न जमीं अपनी, न छत, डिवाइडर पर रात बिताने को विवश

पटना : कुछ वर्षों पहले तक बीच डिवाइडर या सड़क किनारे फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की चर्चा होती थी, तो जेहन में मुंबई या कोलकाता जैसे महानगरों की याद आती थी. अब पटना में भी ऐसे दृश्य दिखाई देने लगे हैं. राजधानी की सड़कों पर हर रात लगभग 10 हजार लोग ऐसे मिल जाते […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 5, 2017 8:09 AM
पटना : कुछ वर्षों पहले तक बीच डिवाइडर या सड़क किनारे फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की चर्चा होती थी, तो जेहन में मुंबई या कोलकाता जैसे महानगरों की याद आती थी. अब पटना में भी ऐसे दृश्य दिखाई देने लगे हैं.
राजधानी की सड़कों पर हर रात लगभग 10 हजार लोग ऐसे मिल जाते हैं जो डिवाइडर या फुटपाथ पर दिन भर की थकान मिटाते दिखते हैं. बारिश का मौसम, रह-रह कर टपकती बूंदें और उसमें खुले आसमान के नीचे डेढ़-दो फुट की जगह पर सोना न केेवल कष्टदायक बल्कि खतरनाक भी है. यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि क्या जाने कब दिन भर की थकान से गहरी निद्रा में डूबा व्यक्ति सड़क पर पलट कर गिर जाये और तेज गति से दौड़ती किसी गाड़ी के नीचे आ जाये. यहां हर पल करवट बदलने पर मौत की आशंका बनी रहती है.
डिवाइडर और फुटपाथ पर इतनी संख्या में लोगों के सोने की वजह को प्रभात खबर ने जब टटोलने का प्रयास किया, तो सामने आया कि ये सारे बेघर हैं. जायें कहां…. इनके पास न जमीन अपनी है और न ही छत. राजेंद्र नगर टर्मिनल व पटना जंकशन के सामनेवाली सड़क पर सोनेवाले ज्यादातर लोग कुली या वेंडर का काम करते हैं. कहीं ठिकाना नहीं होने के कारण देर रात वे स्टेशन परिसर या उसके सामने के फुटपाथ व डिवाइडरों पर ही सो जाते हैं.
रैनबसेरे पर दबंगों का कब्जा, सड़क पर सोने को मजबूर गरीब
शहर के ज्यादातर हिस्से में डिवाइडर और फुटपाथ पर रात बिताने वाले लोगों में सबसे अधिक संख्या रिक्शावालों की होती है. रिक्शा चालक रहने की जगह नहीं होने के कारण रात में डिवाइडर पर ही सो जाते हैं. उनकी परेशानी को देखते हुए कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने रैन बसेरा के निर्माण की योजना बनायी थी, जहां उनके लिए रात्रि विश्राम की व्यवस्था थी. उनमें से कुछ पर अब दबंगों का कब्जा हो गया है. जबकि, कुछ रखरखाव नहीं होने के कारण रहने लायक नहीं है.
बड़ी संख्या भिखारियों और विक्षिप्तों की : डिवाइडर और फुटपाथ पर सोनेवाले लोगों में बड़ी संख्या मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों और भिखारियों की दिखी. मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना के बावजूद शहर में न तो भिखारियों की संख्या में कमी आयी है और न ही उनकी दशा में सुधार हुआ है.
सरकारी आश्रयगृह तक बहुत कम भिखारियों की पहुंच है, इसलिए डिवाइडर या फुटपाथ पर सोने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है. इनके डिवाइडर से पलटकर गिरने व दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका भी अधिक रहती है.
मुंबई का िबजनेसमैन और दो फ्लैटों का मालिक पड़ा था फुटपाथ पर
फुटपाथ और डिवाइडरों पर सोये लोगों में कई ऐसे भी होते हैं, जो अच्छे परिवार से होते हैं, लेकिन दुर्घटनावश यहां पहुंच जाते हैं. पिछले दिनों राजेंद्रनगर टर्मिनल के पास किसी वाहन से धक्का लग जाने से लहुलुहान एक भिखारी मिला था. उसे भिक्षावृत्ति निवारण योजना से जुड़े लोगों ने पीएमसीएच पहुंचा दिया. लावारिस वार्ड में कई दिनों तक इलाज के बाद जब उस भिखारी को होश आया तो उसने अपने घर का पता मुंबई बताया और एक कॉन्टेक्ट नंबर भी दिया.
नंबर पर संपर्क करने पर उसके साले ने फोन उठाया, जो दुबई में रहता था. मालूम हुआ कि वह भिखारी मुंबई का एक बड़ा बिजनेसमैन है, जिसके पास वहां के प्राइम लोकेशन पर करोड़ों के दो फ्लैट हैं. वह बिजनेस के सिलसिले में पटना आया था और ट्रेन पकड़ने जा रहा था कि पैर फिसलने से गिर पड़ा और सिर में इतनी चोट लगी कि यादाश्त और मानसिक संतुलन बिगड़ गया. समान असामाजिक तत्वों ने लूट लिया और वह फुटपाथ पर भीख मांगने लगा.

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