Bihar Election 2020: बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे रही हैं राष्ट्रीय पार्टियां, तीन दशकों से दबदबा रहा है कायम….

अनिकेत त्रिवेदी, पटना: बिहार हिंदी पट्टी का अकेला ऐस प्रदेश है जहां तीन दशकों से क्षेत्रीय दला दबदबा कायम है. भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां इन क्षेत्रीय दलों के पीछे खड़ी हैं और अपना वजूद बनाये हुए हैं. सत्ता तक जाने के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना पड़ा है़. वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक कोई भी राष्ट्रीय पार्टी सूबे में अकेले सरकार नहीं बना पायी है, जबकि झारखंड व यूपी में राष्ट्रीय पार्टियों का भी दबदबा रहा है और इनकी सरकारें भी बनती रही हैं.

By Prabhat Khabar | September 26, 2020 9:17 AM

अनिकेत त्रिवेदी, पटना: बिहार हिंदी पट्टी का अकेला ऐस प्रदेश है जहां तीन दशकों से क्षेत्रीय दला दबदबा कायम है. भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां इन क्षेत्रीय दलों के पीछे खड़ी हैं और अपना वजूद बनाये हुए हैं. सत्ता तक जाने के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना पड़ा है़. वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक कोई भी राष्ट्रीय पार्टी सूबे में अकेले सरकार नहीं बना पायी है, जबकि झारखंड व यूपी में राष्ट्रीय पार्टियों का भी दबदबा रहा है और इनकी सरकारें भी बनती रही हैं.

1990 से मुख्य दलों का गणित…

वर्ष 1990 के चुनावी परिणाम को देखें तो बीजेपी तब से लेकर अब तक 100 सीटों का आंकड़ा नहीं पार कर पायी है़. वर्ष 1990 में बीजेपी को 39 सीटों और 2015 में 53 सीटें मिली थीं. बीच में साल 2010 में बीजेपी जब क्षेत्रीय पार्टी जदयू के साथ मिल कर लड़ी , तो उसे 91 सीटों पर सफलता मिली थी. वहीं, दूसरी तरफ 1990 के बाद से अब तक कांग्रेस 30 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पायी है़. वर्ष 1990 के विधानसभा में कांग्रेस को 71 सीटें मिली थीं, वो जनता दल के बाद दूसरी बड़ी पार्टी थी, लेकिन 1995 के विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस के पास मात्र 26 सीटें और 2010 में मात्र चार सीटों पर संतोष करना पड़ा, मगर फिर जब कांग्रेस को 2015 में महागठबंधन की क्षेत्रीय पार्टियां जदयू व राजद का सहारा मिला तो पार्टी 27 सीटें चली आयीं. इस हिसाब से देखें तो सूबे के चुनावी गणित में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों से जोड़ करने पर ही अधिकतम सफलता मिल पायी है़

जनता दल के बाद राजद-जदयू का सहारा

वर्ष 1990 के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टी जनता दल ही सबसे बड़ी पार्टी थी़ इस दौरान पार्टी को 122 सीटें मिली थीं. कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी़ इस दौरान उसे 71 सीटें मिलीं. उस समय बीजेपी को मात्र 39 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था़ आगे वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में भी जनता दल बड़ी पार्टी रही थी़ उसे 167 सीटें मिली थीं. उस समय भी बीजेपी को 41 और कांग्रेस को 29 सीटों से संतोष करना पड़ा था़ फिर 2000 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 21 और राजद ने 124 सीटें मिल गयीं. बीजेपी 67 सीट और कांग्रेस को 23 सीट से मिली.

2005 से बदल गया समीकरण

वर्ष 2005 के चुनावी परिणाम के बाद सारा समीकरण बदल गया़ अक्तूबर में आये चुनावी परिणाम में बीजेपी 55 और कांग्रेस को मात्र नौ सीटों से संतोष करना पड़ा था. जदयू ने लंबा उछाल लिया. पार्टी को 88 सीटें मिलीं. दूसरे नंबर पर राजद को 54 सीटें आयी थीं. फिर 2005 में जदयू व बीजेपी की सरकार बनने का फायदा दोनों पार्टियों को 2010 के चुनाव में मिला़ इस चुनाव में बीजेपी को 91 और जदयू को 115 सीटें मिल गयीं. फिर जब 2015 में दो क्षेत्रीय पार्टी जदयू और राजद के साथ कांग्रेस का समीकरण बना, तो इसका फायदा तीनों पार्टियों को मिली. राजद 80, जदयू 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिल गयीं और बीजेपी को मात्र 53 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था़

Also Read: Bihar Election 2020: बिहार में बिना अनुमति के राजनैतिक सभा, जुलूस, धरना या प्रदर्शन पर रोक, जानें कैसे मिलेगी इजाजत…
कब राष्ट्रीय पार्टियों को कैसे मिला लाभ

वर्ष 2000 : राजद ने 124 सीटों के साथ सरकार बनायी़ बीजेपी को 67 सीटें लाकर भी संतोष करना पड़ा.

वर्ष 2005 : जदयू 88 व बीजेपी ने 55 सीटें लाकर मिल कर सरकार बनायी.

वर्ष 2010 : जदयू के साथ बीजेपी लड़ी और जदयू को 115 और बीजेपी ने 91 सीटों के साथ मिलकर सरकार बनायी.

वर्ष 2015 : मिल कर लड़ने वाले राजद 80, जदयू 71 और कांग्रेस को 27 सीटें आयीं. बीजेपी 53 सीटों पर सिमट गयी.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

Next Article

Exit mobile version