परंपरा ही निभा रहे ढोलक बेचनेवाले, पेट भरना मुश्किल

बक्सर : शादी-विवाह का मौसम शुरू है. मगर उन घरों में ढोलक की आवाज नहीं सुनाई पड़ रही है, जहां रस्म-रिवाज पूरी की जा रही है. शायद यही कारण है कि अब गांव की गलियों में ढोलक बेचनेवाले नहीं दिखते है. जबकि पहले ढोलक की थाप पर घर में महिलाएं संगीत की लहरों का आनंद […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 24, 2019 5:54 AM

बक्सर : शादी-विवाह का मौसम शुरू है. मगर उन घरों में ढोलक की आवाज नहीं सुनाई पड़ रही है, जहां रस्म-रिवाज पूरी की जा रही है. शायद यही कारण है कि अब गांव की गलियों में ढोलक बेचनेवाले नहीं दिखते है. जबकि पहले ढोलक की थाप पर घर में महिलाएं संगीत की लहरों का आनंद लेती थी.

ढोलक के बिना संगीत की साज अधूरी मानी जाती है. इसकी आवाज निराली होती है और तो और ढोलक मंगल गीतों में ताना जाता था. शादी-विवाह में शुभ मानकर पूजा भी की जाती है.
इसके बनाने व बेचने वाले इसी से अपना जीविकोपार्जन करते थे. मगर अब ढोलक बेचनेवालों के सामने पेट भरने की समस्या खड़ी हो गयी है. जबकि प्राचीन काल से ढोलक की महत्ता रही है. महाभारत काल में जब पांडव वनवास गये थे तो अर्जुन ने ढोलक बजाकर अपने भाई भीम से कीचक को मरवाया था.
इसके पीछे भी किवंदंतिया प्रचलित है. तानसेन व गंधर्व के शासनकाल में भी ढोलक ने अपनी वजूद का परचम लहराया, संगीत के क्षेत्र में इसकी विशेष पहचान है. बिरहा गायकों के लिए यह एक हथियार है. ढोलक के साज पर ही कवियों की महफिल सजती है.
प्राय: प्रत्येक संगीत क्षेत्र में इसकी पहचान है. आॅरकेस्ट्रा पार्टी, नौटंकी, भांगड़ा आदि नृत्य में भी ढोलक जोरदार तरीके से बजाया जाता है. शादी के मौके पर ढोलक की थाप बजती है. उड़द छूने से लेकर तिलक, सगाई व रात्रि शुभ मंगल गीतों में स्त्रियां ढोल बजाकर गाती है. मगर आज के दौर में ढोलक बेचने वाले एक परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.

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