नौ साल में राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़कर हुआ ढाई गुना

निर्माण और आधारभूत संरचना समेत अन्य विकासात्मक कार्यों की वजह से राज्य सरकार के कर्ज लेने की रफ्तार तेज हो गयी है पटना : बिहार में विकास की गति जिस तेजी से बढ़ी है, उसी तेजी से जन सरोकार से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन की रफ्तार भी काफी तेज हुई है. निर्माण और आधारभूत संरचना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 13, 2019 9:23 AM
निर्माण और आधारभूत संरचना समेत अन्य विकासात्मक कार्यों की वजह से राज्य सरकार के कर्ज लेने की रफ्तार तेज हो गयी है
पटना : बिहार में विकास की गति जिस तेजी से बढ़ी है, उसी तेजी से जन सरोकार से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन की रफ्तार भी काफी तेज हुई है. निर्माण और आधारभूत संरचना समेत अन्य विकासात्मक कार्यों की वजह से राज्य सरकार के कर्ज लेने की रफ्तार भी तेज हो गयी है. बढ़ते विकास के साथ ही राज्य पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है.
वित्तीय वर्ष 2011-12 में राज्य पर 50 हजार 990 करोड़ का कर्ज था, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढ़ कर एक लाख 30 हजार करोड़ तक पहुंच गया है. यानी पिछले नौ साल में राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ कर ढाई गुना हो गया है. इसकी वजह से राज्य पर ब्याज देने की देनदारी भी बढ़ती जा रही है. नौ साल पहले राज्य सरकार दो हजार 922 करोड़ रुपये ब्याज की अदायगी पर खर्च करती थी.
अब यह राशि बढ़कर सात हजार 326 करोड़ हो गयी है. कर्ज का बोझ ढाई गुना बढ़ने के साथ ही लोन अदायगी का बोझ भी इसी औसत में बढ़कर करीब तीन गुना हो गया है. राज्य सरकार ने सबसे ज्यादा नाबार्ड से दो हजार 100 करोड़ रुपये का लोन ले रखा है. इसके अलावा बाजार की विभिन्न एजेंसियों से 18 हजार 344 करोड़ रुपये का लोन लिया गया है. कुछ अन्य माध्यमों से भी राज्य सरकार ने अच्छी मात्रा में लोन लिया है.
तय मानक के अंदर राज्य का कर्ज
हालांकि, कर्ज का भार लगातार बढ़ने के बाद भी यह तय मानक के अंदर ही है. 13वीं वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार किसी राज्य का कर्ज उसके कुल जीएसडीपी के 25 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. बिहार के कर्ज की स्थिति अब भी इस मानक के अंदर ही है. यह राज्य के लिए बड़ी उपलब्धि भी है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में राज्य का जीडीपी पांच लाख 43 हजार करोड़ है. इसके मुकाबले कर्ज की स्थिति एक लाख 30 हजार करोड़ है, जो तय मानक के आसपास ही है.
स्थिति सुधरने का संकेत
कर्ज का भार बढ़ने का एक सकारात्मक संकेत यह भी है कि राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है. राज्य की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में बढ़ोतरी हुई है. वित्तीय स्थिति सुदृढ़ होने के कारण राज्य सरकार को बाजार से आसानी से लोन मिल रहे हैं. कर्ज का भार बढ़ने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि प्रत्येक वर्ष सरकार अपनी आमदनी का काफी बड़ा हिस्सा विकासात्मक कार्यों पर खर्च करती है. राज्य में विकासात्मक कार्य तेजी से हो रहे हैं और खर्च करने की क्षमता भी बढ़ी है. नौ साल पहले राज्य का बजट एक लाख करोड़ से भी कम था, जो अब बढ़कर दो लाख पांच हजार करोड़ पहुंच गया है.

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