सफेद सोना कहे जाने वाले इस फसल से होते हैं कई फायदे, जानें इसके उपयोग

प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशेवाली नकदी फसल है. भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है. विश्व में इसकी लागातार बढ़ती खपत और विविध उपयोग के कारण कपास की फसल को सफेद सोने के नाम से जाना जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 29, 2022 6:44 PM

प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशेवाली नकदी फसल है. भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है. चीन पहले नंबर पर आता है. कपास मालवेसी कुल का सदस्य है. कपास के पौधे बहुवर्षीय और झड़ीनुमा वृक्ष जैसे होते है. कपास का देश की औद्योगिक व कृषि अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है. विश्व में इसकी लागातार बढ़ती खपत और विविध उपयोग के कारण कपास की फसल को सफेद सोने के नाम से जाना जाता है.

कपास की खेती सिंचित और असिंचित क्षेत्र में की जा सकती है

कपास के फूल सफेद अथवा हल्के पीले रंग के होते है. कपास की फसल उत्पादन के लिये काली मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है. कपास की खेती सिंचित और असिंचित क्षेत्र दोनों में की जा सकती है. भारत में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन गुजरात में होता है. कपास मे मुख्य रूप से सेल्यूलोस होता है. कपास से बने वस्त्र सूती वस्त्र कहलाते है. कपास भारत में महत्वपूर्ण कृषि उपज में से एक है. कपास तीन प्रकार के होते हैं लम्बे रेशे वाली कपास, मध्य रेशे वाली कपास और छोटे रेशे वाली कपास.

सह फसली खेती से ज्यादा लाभ अर्जित किया जा सकता हैं

भारत सरकार के द्वारा स्थापित कपास उद्योगिक अनुसन्धान प्रयोगशाला (मान्टुगा) तथा केन्द्रीय कपास अनुसन्धान केंद्र नागपुर के द्वारा कपास की कुछ उन्नत किस्मों का विकास किया गया है. वे हैं AK-277, बराहलक्ष्मी, सुजाता, Mln -2,3 और महालक्ष्मी. कपास की फसल के साथ सह फसली खेती करके ज्यादा लाभ अर्जित किया जा सकता हैं. कपास की पंक्तियों के बीच में खाली स्थान भी अधिक होता है. जिसमें मूंगफली,मूंग और उड़द जैसी फसलों की बुवाई कर अतिरिक्त मुनाफा अर्जित किया जा सकता है.

खरपतवार और कीट रोग का प्रकोप होता है कम

कपास के साथ सह फसली खेती भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में और नमीं सरंक्षण में सहायक होती है.ऐसी खेती से कपास में खरपतवार और कीट रोग का प्रकोप भी कम होता है. कपास से मुख्यतः व्यवसायिक रेशे प्राप्त किये जाते हैं और बीज के द्वारा तेल भी उत्पादित किया जाता है. यह मुख्यतः सेल्युलोज का एक प्रमुख स्रोत होता है. इसीलिए इसे सेल्युलोज उपयोग में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है.

कपास का आर्थिक महत्व

इसके रेशो से सूती कपड़े और अमिश्रित कपड़े होजरी के सामान का निर्माण किया जाता है. इसके अलावा कपास से कम्बल,रजाई , गद्दे , तकिया आदि भी बनाया जाता है.कपास की खेती भरत में मुख्यतः महाराष्ट्र , गुजरात , कर्नाटक , मध्यप्रदेश , पंजाब , राजस्थान , उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में की जाती है.भारत में कपास की खेती प्राचीन समय से संपन्न की जा रही है. कपास के बीज से अर्द्धशुष्क प्रकार का तेल प्राप्त किया जाता है जिसे खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है.

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