदी और मध्य प्रदेश में 10 फ़ीसदी बेरोज़गारी है. भारत में 15 से 29 साल के बीच बेरोजगारी दर 17.3 फीसदी है. यानी बिहार की स्थिति बहुत ही दयनीय है.

क्या सोचती है बिहार की जनता

लोकनीति-सीएसडीएस ने राज्य के 37 विधानसभाओं में 3700 से अधिक मतदाताओं के बीच चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण किया. इसके मुताबिक, विकास एक बार फिर सबसे बड़ा मुद्दा दिख रहा है, ऐसा 29 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा है. इस बार जो पहलू बहुत अहम है, वह है कि विकास को अन्य मुद्दे से कुछ गंभीर चुनौती मिलती दिख रही है (अगर हम इसे ऐसा कह सकते हैं तो) और वह मुद्दा है बेरोजगारी.

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हर पांच में से एक यानी 20 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि इस चुनाव में उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रोजगार की कमी है. पांच साल पहले, 2015 में, यह आंकड़ा नौ प्रतिशत के साथ बहुत नीचे था, जो कि आज की तुलना में आधे से भी नीचे था. साल 2015 में दूसरा सबसे अहम मुद्दा महंगाई का था, जो इस बार तीसरे स्थान पर है.

युवा मतदाता रोजगार पर ही करेगा वोट

बेरोजगारी के एक अहम चुनावी मुद्दा बनने और मुद्दों की श्रेणी में दूसरे स्थान पर पहुंचने का एक मुख्य कारण युवा मतदाता और उनकी अपेक्षाएं हैं. सर्वेक्षण ने पाया है कि 18 से 25 साल की आयु के मतदाता (इस आयु वर्ग के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या में एक-चौथाई से अधिक है) दूसरे आयु वर्ग के मतदाताओं की अपेक्षा रोजगार के मसले में अधिक ही चिंतित दिखे. इस आयु वर्ग और कुछ हद तक 26 से 35 साल की आयु के मतदाताओं की वजह से रोजगार अहम मुद्दा बन गया है.

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इस सर्वेक्षण में 18 से 25 साल आयु के मतदाताओं में हर चार में से एक से अधिक यानी 27 प्रतिशत ने तथा 26 से 35 साल आयु के मतदाताओं में हर पांच में से एक ने कहा कि वे रोजगार के मुद्दे पर मतदान करेंगे, जबकि 56 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में केवल 14 प्रतिशत ने ही कहा कि वे रोजगार के मसले पर मतदान करेंगे. वास्तव में यहां एक स्पष्ट रूझान दिख रहा है कि मतदाता जितना युवा होगा, उसके लिए रोजगार उतना ही अहम मुद्दा होगा.

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Posted By: Utpal Kant

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