पटना : परिवार को नहीं सौंपी राजनीतिक विरासत, तीसरी बार चुनाव लड़ने से मना कर दिया था सारंगधर ने

अनुपम कुमार पटना : 1951-52 में हुए गणतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव में सारंगधर सिंह पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए. 21 जून 49 से एक जनवरी 1952 तक पटना विवि के कुलपति रहनेवाले सारंगधर 1957 में हुए दूसरे चुनाव में भी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. लेकिन, लगातार दो बार चुनाव जीतने के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 27, 2019 8:09 AM
अनुपम कुमार
पटना : 1951-52 में हुए गणतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव में सारंगधर सिंह पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए. 21 जून 49 से एक जनवरी 1952 तक पटना विवि के कुलपति रहनेवाले सारंगधर 1957 में हुए दूसरे चुनाव में भी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए.
लेकिन, लगातार दो बार चुनाव जीतने के बावजूद उन्होंने अपनी लोकप्रियता का बेजा इस्तेमाल नहीं किया और युवा साथी को मौका देने की बात कह कर तीसरी बार चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया. आज के राजनैतिक माहौल में जब चुनावी टिकट नहीं मिलने की वजह से वर्षों पुराने नेता भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं और पार्टी छोड़ देते हैं. ऐसे समय में सारंगधर सिंह की मूल्यनिष्ठा उच्च राजनीतिक आचरण के लिए प्रेरित करती है.
परिवार को नहीं सौंपी राजनीतिक विरासत
चुनावी राजनीति से दूर होने के बाद सारंगधर सिंह ने अपनी राजनीतिक विरासत एकलौती पुत्री शांता या अन्य परिवारजनों को सौंपने का प्रयास नहीं किया और अपनी जगह अपने पार्टी की युवा नेत्री रामदुलारी सिन्हा को आगे बढ़ाया, जो आगे कई बार पाटलिपुत्र सीट से विजयी रहीं.
दादा ने लगायी थी प्रिंटिंग प्रेस
सारंगधर उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के रेपुरा गांव के एक जमींदार घराने से संबंधित थे. उनके दादा खड्ग विलास सिंह 1880 में वहां से पटना आ कर बस गये थे और यहां बाकरगंज में खड्ग विलास नामक प्रिंटिंग प्रेस लगायी थी. अपने एकलौती पुत्री शांता की शादी झांसी के जमींदार घराने राजा जगमनपुर में सारंगधर ने की थी. पुत्र नहीं होने की वजह से अपने छोटे नाती राजीव रंजन शाह को उन्होंने कानूनी रूप से गोद लिया था.
कोठी की जगह बना पुष्पराज अपार्टमेंट
देहावसान के बाद न तो कांग्रेस पार्टी ने सारंगधर को याद किया और न ही उनके परिवारजनों ने कभी उनके नाम व रुतबे को भुनाने का प्रयास किया. एग्जीबिशन रोड में आशियाना टावर के बगल वाली लेन में दो-तीन दशक पहले तक सारंगधर की कोठी थी, जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता ठहरते थे. अब उसी जगह पर पुष्पराज अपार्टमेंट है, जिसके ऊपरी तल्ले पर सारंगधर के छोटे नाती राजीव रंजन शाह और उनका परिवार रहता है जिसमें उनकी पत्नी पुष्पा और पुत्र अभिज्ञान शामिल हैं.उनके आग्रह पर उनकी पुत्री और दामाद भी बाद में पटना में आकर उनके साथ रहने लगे.कभी पटना की स्थानीय राजनीति का केंद्र बिंदु माने जाना वाला यह स्थल अब राजनैतिक रूप से गुमनामी में खो चुका है.
सक्रिय राजनीति से संन्यास के बाद भी दो बार रहे कुलपति
1962 में सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद सारंगधर ने बिहार और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दी. जीवन के अंतिम दिनों में भी उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह एक सामान्य व्यक्ति के रूप में बिताया. 1985 में उनकी मृत्यु हो गयी.

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