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किशनगंज : गर्मी की तपिश बढ़ते ही जिले में भू-जलस्तर धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगा है. लिहाजा चापाकल, बोर्डिंग इत्यादि से पहले की तुलना में कम पानी निकल रहा है. कहीं-कहीं तो जलस्रोत सूखने लगें हैं. पूर्व से शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे जिले वासियों के लिए अब आयरनयुक्त पानी भी जमीन से निकालने में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 23, 2019 4:38 AM

किशनगंज : गर्मी की तपिश बढ़ते ही जिले में भू-जलस्तर धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगा है. लिहाजा चापाकल, बोर्डिंग इत्यादि से पहले की तुलना में कम पानी निकल रहा है. कहीं-कहीं तो जलस्रोत सूखने लगें हैं.

पूर्व से शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे जिले वासियों के लिए अब आयरनयुक्त पानी भी जमीन से निकालने में भाड़ी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है. पानी की कमी न रहे, इसके लिए बारिश के पानी का संरक्षण व संग्रहण का उपाय सबसे बेहतर और पुराण है.
यह लगातार गिरते जा रहे भू-जल स्तर के लिहाज से न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे पानी की किल्लत को भी दूर किया जा सकता है. वर्षा जल संरक्षण की प्रक्रिया कई स्तरों पर अपनायी जाती है. मकानों व सार्वजनिक जगहों से लेकर तालाब व कुआं जैसे प्राकृतिक स्रोत के माध्यम से वर्षा जल संग्रहण को लेकर सरकारी स्तर पर भी कई योजनाएं बनायी गयी हैं.
लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी व सरकारी एजेंसियों की लापरवाह कार्यशैली की वजह से योजनाएं अब तक अपेक्षित मुकाम को हासिल नहीं कर सकी हैं. यही कारण है कि जिले के कई इलाकों में भू-जल स्तर लगातार गिर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि हर साल औसतन एक से दो फीट भू-जल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है.
ऐसे में जिले के सीमावर्ती इलाकों में एक दशक पहले जहां 10 से 12 फीट के अंदर पानी मिल जाता था.अब स्थिति ऐसी है कि कई इलाके में यह 18 से 20 फीट नीचे तक पानी उपलब्ध हो रहा है. कई इलाके में तो 30 फीट या उससे नीचे जमीन के अंदर तक साफ पानी तो मिल रहा है. लेकिन उसके बाद मिलने वाले पानी का रंग काला होता है.
जल संग्रहण की कोई योजना धरातल पर नहीं
भूगर्भ जल को रिचार्ज करने के लिए वर्षा का पानी तालाबों, कुओं, नालों के जरिये धरती के भीतर इकट्ठा होता है. लेकिन अधिकांश तालाब अवैध कब्जों के कारण नष्ट हो गये हैं तो कुओं का भी अस्तित्व नष्ट हो चुका है. नालों एवं नदियों में बारिश के पानी की बजाय शहरों और कारखानों का जहरीला पानी बह रहा है.
शहर की लाइफ लाइन रमजान नदी गंदे नाले में तब्दील है तो ,कनकई, बूढ़ी कनकई पूरी तरह से सूखने के कगार पर है, तो महानंदा, मेची आदि नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी हैं. इस कारण वाटर रिचार्ज नहीं हो रहा. सरकारी स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की योजना यहां कोसों दूर है.

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