10 वर्षों में जो कंपनी तैयार नहीं कर पायी ड्रेनेज की डीपीआर, झारखंड में है ब्लैकलिस्टेड, उसे फिर जिम्मेदारी

पटना : पटना को जलजमाव और जर्जर हो चुके पुराने ड्रेनेज सिस्टम से छुटकारा दिलाने के लिए नयी डीपीआर (डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने की कवायद 10 साल में भी पूरी नहीं हुई. पटना नगर निगम ने दिसंबर, 2009 में सिंगापुर की एक कंपनी मैनहट प्राइवेट लिमिटेड को डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी. कंपनी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 10, 2019 8:42 AM
पटना : पटना को जलजमाव और जर्जर हो चुके पुराने ड्रेनेज सिस्टम से छुटकारा दिलाने के लिए नयी डीपीआर (डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने की कवायद 10 साल में भी पूरी नहीं हुई. पटना नगर निगम ने दिसंबर, 2009 में सिंगापुर की एक कंपनी मैनहट प्राइवेट लिमिटेड को डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी. कंपनी को 33 महीने में डीपीआर तैयार करनी थी.
इसकी समय सीमा सितंबर, 2012 में ही समाप्त हो गयी. इसे एक साल का एक्सटेंशन भी मिला और यह मामला बुडको को ट्रांसफर हो गया. पिछले सात वर्षों से बुडको ही इसकी मॉनीटरिंग कर रहा है. फिर भी डीपीआर अब तक तैयार नहीं हुई है. विभाग की तरफ से जब इस कंपनी पर दबाव दिया गया, तो मैनहट ने जैसे-तैसे एक रिपोर्ट सौंप दी. जब इसकी जांच की गयी, विभागीय अधिकारियों ने ही सवाल खड़े किये.
झारखंड में ब्लैकलिस्टेड
इसके बाद जब एलएंडटी कंपनी को इसके आधार पर काम करने को दिया गया, तो कंपनी ने पाया कि जहां एसटीपी बनाने के लिए स्थल बताया गया था, वहां वह स्थान है ही नहीं.
इसके बाद एलएंडटी ने अपने स्तर पर स्थल चयनित करके एसटीपी का निर्माण शुरू किया. मैनहट की बनायी आधी-अधूरी डीपीआर में दर्जनों खामियां मौजूद हैं. विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इतना होने के बाद भी मैनहट कंपनी को डीपीआर बनाने के पुराने एकरारनामा के आधार पर एक्सटेंशन मिल गया है और इसे पूरी प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग का जिम्मा भी सौंपा गया है. बुडको ने इससे संबंधित पत्र भी जारी कर दिया है. जबकि इस कंपनी को झारखंड में ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया है.
क्या कहती है कंपनी
इधर, इस मामले में मैनहट प्राइवेट लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उनकी तैयार डीपीआर को समय पर मूल रूप में लागू ही नहीं किया गया.
बुडको के तत्कालीन एमडी ने बेवजह देर की. अगर यह उसी समय लागू हो जाता, तो आज पटना नहीं डूबता. उनका कहना है कि उनकी तैयार डीपीआर के आधार पर ही पटना में काम शुरू किया गया है. जहां तक एलएंडटी से जुड़ा मसला है, तो डीपीआर एक अनुमान होती है. एलएंडटी के ऊपर वास्तविक स्थल का चयन कर इसे फिर से री-डिजाइन करने की जिम्मेदारी थी.
पटना में न ऑफिस, न मैन पावर
मैनहट कंपनी को डीपीआर के बदले 1250 करोड़ रुपये मिलने थे. अब फिर से इसे डीपीआर तैयार करने की जिम्मेदारी मिलने पर इसकी संशोधित राशि पिछली राशि से कई गुनी अधिक होने की संभावना है.
इस कंपनी का पटना में अभी कोई कार्यालय तक नहीं है और न ही कोई मैन पावर है. सिर्फ खानापूर्ति के लिए कंपनी ने एक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी के मकान में किराये पर एक फ्लैट लेकर दो-तीन साल के लिए रखा था, लेकिन अब यह भी मौजूद नहीं है.
इसके अलावा मैनहट कंपनी के साथ हुए एकरारनामा में यह उल्लेख है कि अगर कंपनी समय पर काम नहीं करती है, तो उसे 7.5 प्रतिशत की दर से जुर्माना देना पड़ेगा, लेकिन यह जुर्माना भी आज तक नहीं वसूला गया है. उल्टे कंपनी इस मामले को लेकर हाइकोर्ट में चली गयी. हाइकोर्ट के फैसले पर बुडको ने फिर से कोई अपील नहीं की और इसकी व्याख्या अपने हिसाब से करते हुए कंपनी को दो करोड़ से ज्यादा रुपये का भुगतान कर दिया गया है.

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