बिहार में सांप्रदायिक मामलों में कार्रवाई की रफ्तार धीमी, कार्रवाई के लिए महीनों करना पड़ता है आदेश का इंतजार

राज्य के किसी इलाके में कोई सांप्रदायिक स्थिति या तनाव या ऐसी कोई घटना होने पर संबंधित थाना धारा 153-ए और 295-ए को जोड़ते हुए एफआइआर दर्ज करते हैं, परंतु इन दोनों धाराओं को जोड़ने के बाद ऐसे मामलों में आगे की कार्रवाई करने के लिए सरकार के स्तर से अनुमति लेना अनिवार्य हो जाता है.

By Prabhat Khabar | August 26, 2021 8:57 AM

कौशिक रंजन, पटना. राज्य के किसी इलाके में कोई सांप्रदायिक स्थिति या तनाव या ऐसी कोई घटना होने पर संबंधित थाना धारा 153-ए और 295-ए को जोड़ते हुए एफआइआर दर्ज करते हैं, परंतु इन दोनों धाराओं को जोड़ने के बाद ऐसे मामलों में आगे की कार्रवाई करने के लिए सरकार के स्तर से अनुमति लेना अनिवार्य हो जाता है.

ऐसे में राज्य के किसी थाने में इन दोनों धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज होने के बाद यह एफआइआर एसपी के स्तर से गृह विभाग और फिर विधि विभाग के पास समीक्षा के लिए आती है. विधि विभाग के स्तर पर समीक्षा के बाद यह फाइल मुख्य सचिव के स्तर तक जाती है.

अगर किसी स्तर पर समीक्षा के दौरान कोई मामला गलत पाया जाता है, तो उसे निरस्त कर दिया जाता है और इन दोनों धाराओं में कार्रवाई करने की अनुमति नहीं मिलती है. विधि विभाग में समीक्षा के लिए फाइल इतने स्तर से गुजरती है कि ऐसे एक-एक मामले की गहन समीक्षा में सात से 10 दिन तक का समय लग जाता है.

इससे अनावश्यक रूप से प्रक्रियात्मक विलंब होता है. इस कारण से इन दोनों धाराओं के अंतर्गत कार्रवाई करने के लिए अंतिम अनुमति प्रदान होने में महीनों का समय लग जाता है. विधि विभाग में 2019 से अब तक करीब 300 मामले सिर्फ अनुमति प्राप्ति के इंतजार में पड़े हुए हैं.

अंतिम स्तर पर अनुमति मिलने के बाद ही इन बेहद संवेदनशील मामलों में आगे की कार्रवाई हो पायेगी. राज्य के सभी एक हजार 65 थानों से महीने में ऐसे औसतन आठ से 10 मामले आते हैं.

बड़ी संख्या में गलत भी पाये जाते हैं मामले

विभागीय स्तर पर समीक्षा के दौरान धारा- 153ए एवं 295ए से जुड़े 25 से 30 फीसदी मामले गलत पाये जाते हैं. थाना स्तर पर बिना वजह या किसी छोटे-मोटे विवाद में भी इन दोनों धाराओं का प्रयोग करते हुए एफआइआर दर्ज कर दी जाती है.

कई बार दो गुटों के बीच सामान्य मारपीट या किसी आयोजन के दौरान किसी सामान्य झड़प में भी इन धाराओं को जोड़ देते हैं. इससे जबरदस्ती इन मामलों की संख्या बढ़ती है. इस मामले में कानूनविदों का कहना है कि अगर इन मामलों में डीएम के स्तर पर ही समीक्षा करके अंतिम रूप से अनुमति प्रदान करने की व्यवस्था कर दी जाये, तो ऐसे मामलों का निबटारा तेजी से होगा. सिर्फ कार्रवाई शुरू करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

ये हैं धाराएं

153ए और 295ए : अलग-अलग धर्म, समुदाय, भाषा, नस्ल से जुड़े लोगों या इनके समुदाय या गुटों के बीच विवाद, मारपीट, खून-खराबा या झड़प होती है, तो इन दोनों धाराओं का उपयोग किया जाता है.

किसी तरह का धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए या किसी धर्म का अपमान करने से संबंधित हरकत, अगर कोई व्यक्ति किसी तरह से करता है, तो उस पर भी धारा 295ए के तहत मामला दर्ज होता है. सीआरपीसी की धारा 196 के तहत राज्य सरकार को इन दोनों धाराओं में आगे की कार्रवाई करने या मुकदमा चलाने की अनुमति देने का अधिकार प्राप्त है.

Posted by Ashish Jha

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