बिहार में अज्ञात वायरस लील रहा जिंदगियां, बिना डेंगू व तेज बुखार के अचानक गिर जा रहा प्लेटलेट्स

राजदेव पांडेय, पटना : राज्य में बदलते वातावरण के कारण प्रदूषित हवा व अज्ञात वायरस से लोगों का जीवन तबाह हो रहा है. अज्ञात वायरस इतना घातक है कि चंद दिनों में प्लेटलेट्स सामान्य से कई गुना नीचे गिर जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर के 99 डिग्री फारेनहाइट तापमान पर भी यह वायरस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 27, 2019 5:32 AM

राजदेव पांडेय, पटना : राज्य में बदलते वातावरण के कारण प्रदूषित हवा व अज्ञात वायरस से लोगों का जीवन तबाह हो रहा है. अज्ञात वायरस इतना घातक है कि चंद दिनों में प्लेटलेट्स सामान्य से कई गुना नीचे गिर जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर के 99 डिग्री फारेनहाइट तापमान पर भी यह वायरस प्लेटलेट्स को अचानक गिरा देता है.

दरअसल यह वायरस श्वेत रक्त कणिकाओं के औसत जीवन को और छोटा कर दे रहा है. इसकी वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो जा रही है.इसका सीधा असर प्लेटलेट्स के अचानक नीचे गिरने के रूप में देखा जा रहा है. पटना में कई ऐसे मरीज पाये गये, जिनका प्लेटलेट्स के दो-चार दिनों में ही 3.5 लाख से घटकर एक लाख के नीचे आ गया. ऐसे बदलाव से डाॅक्टर भी अचंभित हैं. इनके लक्षण डेंगू व चिकनगुनिया से मेल खाते हैं. यह वायरस रुके हुए पानी व नमी के अचानक बढ़ने व घटने से पैदा
होता है.
वाॅयराेलॉजी लैब, पीएमसीएच के प्रभारी डाॅ सच्चिदानंद कुमार ने बताया कि बिना ज्यादा बुखार और डेंगू के ज्यादा प्लेटलेट्स नहीं गिरना चाहिए. अगर ऐसा हो रहा है तो निश्चित तौर पर आश्चर्य और अनुसंधान का विषय है.
प्रदूषित हवा से बिहार में सालाना औसतन मौतें
2841 पटना
531 मुजफ्फरपुर
710 गया
प्रदूषित हवा से बिहार में सालाना औसतन 4082 से अधिक मौतें
आइआइटी, दिल्ली और सीड के वर्ष 2010-16 के बीच किये गये अध्ययन के मुताबिक प्रदूषित हवा के कारण बिहार में सालाना औसतन 4082 से अधिक मौतें हो रही हैं. यह रिपोर्ट वर्ष 2010-2016 के बीच पीएम 2.5 के आकड़ोें पर आधारित है.
सीड की सीनियर प्रोग्राम अफसर अंकिता ज्योति के मुताबिक 2017-19 अगस्त तक के बीच पीएम 2.5 के आंकड़े काफी बढ़ गये हैं. जाहिर है यह संकट भी उतना ही बढ़ा है. दरअसल प्रदूषित हवा सीधे मौत की वजह न बनकर कई प्रकार की बीमारियों को कई गुना बढ़ा देती है.
प्रदूषित हवा दिल, सांस, फेफड़े आदि की बीमारियों काे गंभीर बना देती है. अधिकतर बीमारियां क्रोनिक फेफड़े से संबंधित हैं. इसमें सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं. उनमें सूजन आ जाती है. फेफड़े छलनी हो जाते हैं. इसे एम्फायसेमा कहते हैं. इससे सांस लेना भी दूभर हो जाता है.

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