कैमूर में नशे का नया-नया तरीका नाबालिगों को ले जा रहा अंधकार में, आपराधिक वारदात का बन रहा कारण

समाजसेवी बिरजू सिंह पटेल ने कहा कि जिले में बाल अपराधियों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि के आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, जिनके कंधों पर देश की बागडोर टिकी है. उनका आपराधिक वारदात में संलिप्त होना एक गंभीर मामला है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2022 3:15 AM

कैमूर जिले के शहरों या देहाती इलाकों में शराब पीने या बेचने का शोर भी अब मद्धिम पड़ने लगा है. लेकिन, चिंताजनक बात यह है कि शराबबंदी के बाद नशे का तरीका बदल गया है. क्योंकि, शराबबंदी के बाद विकल्प के तौर पर अब नशे के आदि लोग या नाबालिग बच्चे गांजा, व्हाइटनर, सनफिक्स, गोमफिक्स, फोर्टबीन सूई आदि का उपयोग कर रहे हैं. जिले में इसके सबसे अधिक शिकार युवा व किशोर हो रहे हैं. रूमाल या छोटे कपड़े में थीनर, व्हाइटनर को डाल कर उपयोग करने के चलते कई युवकों व खास कर किशोरों के परिजन परेशान हैं.

शराब से कहीं ज्यादा घातक इस नशीले पदार्थ की लत की जद में आ चुके कई किशोर या युवा चलते-फिरते आपको सड़कों पर आराम से मिल जायें. इसी वजह से शहर सहित जिले में आपराधिक मामलों में नाबालिगों की संलिप्तता बढ़ती जा रही है. फिलहाल की बात करे, तो ऐसा कोई जुर्म नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल नहीं हो. बाइक व मोबाइल चोरी व छिनतई से लेकर दुष्कर्म और हत्या जैसे संगीन मामलों में भी नाबालिगों की बढ़ती तादाद केवल पुलिस प्रशासन के लिए नहीं, बल्कि सभी सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय बनने लगा है.

इधर, शहर के पटेल कॉलेज के प्रोफेसर जगजीत सिंह कहते हैं कि नाबालिगों का आपराधिक घटनाओं में संलिप्त होना बेहद गंभीर मामला हो गया है. पारिवारिक व सामाजिक बदलाव का असर बच्चे के नाजुक दिलों-दिमाग पर भी हो रहा है. परिवार में उचित देखभाल की कमी एवं नैतिक शिक्षा नहीं मिलने से भी बच्चे नशे व अपराध की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते नाबालिगों में आक्रामकता की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के लिए यह मुद्दा चिंता का विषय बन गया है.

इधर, समाजसेवी बिरजू सिंह पटेल ने कहा कि जिले में बाल अपराधियों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि के आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, जिनके कंधों पर देश की बागडोर टिकी है. उनका आपराधिक वारदात में संलिप्त होना एक गंभीर मामला है. ऐसे में अभिभावकों व परिजनों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. बच्चों के रहन-सहन एवं उनके मित्रों के संबंध में जानकारी रखना जरूरी है.

सीधे दीमाग पर पड़ता है व्हाइटनर व थिनर का असर

डेंडराइट, सनफिक्स और व्हाइटनर का ज्यादा सेवन सीधे दिमाग पर अटैक करता है, जिससे दिमाग की नसें सूखने लगती हैं और सोचने की क्षमता कम होती जाती है, जबकि फोर्टबीन इंजेक्शन और कोडीन युक्त कफ सीरप के लगातार इस्तेमाल से कंफ्यूज होना, याद्दाश्त का कमजोर होना, लीवर में गड़बड़ी और पेट व सीने में दर्द जैसी समस्या पैदा होती है. फेविकोल, सुलेशन, लिक्विड, इरेजर और व्हाइटनर सूंघने की लत से निराशा और एनिमिया का खतरा बढ़ जाता है. इसके लगातार प्रयोग से पौरूष क्षमता भी कम हो जाती है. सदर अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ विनय तिवारी के अनुसार, गांजा-भांग अधिक मात्रा लेने पर सांस लेने में दिक्कत आती है और मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है. लती को समय से नशा नहीं मिले, तो निराशा उत्पन्न होती है और सपने में जीने की आदत पड़ जाती है. इसके अलावे इन नशों के सेवन से बाल अपराध वाले कृत्य, घर से या स्कूल से भाग जाना, अपने पारिवारिक सदस्यों के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करना वैसी आदतें बन जाती हैं.

कौन होते हैं बाल अपराधी

भारतीय कानून के अनुसार 16 वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर ऐसा कोई कृत्य करें, जो समाज या कानून की नजर में अपराध है, तो ऐसे लोगों को बाल अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है. हमारा कानून यह स्वीकार करता है कि किशोरों द्वारा किये गये अनुचित व्यवहार के लिए किशोर स्वयं नहीं, बल्कि परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं. इसी वजह से देश में किशोर अपराधों के लिए अलग कानून और न्यायालय है. बाल अपराधियों को दंड नहीं दिया जाता, बल्कि उनमें सुधार के लिए उन्हें बाल सुधार गृह में रखा जाता है और उन्हें सुधरने का मौका दिया जाता है. कैमूर में भी बाल अपराध के बाद बाल कैदियों को सुधरने के लिए आरा स्थित बाल सुधार गृह में भेजा जाता है.

किशोरों के भटकने के कई कारण

किशोरों के आपराधिक कांडों में शामिल होने के कई कारण हैं. इसमें फिल्में व टेलीविजन खासकर मोबाइल की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है. कई प्रकार के कार्यक्रमों में जिस तरह से अपराध और हिंसा करनेवालों को नायक के रूप में दिखाया जाता है, उसका बच्चों व किशोरों के दिमाग पर बुरा असर होता है. उपभोक्तावादी संस्कृति भी इसका एक पहलू है. शाॅर्टकट में पैसा कमाने की लालसा इस समस्या का प्रमुख कारण है. आज चमक-दमक सभी नैतिक मूल्यों पर हावी हो रहा है. इसके कारण बच्चों में हर वस्तु को पाने की लालसा बढ़ गयी है. बच्चों की मांगें जब पूरी नहीं होती हैं, तो मासूम बच्चे गुमराह होकर नशा व अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं. अक्रामक प्रवृत्ति व अपराध के लिए कुछ हद तक हार्मोन भी उत्तरदायी है. बच्चों का शारीरिक विकास समय से पूर्व से हो रहा है. इस कारण बच्चों में हार्मोन की सक्रियता अतीत के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गयी है. नित्य अनुपात से हार्मोन के अधिक सक्रिय से आक्रामक प्रवृत्ति बच्चों में तेजी से बढ़ रही है.

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