मगध प्रमंडल में एक फीसदी नवजातों का 24 घंटे में हो पाता है हेल्थ चेकअप

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ खुलासा घर में जन्म लेनेवाले बच्चों को मिलनेवाली प्राइमरी हेल्थ सेवा पर किया सर्वे गया : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की एक रिपोर्ट बेहद चौकाने वाली है. यह रिपोर्ट बता रही है कि मगध प्रमंडल में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अब भी बहुत काम करने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 20, 2018 2:45 AM

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

घर में जन्म लेनेवाले बच्चों को मिलनेवाली प्राइमरी हेल्थ सेवा पर किया सर्वे
गया : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की एक रिपोर्ट बेहद चौकाने वाली है. यह रिपोर्ट बता रही है कि मगध प्रमंडल में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अब भी बहुत काम करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट के मुताबिक घर में जन्म लेनेवाले बच्चों में मात्र एक प्रतिशत का ही 24 घंटे के भीतर हेल्थ चेकअप हो पाता है. इससे स्पष्ट है कि प्रमंडल के जिलों में अब भी जागरूकता की कितनी कमी है. यह रिपोर्ट स्वास्थ्यकर्मियों की लापरवाही को भी दर्शाता है. जिन्हें इन सभी चीजों पर नजर रखनी है, उन्हें शायद कोई फिक्र ही नहीं है. एनएफएचएस की टीम ने प्रमंडल के पांच जिले गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल व नवादा में इस विषय पर सर्वे कराया.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रमंडल में मात्र 13.6% नवजातों को दो दिनों के भीतर स्वास्थ्य जांच के लिए ले जाया जाता है. कुल मिला कर यह रिपोर्ट साबित करती है कि ऊपरी स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की चाहे जितनी भी उपलब्धी गिनायी जाये, हकीकत यह है कि ग्राउंड लेवल पर अब भी बहुत कमी है.
कितना जरूरी है 24 घंटे में स्वास्थ्य जांच किसी भी नवजात के लिए उसके पहले 24 घंटे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान यह तय हो जाता है कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उसका भविष्य कैसा होगा. वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विजय करण कहते हैं सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में जो बच्चे जन्म लेते हैं उनकी तो वहां स्वास्थ्य जांच हो जाती है. लेकिन, यह भी हकीकत है कि अब भी बड़ी संख्या में बच्चों का जन्म घरों में ही हो जाता है. मामला यहीं गंभीर है. किसी बच्चे की जन्म के 24 घंटे के भीतर स्वास्थ्य जांच बहुत जरूरी होती है. इस दौरान उसके शरीर की बाहरी और अंदरूनी भागों की जांच होती है.
इसमें जांडिस, टेटनस समेत कई बीमारियों की जांच होती है. कुछ गंभीर मामले इसी दौरान पकड़ में आ जाते हैं, जिनका इलाज कर दिया जाता है. डाॅ करण ने बताया कि ठीक इसी तरह दो दिनों के भीतर भी जांच जरूरी होती है. जन्म के बाद बच्चा बाहरी वातावरण में रहता है. कई लोग उसे छूते हैं, दुलारते हैं. ऐसे में बहुत संभावना होती है कि उसे इंफेक्शन हो जाये. इसलिए दो दिनों के भीतर और उसके बाद भी चिकित्सकों के संपर्क में रहना बहुत जरूरी होता है.
गांवों में जागरूकता की है जरूरत
शहरी क्षेत्र में तो लोग इस लेवल पर जागरूक जरूर होते हैं कि बच्चा अगर घर में भी पैदा ले तो 24 घंटे के भीतर उसे किसी डाॅक्टर या हेल्थ एक्सपर्ट के पास ले जायें. लेेकिन, ग्रामीण स्तर पर इसकी बहुत कमी है. दाई (डगरीन) के भरोसे होनेवाले प्रसव में स्वास्थ्य पर ध्यान दिया गया होगा, यह सोचा नहीं जा सकता. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की टीम ने भी प्रमंडल में सर्वे के दौरान भी गांव पर ही फोकस किया. रिपोर्ट में यह दर्ज भी है.
उसमें लिखा है कि प्रमंडल के सभी जिले में 70 % आबादी या तो ग्रामीण है या फिर ग्रामीण परिवेश के संपर्क में रहती है. इस रिपोर्ट के बाद ग्रामीण स्तर पर काम कर रही मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जिन्हें आशा दीदी के नाम से जाना जाता है, उनके काम काज पर सवाल पैदा होता है. इन कार्यकर्ताओं को रखा ही इसलिए जाता है कि वह गांव के हर घर के संपर्क में रहे. बच्चे के जन्म से लेकर घर के किसी भी सदस्य को बीमारी हो तो, उसे समय पर स्वास्थ्य सेवा मिल सके. यह काम आशा दीदीओं का है. इनकी जिम्मेदारी यह भी कि लोगों को स्वास्थ्य के मामले में जागरूक करें.
नवजात मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण
मगध मेडिकल काॅलेज में कार्यरत शिशु रोग चिकित्सक डाॅ रविंद्र कुमार ने बताया कि देश में नवजात मृत्यु दर को कम करना बहुत बड़ी चुनौती है. किसी भी बच्चे को जन्म के बाद स्वास्थ्य जांच की बहुत जरूरत होती है. परिवार के लोग लापरवाही में अगर ऐसा नहीं कराते हैं, तो यह उनके बच्चे के जीवन के लिए बड़ा खतरा है. कई मामले ऐसे आते हैं, जिनमें बच्चे की जांच नहीं होने की वजह से उसकी बीमारी समय रहते नहीं मालूम पड़ती. फिर उसकी मौत हो जाती है या फिर वह अपंग या दूसरी शारीरिक कमी का शिकार हो जाता है.
स्वास्थ्य को लेकर हुए एक सर्वे में यह जानकारी दी गयी कि देश में सबसे अधिक नवजात बच्चों की मौत नियोनेटल टेटनस की वजह से होती है. बिहार में केवल 36.4% बच्चों की मौत नियोनैटल टेटनस की वजह से हो जाती है. उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 61.99 % पर है.
घर में जन्मे बच्चों की 24 घंटे के भीतर स्वास्थ्य जांच का आंकड़ा
जिला बच्चों का प्रतिशत
गया 1.3
औरंगाबाद 0.9
अरवल 0.0
जहानाबाद 1.6
नवादा 1.7
घर में जन्मे बच्चों की दो दिनों में स्वास्थ्य जांच का आंकड़ा
गया 20.2
औरंगाबाद 6.1
अरवल 8.1
जहानाबाद 33.6
नवादा 17.2

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