सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर सवाल : 2100 उत्क्रमित हाईस्कूलों में नहीं हैं हेडमास्टर

अव्यवस्था : सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर उठ रहा सवाल, अब तक नहीं बनी नियमावली और मैनेजिंग कमेटी पटना : एक तरफ सरकार स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात कर रही है. वहीं, दूसरी ओर प्रदेश में लगभग 2100 उत्क्रमित विद्यालय हैं, जो बिना हेडमास्टर और विषयवार शिक्षकों के सहारे संचालित हो रहे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 30, 2017 8:25 AM
अव्यवस्था : सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर उठ रहा सवाल, अब तक नहीं बनी नियमावली और मैनेजिंग कमेटी
पटना : एक तरफ सरकार स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात कर रही है. वहीं, दूसरी ओर प्रदेश में लगभग 2100 उत्क्रमित विद्यालय हैं, जो बिना हेडमास्टर और विषयवार शिक्षकों के सहारे संचालित हो रहे हैं. इन विद्यालयों में न तो हेडमास्टर हैं और न ही अलग-अलग विषयों के शिक्षक. नौवीं और दसवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं का भविष्य मध्य विद्यालय के शिक्षकों के सहारे तय हो रहा है.
नहीं बनी अब तक कोई नियमावली : प्रदेश में 2100 मध्य विद्यालयों को उत्क्रमित कर उसे हाईस्कूल किया गया है. पटना जिले में इसकी संख्या 47 है.
जहां विद्यालयों में न तो विषयवार शिक्षक हैं अौर न ही हेडमास्टर. मध्य विद्यालयों के प्रधानाचार्य और शिक्षकों के सहारे विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. इन विद्यालयों में अलग से पांच-पांच शिक्षकों के पद भी सृजित किये गये हैं.
इसके बावजूद इन विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गयी है. हाईस्कूल के संचालन के लिए मैनेजिंग कमेटी का गठन किया जाता है, जिसका अध्यक्ष विधायक या एमलसी हाेते हैं. पर, उत्क्रमित विद्यालयों के लिए न तो कोई नियमावली बनी है और न ही कोई मैनेजिंग कमेटी. जिससे स्कूलों का बेहतर संचालन हो सके.
हाईस्कूल के लिए डेढ़ एकड़ का कैंपस जरूरी
हाईस्कूल का कैंपस कम-से -कम डेढ़ एकड़ में होना अनिवार्य. जहां, बच्चों के लिए प्लेग्राउंड से लेकर कई जरूरी सुविधाएं मुहैया करायी जानी हैं. पर, उत्क्रमित विद्यालय में न तो बच्चाें के लिए पर्याप्त कमरे हैं और न ही कैंपस जहां बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भाग ले सकें.
जबकि, शिक्षा के अधिकार कानून के तहत बिहार राज्य परियोजना द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार विषयवार शिक्षकों द्वारा ही क्लास लेना है. उत्क्रमित विद्यालयों में न तो विषयों के शिक्षक हैं और न ही पढ़ाई होती हैं. अंग्रेजी के शिक्षक विज्ञान तो फिजिक्स के शिक्षक संस्कृत पढ़ा रहे हैं.
प्रयोगशाला और लाइब्रेरी का है अभाव
उत्क्रमित विद्यालयों में न तो प्रयोगशाला है और न ही लाइब्रेरी की सुविधा. जैसे-तैसे स्कूलों का संचालन किया जा रहा है. ऐसे में नौवीं-दसवीं के छात्र-छात्राएं बिना प्रयोगशाला के ही पढ़ाई करने को मजबूर हैं. जबकि, स्कूलों में साप्ताहिक रूटीन में इसे अनिवार्य रूप से शामिल किया गया है. ऐसे में इस वर्ष के इंटर और मैट्रिक रिजल्ट में प्रैक्टिकल की पोल खुलने के बाद से समिति आगामी बोर्ड परीक्षा होम सेंटर पर नहीं कराने का निर्णय लिया गया है. इसकी विडियोग्राफी भी करायी जायेगी. ऐसे में बिना प्रयोगशाला के बच्चे कैसे प्रैक्टिकल की परीक्षा देंगे.
सदन में कई बार सवाल
जिलों में हाईस्कूल की कमी को दूर करने के लिए मध्य विद्यालयों को अपग्रेड कर उन्हें हाईस्कूल में तब्दील तो कर दिया गया है, पर उन विद्यालयों में हाईस्कूल के विद्यार्थियों को मध्य विद्यालयों के शिक्षक ही पढ़ा रहे हैं. इन विद्यालयों में हेडमास्टर भी नहीं हैं. ऐसे में इन विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है. इस समस्या को लेकर सदन में कई बार सवाल उठाये गये हैं. इसके बावजूद सरकार का ध्यान इस ओर अब तक नहीं गया है.
केदार नाथ पांडेय, अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ

Next Article

Exit mobile version