PATNA : ट्रैफिक पुलिस के स्टोर में पड़े हैं स्मोक मीटर व फोर गैस एनालाइजर

पटना : 2016 में पटना पुलिस को परिवहन विभाग की तरफ से दो स्मोक मीटर आैर दो फोर गैस एनालाइजर मिले. इनको देने का उद्देश्य ट्रैफिक पुलिस की क्षमता को बढ़ाना और उसे प्रदूषण फैलानेवाले वाहनों पर कार्रवाई में सक्षम बनानाथा. लेकिन प्रशिक्षण व सहायक उपकरणों की कमी के कारण यातायात पुलिस अब तक इनका […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 30, 2017 8:36 AM
पटना : 2016 में पटना पुलिस को परिवहन विभाग की तरफ से दो स्मोक मीटर आैर दो फोर गैस एनालाइजर मिले. इनको देने का उद्देश्य ट्रैफिक पुलिस की क्षमता को बढ़ाना और उसे प्रदूषण फैलानेवाले वाहनों पर कार्रवाई में सक्षम बनानाथा. लेकिन प्रशिक्षण व सहायक उपकरणों की कमी के कारण यातायात पुलिस अब तक इनका इस्तेमाल नहीं कर सकी है और एक वर्ष से भी अधिक समय से ये बेकार पड़े हैं.
स्मोक मीटर और फोर गैस एनालाइजर भारत सरकार की तरफ से दिये गये हैं. भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इन्हें प्रदेश के परिवहन विभाग को नि:शुल्क अनुदान के रूप में दिया. परिवहन विभाग ने इनमें से चार पटना ट्रैफिक पुलिस को दे दिया.
न पिकअप वैन मिली न इन्वर्टर और प्रिंटर पटना ट्रैफिक पुलिस को प्रदूषण
मापक उपकरण तो मिल गये, लेकिन ट्रैफिक पुलिस कर्मियों को इनको चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया. साथ ही, इनको रखने के लिए न तो पिकअप वैन दी गयी और न ही इन्वर्टर आैर बैटरी, जिनके बिना इनका चेकिंग में इस्तेमाल संभव नहीं है.
ऑन द स्पॉट जांच कर तुरंत रिपोर्ट निकालने के लिए प्रिंटर भी जरूरी है, जो अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है. प्रशिक्षण के बाद भी जब तक परिवहन विभाग या ट्रैफिक पुलिस अपने संसाधनों से इनकी व्यवस्था नहीं करती, तब तक सड़क पर चलते वाहनों की ऑन द स्पॉट जांच के लिए इनका इस्तेमाल संभव नहीं होगा.
सड़कों पर दौड़ रहे 4-5 लाख वाहन
पटना की सड़कों पर हर दिन चार-पांच लाख वाहन दौड़ते हैं. उनमें से हजारों वाहन हर दिन निर्धारित मात्रा से अधिक प्रदूषक गैस उत्सर्जित कर रहे हैं. जिनके पास प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं होता, उनको ट्रैफिक पुलिस इस आधार पर फाइन कर देती है. लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे वाहन भी सड़क पर दौड़ते हैं, जो प्रदूषण सर्टिफिकेट लेने के बावजूद भी निर्धारित मात्रा से अधिक प्रदूषण फैलारहे हैं. साइलेंसर से निकलते गहरे काले धुएं को देखने के बाद भी ऐसे वाहनों पर कार्रवाई करने में ट्रैफिक पुलिस सक्षम नहीं होती, क्योंकि उसके पास इस बात को प्रमाणित करने का कोई आधार
नहीं होता कि वाहन निर्धारित मात्रा से अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं. ऐसे वाहनों पर कार्रवाई के लिए ही पोर्टेबल फोर गैस एनालाइजर और स्मोक मीटर जैसे उपकरणों की जरूरत है. पटना एमवीआइ प्राइवेट एजेंसियों से किराये पर इन उपकरणों को लेकर दो-तीन बार औचक जांच अभियान भी चला चुकी है और उसके एवज में उसे हजारों रुपये का भुगतान भी करना पड़ा है. लेकिन ट्रैफिक पुलिस के पास उपकरण रखे हैं और उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.
उपयोग फोर गैस एनालाइजर
पेट्रोल पर चलनेवाले वाहनों से निकलनेवाले धुएं में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन की मात्रा मापता है. भारत सरकार ने इंडस कंपनी द्वारा बने फोर गैस एनालाइजर ट्रैफिक पुलिस को दिया है. इसकी कीमत लगभग एक लाख प्रति उपकरण है.
स्मोक मीटर
डीजल पर चलनेवाले वाहनोंं के साइलेंसर से निकलनेवाले धुएं में मौजूद प्रदूषणकारी गैसों की मात्रा को मापता है. भारत सरकार ने मेनाटेक कंपनी द्वारा बना स्मोक मीटर ट्रैफिक पुलिस को दिया है. इसकी कीमत लगभग सवा लाख प्रति उपकरण है.
प्रशिक्षित कर्मी नहीं
जो प्रदूषण मापक उपकरण हमें दिये गये हैं, उनकाे चलाने के लिए हमारे पास प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं. वाहन व अन्य पारा लॉजिस्टिक (सहायक उपकरण) भी हमारे पास नहीं हैं. इससे समस्या आ रही है.
-पीके दास,
ट्रैफिक एसपी, पटना

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