Chaitra Navratri: बिहार के इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी मुरादें होती हैं पूरी, कच्ची मिट्टी और लाखोरी से बना है मंदिर

गया के टेकारी स्थित केसपा गांव में मां दुर्गा का एक मंदिर है. कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती है. जानिए इस मंदिर की क्या है खासियत

By Anand Shekhar | April 7, 2024 8:03 PM

विजय पांडेय, टिकारी. मंगलवार से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2024) के साथ ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है. नवरात्र को लेकर देवी मंदिरों में साफ-सफाई का काम शुरू हो गया है. लोग अपने घरों में कलश की स्थापना भी करते हैं. मां दुर्गा के भक्तगण नौ दिनों तक व्रत रखते हैं. चैती नवरात्र पूजा के दौरान ही चैती छठ पूजा व रामनवमी का आयोजन होता है. टिकारी से 11 किलोमीटर उत्तर स्थित केसपा गांव में मां तारा देवी का मंदिर है. यहां सालों भर पूजा-अर्चना कि जाती है, लेकिन नवरात्र में यहां का महत्व बढ़ जाता है. इस मंदिर में दूर-दूर से भक्तगण माता के दर्शन को आया करते हैं.

महर्षि कश्यप मुनि ने बनवाया था मंदिर

इस बार नवरात्र में भक्तों के स्वागत के लिए मंदिर परिसर को सजाया गया है. अस्थायी दुकानें भी सज रही हैं. यह मंदिर धार्मिक और लोक आस्था का शक्तिपीठ माना जाता है. प्राचीन काल में महर्षि कश्यप मुनि का आश्रम इसी ग्राम में था. उन्हीं के नाम पर इस गांव का नामकरण कश्यपा पड़ा. कालांतर में अपभ्रंश होकर केसपा के नाम से जाना जाने लगा. मान्यता है कि महर्षि कश्यप मुनि के द्वारा ही मां तारा देवी का मंदिर बनवाया गया था. आज भी उसी पुराने मंदिर में मां की प्रतिमा विराजमान है.

कच्ची मिट्टी और लाखोरी से बना है मंदिर

कच्ची मिट्टी और लाखोरी (गदहिया) ईंट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवारें पांच फुट मोटी हैं. गर्भ गृह की सुंदर नक्काशी मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. गर्भ गृह में विराजमान मां तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उत्तर विमुख आठ फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है. मां तारा देवी के दोनों ओर दो योगिनी खड़ी है. मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा है. मंदिर परिसर में एक त्रिभुजाकार विशाल हवन कुंड है. इसमें सालों भर आहुति दी जाती है. यह हवनकुंड कभी भरता ही नहीं है. इस हवनकुंड से आज तक कभी राख नही निकाला गया.

मंदिर में बलि प्रथा पर है रोक

मंदिर में लगभग एक सदी पूर्व बली प्रथा कायम थी. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के यात्राकार व धर्मज्ञाता पंडित राहुल सांकृत्यायन ने 1924 में केसपा गांव का भ्रमण किया था. उन्हीं दिनों पश्चिम बंगाल के वीर रामचंद्र ने भी केसपा गांव का भ्रमण किया था. उन दोनों महापुरुषों की प्रेरणा से स्थानीय ग्रामीण स्व पारस सिंह व स्व प्रयाग नारायण सिंह ने स्थानीय ग्रामीणों की सहायता से बलि प्रथा पर रोक लगायी.

धर्म ज्ञाता वीर रामचंद्र द्वारा लिखित पुस्तक ”विकट यात्रा” में उनके केसपा गांव भ्रमण का वर्णन है एवं उस पुस्तक में उन्होंने विशेष रूप से इन दोनों के योगदानों का उल्लेख किया है. नवरात्र में मां तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस अवसर पर श्रद्धालुओं व भक्तजनों द्वारा देवी के समक्ष घी के दीये जलाये जाते हैं, जो नौ दिन तक अनवरत जलता है. अष्टमी की रात में माता का विशेष शृंगार किया जाता है. शृंगार दर्शन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए अपार भीड़ उमड़ती है.

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