अपराध मुक्त राजनीति और ‘स्पेशल कोर्ट’, सोलवहीं लोकसभा में बढ़ गयी थी दागियों की संख्या

राजीव कुमार, राज्य समन्वयक एडीआर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति आरएस लोधा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए दागियों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई की. 10 मार्च, 2014 को खंडपीठ ने आदेश दिया था कि भ्रष्टाचार व अन्य गंभीर अपराधों में आरोपित सांसदों व विधायकों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 26, 2019 6:18 AM
राजीव कुमार, राज्य समन्वयक एडीआर
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति आरएस लोधा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए दागियों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई की.
10 मार्च, 2014 को खंडपीठ ने आदेश दिया था कि भ्रष्टाचार व अन्य गंभीर अपराधों में आरोपित सांसदों व विधायकों के मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरी कर ली जाये. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा कि वे सांसदों, विधायकों की मुकदमे की रोजाना सुनवाई कर ट्रायल पूरी करें. एक वर्ष की मियाद भी समाप्त हो गयी, लेकिन ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी. वहीं, 16वीं लोकसभा में दागियों की संख्या बढ़ गयी.
दागियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका लगायी गयी. जिसमें दलील दी गयी कि नेताओं की सुनवाई में जानबूझ कर देरी की जाती है. जिसकी वजह से कानून तोड़ने वाले ही कानून बनाने वाले बन जाते हैं. मौजूदा कानून के तहत वास्तव में केवल उन लोगों को चुनाव लड़ने से वंचित किया जाता है, जिन्हें न्यायालय ने दोषी पाया है. इस कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है, ताकि दागी व्यक्ति चुनाव ही न लड़ सके.
जिनके खिलाफ आपराधिक आरोप न्यायालय द्वारा तय किये गये हो, जिनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल हो, जिसें पांच वर्ष या उससे अधिक की सजा मिली हो, हत्या, बलात्कार, डकैती, अपहरण, तस्करी जैसे जघन्य अपराध के दागियों को स्थायी रूप से चुनाव लड़ने से वंचित किये जाये. देश के वर्तमान और पूर्व सांसद विधायकों के खिलाफ तीन दशकों से 4122 आपराधिक मामले लंबित हैं.
जनप्रतिनिधियों के लंबित मामलों के निबटारे के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सांसदों व विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की एक साल में सुनवाई पूरी करने के लिए वह विशेष अदालतों का गठन करे. दिसंबर, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दागी सांसदों व विधायकों के खिलाफ एक मार्च, 2018 से स्पेशल कोर्ट सुनवाई आरंभ करे.
केंद्र ने कोर्ट को बताया था कि इन मामलों के निबटारे के लिए 12 विशेष अदालतें बनायी जायेंगी. कोर्ट ने कहा था कि यह राष्ट्रहित में है. सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में बिहार एवं केरल के सभी जिलों में स्पेशल कोर्ट बनाने का आदेश दिया, ताकि एक साल के अंदर सुनवाई पूरी हो सके. आंकड़ों के अनुसार बिहार में 342 मामले लंबित हैं.
बिहार सरकार की पहल पर सभी जिलों में विशेष अदालतें गठित हुईं. पर, अब तक के नतीजों में स्पेशल कोर्ट द्वारा मुख्यत: राजवल्ल्भ यादव से जुड़े मामले में ही सजा हो पायी है. साधारण मामलों की सुनवाई तो हो रही है, लेकिन संगीन धाराओं के तहत मामलों में सुनवाई की रफ्तार धीमी है.
कितनों के ऊपर सुनवाई हुई यह प्रमाणिक तौर पर नहीं बताया जा सकता है, लेकिन यह तय है कि कई माननीयों पर सजा की तलवार लटकी हुई है. यह भी एक वजह है कि कई माननीयों ने मौके की नजाकत भांपते हुए अपनी पत्नियों को चुनावी मैदान में उतारने की कवायद तेज कर दी है.

Next Article

Exit mobile version