जब बोले वशिष्ठ नारायण सिंह- तोहरा पास का बा कि हमरा के देब, चार आना पइसा बा त दे द

अरविंद ओझापटना : साल 1992 पटना में मुख्यमंत्री के आवास पर एक वृद्ध सा दिखने वाला व्यक्ति नहा-धोकर नये कपड़े पहने बैठा था. उसके सामने खाने की प्लेट थी. चारों तरफ अफसरों और नेताओं की भीड़ लगी थी. उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद वहां पहुंचे और उन्होंने उस व्यक्ति से भोजपुरी में पूछा कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 15, 2019 10:52 AM

अरविंद ओझा
पटना : साल 1992 पटना में मुख्यमंत्री के आवास पर एक वृद्ध सा दिखने वाला व्यक्ति नहा-धोकर नये कपड़े पहने बैठा था. उसके सामने खाने की प्लेट थी. चारों तरफ अफसरों और नेताओं की भीड़ लगी थी. उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद वहां पहुंचे और उन्होंने उस व्यक्ति से भोजपुरी में पूछा कि अउर कुछ दीं? इस पर उस व्यक्ति ने पहले तो लालू प्रसाद के चेहरे को गौर से देखा, फिर उल्टा ही प्रश्न किया, तोहरा पास का बा कि हमरा के देब?

फिर कहा-अच्छा ठीक बा, चार आना पइसा बा त दे द. अन्य लोगों के साथ स्वयं लालू प्रसाद भी हैरान, लेकिन उस व्यक्ति कि दार्शनिक बातें एक बार शुरू हुईं तो देर तक चलती रहीं और लोग सुनते रहे़ ये व्यक्ति थे महान गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह. नेतरहाट विद्यालय से बिहार टॉपर, एक साल में ही स्नातक करनेवाले और नासा, आइआइटी व आइएसआइ जैसी विश्वस्तरीय संस्थाओं में योगदान देकर अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाने वाले डॉ वशिष्ठ उस समय मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से जूझ रहे थे. डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले छह वर्षों से लापता थे. इसके बाद छपरा के डोरीगंज में कुछ युवकों ने उन्हें भिखारी जैसी अवस्था में देखने के बाद पहचान कर प्रशासन को इसकी खबर दी थी. वहां से उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने अपने आवास पर बुलाया था.

भोजपुर (बिहार) जिले के बसंतपुर गांव के रहनेवाले डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से डॉ जॉन एल केली के मार्गदर्शन में कम उम्र में ही एक अति कठिन टाॅपिक ’रिप्रोड्यूसिंग कर्नल्स एंड आॅपरेटर्स विद ए साइक्लिक वेक्टर’ पर 1969 में पीएचडी प्राप्त की.

बुलाया था डांटने, लेकिन भेज दिया अमेरिका पढ़ने

दिवंगत गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा को दिशा देने में उस समय के गणित के दो धुरंधर शिक्षकों की भूमिका काफी अहम थी. उनमें एक पटना के थे तो दूसरे यूरोपीय. वशिष्ठ नारायण सिंह नेतरहाट से 1963 में हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास करके पटना साइंस कालेज में पहुंचे. यहां उनके गणित के जाने माने शिक्षक प्रो बीकम भगत थे. क्लास में प्रो बीकम जिस तरीके से सवाल करते तो वशिष्ठ दूसरी तरीके से बताते. वे लगातार प्रो बीकम भगत के हल को चुनौती देते. अंत में प्रो बीकम भगत ने प्रो नागेंद्र सिंह से शिकायत की. कहा कि ये लड़का क्लास में तंग करता है. कुलपति प्रो नागेंद्र नाराज हुए. डांटने के लिए वशिष्ठ को बुलाया. पूछा क्या चाहते हो? वशिष्ठ बाेले सवाल का हल. प्रो नागेंद्र ने जब सवाल जवाब किये तो समझ गये कि ये लड़का ज्यादा प्रतिभाशाली है. प्रो भगत से कहा कि आप जाइए. संयोग से उसी दौरान यूरोप के जाने माने गणितज्ञ प्रो टेली आये थे. प्रो नागेंद्र ने टेली से कहा कि आप इन्हें अमेरिका ले जाइए . यह प्रतिभाशाली है. आपका नाम करेगा? उसके बाद वशिष्ठ नारायण सिंह ने दुनिया में अपने शिक्षकों का कितना नाम रोशन किया, यह सभी जानते हैं.

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