साम्यवाद और झारखंड आंदोलन की आवाज थे राय

शैलेंद्र महतो ‘एक लौ तेज जलती रही, तम की आंखों को सदा खलती रही/रुलाकर हम सबको सो गया है दादा एके राय, मौत हमेशा इसी तरह छलती रही.’ महाभारत में कृष्ण अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म को सदा स्थापित करने के लिए लड़े. उसी तरह एके राय मजदूर, गरीब, शोषित […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 22, 2019 9:26 AM
शैलेंद्र महतो
‘एक लौ तेज जलती रही, तम की आंखों को सदा खलती रही/रुलाकर हम सबको सो गया है दादा एके राय, मौत हमेशा इसी तरह छलती रही.’ महाभारत में कृष्ण अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म को सदा स्थापित करने के लिए लड़े. उसी तरह एके राय मजदूर, गरीब, शोषित आंदोलन के मूर्धन्य स्तंभ, प्रखर साम्यवादी विचारधारा की दोपहर का सूरज और हृदय से झारखंड आंदोलन की आवाज थे. उनके भाषण लच्छेदार, शब्द काव्यात्मक शैली या क्लिष्ट नहीं होते थे, किंतु वाणी वेदना, पीड़ा और गरीब-शोषित पीड़ित जनता के हृदय तक दस्तक देती थी.
अंतर्द्वंद्व और अंतर्विरोध से भरी राजनीति में अपने साम्यवादी विचार से अंत तक जुड़े रहे और अपने जीवन में एक आदर्श उपस्थापित किया. पद आये या जाये, लोग साथ चलें या छोड़ें, किंतु जिस आदर्श को हृदय मानता है, उसका अनुसरण बगैर समझौता करना चाहिए. झारखंड आंदोलन मृतप्राय हो चुका था. आंदोलन को सांगठनिक ढांचा प्रदान करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. बिनोद बिहारी महतो और एके राय दोनों ही सीपीआइ (एम) में थे. झारखंड राज्य के सवाल पर दोनों ही सीपीआइ (एम) से अलग हो गये. उस समय शिबू सोरेन जैनामोड़ में रहकर बोकारो में आदिवासियों के सवाल पर आंदोलन करते थे. तीनों एक दूसरे को जानते थे. बिनोद बाबू के आग्रह पर शिबू सोरेन धनबाद आये. आपस में विचार विमर्श हुआ. झारखंड अस्मिता और आंदोलन के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन 4 फरवरी को हुआ. झामुमो के अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो और महासचिव शिबू सोरेन चुने गये. इस बैठक में एके राय और कतरास के राजा पूर्णेंदु नारायण भी मौजूद थे.
आठवें दशक के उत्तरार्ध में झारखंड आंदोलन के दौरान सिंहभूम जिले में कई गोलीकांड हुए, जिसमें इचाहातु, सेरेंगदा और गुवा मुख्य हैं. पुलिस अत्याचार बढ़ता गया. गोलीकांड को जानने-समझने के लिए स्थानीय विधायक, सांसद नहीं आये. डर का वातावरण था. उस विषम परिस्थिति में एके राय गोलीकांड की जांच की, लोक सभा में बहस किया और एक विस्तृत रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी. भारत में शोषित-पीड़ित, वंचित एवं झारखंड आंदोलन के एक वरिष्ठ, सम्मानित और प्रतिष्ठित नेता के रूप में एके राय का नाम और छवि हमेशा बनी रहेगी. एक ऐसा व्यक्ति, जिसने अपने विचारों के लिए न हार मानी, न सिर झुकाया, न समझौता किया. और जिसने साम्यवाद और मित्रता निभाना सिखाया.लेखक पूर्व सांसद एवं झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version