सालाना 50 अरब रुपये की मछली खा जाते हैं बिहारी
दीपक कुमार मिश्रा बिहार से पड़ोसी देश नेपाल और पड़ोस के राज्यों में मछली का जाना शुरू हुआ है, लेकिन अब भी आंध्र प्रदेश की मछलियां यहां के बाजारों में खूब बिकती हैं. राज्य में अभी मछली की मांग 6.40 लाख टन है जबकि उत्पादन 5.10 लाख टन. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने चालू […]
दीपक कुमार मिश्रा
बिहार से पड़ोसी देश नेपाल और पड़ोस के राज्यों में मछली का जाना शुरू हुआ है, लेकिन अब भी आंध्र प्रदेश की मछलियां यहां के बाजारों में खूब बिकती हैं. राज्य में अभी मछली की मांग 6.40 लाख टन है जबकि उत्पादन 5.10 लाख टन. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस गैप को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
पटना : माछ, मखाना और पान मिथिला की संस्कृति में रची-बसी है. मछली, मिथिला के भोजन का एक जरूरी आइटम है. इस कारण यह आम धारणा है कि बिहार के लोग मछली खूब खाते हैं. लेकिन, सरकारी आंकड़ों की माने तो इसमें बहुत दम नहीं है. मछली के खपत के मामले अब भी बिहारी राष्ट्रीय औसत से करीब डेढ़ किलो पीछे हैं. अगर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की अनुशंसा की बात करे तो उसकी तुलना में बिहार के लोग करीब चार किलो कम मछली खाते हैं. राज्य में मछली उत्पादन और मांग में अभी भी एक लाख टन का गैप है.
बिहार सरकार चालू वित्तीय वर्ष में इस गैप को समाप्त करने के लक्ष्य को लेकर काम कर रही है. पिछले पांच साल में राज्य में मछली की उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसके बाद भी मांग और उत्पादन में करीब 1.30 लाख टन सालाना का गैप है. बिहार से पड़ोसी देश नेपाल और पड़ोस के राज्यों में मछली का जाना शुरू हुआ है, लेकिन अभी भी आंध्र प्रदेश की मछलियां यहां की बाजारों में खूब बिकती है. राज्य में अभी मछली की मांग 6.40 लाख टन है जबकि उत्पादन 5.10 लाख टन. एक मोटे अनुमान के अनुसार सालाना 50 अरब का मछली बिहार के लोग खाते हैं. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस गैप को समाप्त करने की लक्ष्य निर्धारित किया है.
विभागीय अधिकारियों के अनुसार मछली खपत का राष्ट्रीय औसत नौ किलो प्रति व्यक्ति सालाना है जबकि बिहार में इसकी उपलब्धता अभी प्रति व्यक्ति 7.7 किलो सालाना है. आइसीएमआर का अनुशंसा सालाना प्रति व्यक्ति 12 किलो खपत की है. राज्य की आबादी 11 करोड़ से अधिक है. एक अनुमान के अनुसार इसमें 70 फीसदी लोग मांसाहारी हैं.
मछली खपत और उत्पादन के गैप को जायेगा भरा
राज्य में मछली उत्पादन और खपत में जो 1.30 लाख टन का भारी गैप है उसको इस साल समाप्त किया जायेगा. विभाग इस दिशा में काम कर रहा है. मत्स्य संसाधन के निदेशक निशांत अहमद ने बताया कि अभी राज्य में 90 हजार हेक्टेयर में सरकारी और निजी तालाब हैं. मछली उत्पादन का यह बड़ा स्रोत है. इसके अलावा नदी, नहर, झील, जलकर, मन आदि में भी मछली का उत्पादन होता है. राज्य में करीब आठ लाख हेक्टेयर चौर की जमीन है जिसमें अधिकांश समय पानी भरा रहता है और किसी तरह एक फसल हो पाती है. कुछ इलाके में तो वह भी नहीं. विभाग एेसे में किसानों को तालाब खुदवाने और उसमें मछली उत्पादन को लेकर जागरूक कर रहा है. एक हेक्टेयर में हर साल तीन टन मछली का उत्पादन होगा.
फसल की तुलना में इससे आमदनी कई गुना अधिक होगी. मोकामा टाल, कुशेश्वर स्थान, बरैला चौर, कावर झील आदि के क्षेत्र में मछली उत्पादन की काफी संभावना है. कुछ जगहों पर किसानों ने मछली उत्पादन शुरू भी किया है. सरकार भी कई तरह की सहायता देकर मछली उत्पादन से युवाओं को जोड़ा जा रहा है ताकि उनको रोजगार और कमाई का साधन मिले. तालाब के लिए सरकार अनुदान दे रही है. अनुदानित दर पर सरकार सोलर पंप भी दे रही है. तालाब से समय पर मछली बाजार पहुंच जाये इसके लिए अनुदान पर गाड़ियां उपलब्ध करायी जा रही है.
पांच साल में डेढ़ लाख टन बढ़ा उत्पादन
राज्य सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार पिछले पांच साल में मछली के उत्पादन में करीब डेढ़ लाख टन की बढ़ोतरी हुई है. 2011-12 में राज्य में मछली का उत्पादन 3.44 लाख टन था जो 2015-16 में बढ़कर 5.07 लाख टन हो गया. 2004-05 में यह 2.67 लाख टन था. 2015-16 में मछली उत्पादन में तीन जिले मधुबनी (51.5 हजार टन), पूर्वी चंपारण (50.4 हजार टन) और दरभंगा (44 हजार टन) अग्रणी रहे.
मछली उत्पादन के क्षेत्र में बिहार लगातार आगे बढ़ रहा है. हालांकि खपत के अनुसार अभी भी पूरा उत्पादन नहीं हो रहा है. चालू वित्तीय वर्ष में मांग और उत्पादन के गैप को समाप्त कर दिया जायेगा. इस दिशा में प्रयास चल रहा है.
अवधेश कुमार सिंह, मंत्री, पशु एवं मत्स्य संसाधन