शहाबुद्दीन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला आज
नयी दिल्ली : राजद के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुनायेगा. एक हत्याकांड में पटना हाइकोर्ट से शहाबुद्दीन को दी गयी जमानत को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम […]
नयी दिल्ली : राजद के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुनायेगा. एक हत्याकांड में पटना हाइकोर्ट से शहाबुद्दीन को दी गयी जमानत को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान फिर सवाल किया कि राजीव रोशन हत्याकांड के 17 महीने बाद भी शहाबुद्दीन को आरोप-पत्र की प्रति क्यों नहीं मुहैया करायी गयी. राजीव अपने दो छोटे भाइयों की हत्या का चश्मदीद गवाह था, जिसकी हत्या अदालत में उसकी गवाही से कुछ ही दिनों पहले कर दी गयी थी. न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने निचली अदालत के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि वह उन अदालतों में पेश आये अलग-अलग वाकयों से निकाले गये निष्कर्षों के आधार पर फैसला नहीं कर सकती, क्योंकि ऑर्डर शीट से पता चला है कि आरोपित को पुलिस रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराया गया था.
पीठ ने कहा कि हमें रिकॉर्ड के हिसाब से काम करना है. हमारा काम दुष्कर है. यह कैसा अभियोजन है कि निचली अदालत डेढ़ साल तक कहती रही कि पुलिस रिकॉर्ड मुहैया कराया जाये. राज्य सरकार नहीं कह सकती कि कार्रवाइयों में अभियोजन की कोई भूमिका नहीं होती. यह एकतरफा मामला नहीं हो सकता. पीठ ने राज्य सरकार के जवाब पर असंतोष जताया. उसने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम निचली अदालत की कार्रवाइयों को नहीं समझते.
प्रशांत भूषण ने कहा- गढ़ी हुई कहानी
दो अलग-अलग अपराधों में अपने तीन बेटों को गंवा चुके चंद्रकेश्वर प्रसाद के वकील प्रशांत भूषण ने शहाबुद्दीन की इस दलील का पुरजोर विरोध किया कि उन्हें निचली अदालत में दाखिल किये जाने के 17 महीने बाद तक आरोप-पत्र सहित केस रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराये गये.
उन्होंने कहा, यह गढ़ी हुई कहानी है, जो सुप्रीम कोर्ट में पहली बार कही गयी है, वह भी मौखिक तौर पर, बगैर किसी हलफनामे के. शहाबुद्दीन ने सत्र अदालत में अपराध पर संज्ञान लिये जाने के बाद निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी. तब ऐसी तो कोई चर्चा नहीं थी, बल्कि उन्होंने पुनर्विचार याचिका में आरोप-पत्र का ब्योरा था. इसलिए रिकॉर्ड नहीं मुहैया कराये जाने की दलीलें टिकने लायक नहीं हैं और इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए. प्रशांत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें इस साल फरवरी में शहाबुद्दीन की जमानत याचिका खारिज कर दी गयी थी. उन्होंने कहा कि उसमें भी शहाबुद्दीन ने आरोप-पत्र के ब्योरे दिये थे. इससे शीशे की तरह साफ हो जाता है कि शहाबुद्दीन के पास आरोप-पत्र और केस डायरी थी.
शहाबुद्दीन के वकील की दलील
शहाबुद्दीन के वकील शेखर नफाडे ने कहा कि ट्रायल में देरी की कोशिश जान-बूझ कर की जा रही थी और इसी वजह से उसे आरोप-पत्र मुहैया नहीं कराया गया. अभियोजन के पास यह साबित करने का कोई साक्ष्य नहीं है कि हत्या की साजिश में शहाबुद्दीन शामिल था. यह दुराग्रह है. राजीव रोशन की हत्या के समय वे न्यायिक हिरासत में थे. यह स्पष्ट करने का जिम्मा बिहार सरकार का है कि एक विचाराधीन कैदी जेल से बाहर गया और हत्या में शामिल हुआ.
उन्होंने आरोप लगाया कि शहाबुद्दीन को सीवान से भागलपुर जेल भेजना ट्रायल में देरी की एक और कोशिश थी. शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल भेजने का प्रशासनिक आदेश अवैध और गैर-कानूनी था. उन्हें स्पीडी ट्रायल का मौलिक अधिकार प्राप्त है, लेकिन किसी और जेल में भेज कर इसमें देरी करने की जान-बूझ कर कोशिश की गयी थी.
