बोधगया : हिंदी साहित्य के प्रति नये विमर्श का नाम है नामवर सिंह

एमयू के हिंदी विभाग में आयोजित हुई संगोष्ठी बोधगया : मगध विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शनिवार को डाॅ नामवर सिंह के स्मृतिशेष पर डाॅ नामवर सिंह के आलोच्य संस्कृति विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का उद्घाटन एमयू के कुलसचिव कर्नल प्रणव कुमार ने किया. विशिष्ट अतिथि मगध विवि के डीएसडब्ल्यू […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 17, 2019 9:25 AM

एमयू के हिंदी विभाग में आयोजित हुई संगोष्ठी

बोधगया : मगध विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शनिवार को डाॅ नामवर सिंह के स्मृतिशेष पर डाॅ नामवर सिंह के आलोच्य संस्कृति विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का उद्घाटन एमयू के कुलसचिव कर्नल प्रणव कुमार ने किया.

विशिष्ट अतिथि मगध विवि के डीएसडब्ल्यू प्रो सत्यरत्न प्रसाद सिंह ने कहा कि डाॅ नामवर सिंह हिंदी साहित्य के प्रति एक नये विमर्श का नाम है. उन्होंने साहित्य जगत को आलोचना और संस्कृति के प्रति नया विमर्श दिया है. आधुनिक भारत में उन्होंने मार्क्सवाद और आलोचना के माध्यम से सामाजिक सरोकार को पूर्ण करने की कोशिश अपनी लेखनी के माध्यम से किया. इस अवसर पर अध्यक्षता करते करते हुए हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो विनय कुमार ने कहा कि डाॅ नामवर सिंह के कृति और लेख समसामयिक और साहित्य को उन्नत करने वाले हैं.

उनकी आलोचना को समझने के लिए सभी साहित्य को जानने और समझने वाले लोगों को पढ़ना जरूरी है. इस मौके पर मानविकी संकाय के छात्र प्रतिनिधि कुणाल किशोर ने अपने वक्तव्य में कहा कि सभी असहमतियों के साथ भी नामवर सिंह के प्रति सहमति नामचीन साहित्यकारों ने किया है.

इससे ज्ञात होता है कि इनकी लेखनी और विचार साहित्यकारों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं. मौके पर दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के प्राध्यापक योगेश प्रताप शेखर ने कहा कि 60 सालों से नामवर सिंह प्रमुख आलोचक की श्रेणी में हैं, क्योंकि उन्होंने साहित्य जगत के लेखक और साहित्यकार को एक नयी संस्कृति दी है. मुख्य वक्ता डाॅ प्रभा दीक्षित ने कहा कि महिला अस्मिता और विमर्श के लिए नामवर सिंह का योगदान हिंदी साहित्य में उनकी आलोचनाओं को अध्ययन के साथ समझ सकते हैं.

शोधार्थियों और विधार्थियों को समसामयिकता को समझने और लिखने के लिए डाॅ नामवर सिंह को पढ़ना जरूरी हैै. अपनी लेखनी की शुरुआत की. उनके निधन के बाद हिंदी साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति हुई है.इस संगोष्ठी को हिंदी विभाग के प्राध्यापक डाॅ भरत सिंह व डाॅ सुनील कुमार ने भी संबोधित किया.

कमलेश कुमार, प्रवेश कुमार, कस्तुरी लाल, सत्येंद्र कुमार, दिवाकर कुमार, मणिकांत कुमार, शारदा कुमारी, वंदना कुमारी, प्रियंका कुमारी, विश्वलता, सुधा कुमारी, पाॅल्टी, चंचला कुमारी, बबिता कुमारी, चंदन कुमार, आदि सैकड़ों शोधार्थी छात्र- छात्राएं संगोष्ठी में शामिल हुईं.

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