फ्लैश बैक : ….जब मांगी थी गांव में ‘पेरा’, नेहरू ने भेज दिया ‘पेड़ा’

कुमार आशीष मधेपुरा : लोकसभा के इतिहास में मधेपुरा व यहां के चुनाव परिणाम हमेशा से रोचक रहे हैं. आजाद भारत में मधेपुरा भागलपुर लोकसभा का हिस्सा हुआ करता था. 1952 में देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहे थे. पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम की सुनामी थी, लेकिन ऐसे दौर में भी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 13, 2019 8:59 AM
कुमार आशीष
मधेपुरा : लोकसभा के इतिहास में मधेपुरा व यहां के चुनाव परिणाम हमेशा से रोचक रहे हैं. आजाद भारत में मधेपुरा भागलपुर लोकसभा का हिस्सा हुआ करता था. 1952 में देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहे थे. पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम की सुनामी थी, लेकिन ऐसे दौर में भी सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी किराय मुसहर ने जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया. सांसद किराय के साथ के कई वाकये अब तक चर्चा में हैं.
क्षेत्र के पहले सांसद बनने का सौभाग्य जिले के मुरहो गांव निवासी किराय मुसहर को प्राप्त हुआ था. किराय समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे. उस वक्त देशभर में किराय मुसहर की जीत चर्चा का विषय थी. चुनाव में विजयी होने के बाद उनके शुभचिंतकों द्वारा ट्रेन से दिल्ली पहुंचने की व्यवस्था की गयी थी. किराय भी अपने समर्थकों के साथ सहरसा स्टेशन पहुंचे थे, लेकिन उस समय भी ट्रेन की सीट पर बैठे सभ्रांत लोगों के साथ बैठने का साहस किराय नहीं जुटा सके. फर्श पर बैठ कर ही पूरा सफर तय किया.
हजूर हमरा गाम म पेरा नै छै, ओ चाही
संसद के पिछली सीट पर बैठे किराय की सादगी प्रधानमंत्री नेहरू को आकर्षित करने में कामयाब रही थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने स्वयं सांसद किराय मुसहर के पास पहुंच उनसे क्षेत्र की समस्या पूछी थी. सांसद किराय मुसहर ने ठेठ मैथिली भाषा में कहा- ‘हजूर, हमरा गाम मे पेरा नै छै, बड्ड मोस्किल होइ छै. हमरा ओ चाही’. मतलब किराय ने गांव में पेरा (रास्ता) नहीं होने की बात बतायी, लेकिन नेहरू जी किराय मुसहर की बातों को नहीं समझ सके. उन्होंने अर्दली के माध्यम से सांसद किराय के पास पेड़ा (मिठाई) का एक पैकेट भेज दिया था.
…यह वाकया कई अर्थों में पूरे देश में चर्चा में रहा. इस विषय को लेकर कई चर्चित कहानियां भी लिखी गयीं. अब भी सियासत के गलियारे में पेरा के बदले पेड़ा बंटने पर किराय और पं नेहरू की याद लोग करते हैं.
रंजिश नहींस्वस्थ प्रतिद्वंद्वी होते थे
1962 में हुए लोकसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी ललित नारायण मिश्र व सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भूपेंद्र नारायण मंडल आमने-सामने थे. दोनों ही दिग्गज नेता अपने समर्थकों के साथ चुनावी जनसंपर्क में व्यस्त थे. इसी क्रम में मुरलीगंज के समीप भूपेंद्र बाबू की मुलाकात ललित बाबू से हो गयी. करीब आते ही दोनों नेता के समर्थक नारेबाजी करने लगे. इसे बगैर किसी भेदभाव के शांत कराया गया.
दोनों नेता ने एक-दूसरे का हालचाल पूछा. भूपेंद्र बाबू ने ललित बाबू को कहा कि मुरलीगंज के आसपास लोग आपसे काफी नाराज हैं. आप उनलोगों से मिल लीजिए. इस तरह के स्वस्थ चुनावी प्रतिद्वंद्वी पहले के चुनाव में होते थे. उस चुनाव में कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र को हरा कर सोशलिस्ट पार्टी के भूपेंद्र नारायण मंडल विजयी रहे थे

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