Kojagara Laxami Puja 2020 Date: मिथिला का लोकपर्व कोजागरा आज, पच्चीसी खेलने की तैयारी में जुटे लोग

चांदी के कौड़ी से भाभी के साथ चौसा (पच्चीसी) खेलते है. इस दौरान महिलाओं के बीच हास परिहास भी चलते रहता है.

By Prabhat Khabar | October 30, 2020 12:10 PM

पंडौल : शरादीय नवरात्र के बाद मिथिलांचल में नवविवाहिताओं के लिये खास महत्व रखने वाला लोकपर्व कोजागरा को लेकर घर-घर में उत्साह का माहौल है. कोजागरा पर्व शुक्रवार को मनाया जायेगा. मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात पूनम की चांद से अमृत की वर्षा होती है. और जो जागता है. वहीं अमृत पान भी करता है.

खास कर नव विवाहित वर अपने विवाह के पहले वर्ष में इस अमृत का पान करें तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है. इसी कामना को लेकर यह लोकपर्व मिथिला में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. कोजागरा को लेकर बाजारों में भी चहल पहल बढ़ गई है.

मिथिला में किम्बदंती है कि चन्द्रमा से जो अमृत की बूंद टपकती है उसी ने मखाना का रूप ले लिया है. ऐसा भी कहा जाता है कि स्वर्ग में भी पान और मखान दुर्लभ है. वहीं कोजागरा के दिन मिथिलांचल में प्रत्यके घर में लक्ष्मी पूजा की परंपरा है. लोग सोना और चांदी के सिक्के को लक्ष्मी बनाकर पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

कोजागरा का है विशेष महत्व

कोजागरा की रात चांद की दूधिया रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है जिससे पृथ्वी का सौंदर्य निखर आता है. मानो देवी भी पृथ्वी पर आनंद की अनुभूति हेतु चली आती हैं.

शास्त्रों के अनुसार आश्विन पूर्णिमा की रात जगत की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी जब वैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आते समय देखती है कि उनका भक्त जागरण कररहा है या नहीं इसी कारण रात्रि जागरण को कोजागरा कहा गया है.

पच्चीसी खेलने का है विधान

कोजागरा की रात घर के सभी लोग वर के चुमाउन के बाद ससुराल से आये मिठाई एवं मखाना का वितरण करने के बाद चांदी के कौड़ी से भाभी के साथ चौसा (पच्चीसी) खेलते है. इस दौरान महिलाओं के बीच हास परिहास भी चलते रहता है. कहा जाता है कि कोजागरा के दिन जुआ खेलने से साल भर धन की कमी नहीं होती है. अन्य दिनों में चाहे जुआ खेलना जितना भी बुरा माना जाता हो, लेकिन आज की रात जुआ खेलने की परंपरा लोग निभाने से पीछे नहीं रहते.

ससुराल से आता है चुमाउन का डाला

मिथिला में विवाह के अवसर पर डाला सजाकर ही चुमाउन किया जाता है. लेकिन कोजागरा का डाला प्रसिद्ध है. अवसर पर बांस का बना डाला पर धान, पान, मखान, नारियल, जनेऊ, सुपारी से सजाकर कलात्मक वृक्ष, मिठाई की थाली, छाता, छड़ी व वस्त्र की सजावट देखते ही बनता है.

कोजागरा के दिन वर के ससुराल से पूरे परिवार के लिये नया वस्त्र, पकवान, मिठाई, मखान, डाला एवं चुमाउन की सामग्री आती है. जिसे घर की महिलाएं आंगन में शरद पूर्णिमा की रात अष्टदल कमल का अरिपन बनाती है. जिस पर डालना रखकर वर का चुमाउन किया जाता है. इसके बाद बड़े बुजुर्गो के द्वारा आर्शर्वाद दिया जाता है. इसके बाद ग्रामीणों के बीच ससुराल से आये मिठाई एवं मखाना का वितरण किया जाता है.

मखाना और बतासा के दाम में हुई बढ़ोतरी

कोजागरा को लेकर मखाना और बतासा सहित अन्य सामान के दाम में बढ़ोतरी हो गइ्र है. जहां मखाना छह सौ से 8 सौ रुपये प्रति किलो मिल रहा है. वहीं बतासा 180 से 200 रुपये किलो, लड्डू 140 रुपये किलो, दही 124 रुपये किलो मिल रहा है. वहीं कोजागरा में पान का महत्व देखते हुये 150 रुपये ढ़ोली तो सुपाड़ी 460 रुपये किलो तक हो गया है.

Posted by Ashish Jha

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