देश के 60% खुले में शौच करनेवाले बिहार, यूपी, ओड़िशा व झारखंड में

पटना : दुनिया के 60% खुले में शौच करने वाले भारत में हैं और भारत का 60% हिस्सा बिहार, यूपी, ओड़िशा और झारखंड में रहते हैं. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वॉयरमेंट संस्था ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा है कि भारत और विश्व को खुले में शौचमुक्त […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 1, 2017 1:45 PM

पटना : दुनिया के 60% खुले में शौच करने वाले भारत में हैं और भारत का 60% हिस्सा बिहार, यूपी, ओड़िशा और झारखंड में रहते हैं. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वॉयरमेंट संस्था ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा है कि भारत और विश्व को खुले में शौचमुक्त होने के लिए चार भारतीय राज्यों को अपने कार्यकलापों को भी साफ सुथरा करने की जरूरत होगी. संस्था की प्रमुख पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने बताया कि जहां भारत ने वर्ष 2019 तक खुले में शौचमुक्त होने का संकल्प लिया है, वहीं दुनिया ने वर्ष 2030 तक खुले में शौचमुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

नारायण ने कहा कि शौचालय बनवाना और इनका उपयोग हो रहा है या नहीं यह सुनिश्चित करना, दोनों अलग-अलग बाते हैं. स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत बिहार को लगभग 202 लाख परिवारों के लिए शौचालयों का निर्माण करना होगा. मौजूदा स्थिति में सीएसई की रिपोर्ट बताती है, ग्रामीण स्वच्छता के मामले में इस राज्य की स्थिति सबसे खराब है. पूरे देश में बिना शौचालय के 6.4 करोड़ परिवारों में से 22 फीसदी तो बिहार के ही हैं. जून, 2017 की स्थिति तक इस राज्य की 70 फीसदी आबादी को अब भी शौचालय तक पहुंच नहीं थी.

बिहार 2033 में ही खुले में शौच से मुक्त हो पायेगा : सुनीता नारायण

रविशंकर उपाध्याय

बिहार में शौच से मुक्त करने वाले अभियान की क्या स्थिति है?

– बिहार की स्थिति अच्छी नहीं है. हमारा अध्ययन कहता है कि जिस रफ्तार से काम हो रहा है उसके अनुसार 2033 में राज्य खुले में शौच से मुक्त हो पायेगा. यही नहीं जो शौचालय बने हैं उसमें से 22-24 फीसदी शौचालयों का ही इस्तेमाल हो रहा है. सरकारी स्तर के साथ आमलोगों को भी सामने आना चाहिए. जनजागरुकता के साथ ही हम इस अभियान में सफल होंगे.

बिहार इस पूरे अभियान में क्या अच्छा और नया कर रहा है?

– बिहार के नालंदा में एक अच्छा काम हो रहा है जो सबको सीखना चाहिए. हमारी रिपोर्ट कहती है कि नालंदा जिले के भुई पंचायत में शौचालय बनाने के साथ मल और अपशिष्ट का प्रबंधन भी हो रहा है. इस प्रबंधन के कारण भू जल का प्रदूषण कम होगा. इस मॉडल को बाकी सभी जिलों के साथ अन्य राज्यों को भी अपनाना चाहिए. क्योंकि केवल टॉयलेट बनाने से काम नहीं चलेगा यदि इससे भू जल प्रदूषित हुआ तो फिर क्या फायदा?

क्या केवल टॉयलेट बना देना ही इस पूरी समस्या का निदान है?

– नहीं केवल टॉयलेट बनाने से समस्या का निदान नहीं होगा. 2015 के सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि जितने भी शौचालय बनाये गये थे उसमें से 20 फीसदी का इस्तेमाल कभी नहीं हो पाया. इसके बाद एनएसएसओ की रिपोर्ट ने कहा कि सिक्किम, केरल और हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी शौचालय का इस्तेमाल होता है. झारखंड में सबसे कम 20 फीसदी और औसतन 40 फीसदी शौचालय इस्तेमाल में आते हैं. तमिलनाडु का इस्तेमाल दर 40 फीसदी है.

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