BAU का कमाल! बिहार में अब आम की गुठलियां भी नहीं होंगी बेकार, बदलेगी खेती की सूरत  

Mango Seed Hydrogel: वैसे तो आम की गुठलियों को बेकार समझा जाता है, लेकिन यही गुठलियां अब किसानों की आमदमी का माध्यम बनेंगी. बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के वैज्ञानिकों ने आम की गुठली के बीज से बायोडिग्रेडेबल हाइड्रोजेल बनाया है. इस हाइड्रोजेल में पानी रोकने की अद्भूत क्षमता है.  

By Rani Thakur | August 23, 2025 3:23 PM

Mango Seed Hydrogel: वैसे तो आम की गुठलियों को बेकार समझा जाता है, लेकिन यही गुठलियां अब किसानों की आमदमी का माध्यम बनेंगी. इन गुठलियों को लेकर एक विशेष पहल की गई है. इस कड़ी में भागलपुर में बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के वैज्ञानिकों ने आम की गुठली के बीज से बायोडिग्रेडेबल हाइड्रोजेल बनाया है. इस हाइड्रोजेल में पानी रोकने की अद्भूत क्षमता है.  

केंद्र ने दी प्रमाणिकता

यह उपलब्धि न सिर्फ बेहतर खेती में मददे करेगी, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने, जल संरक्षण और टिकाऊ खेती को नई दिशा भी देगी. विश्वविद्यालय की इस खोज को केंद्र सरकार ने पेटेंट प्रदान करते हुए इसकी प्रमाणिकता भी दे दी है.

मिट्टी में बनेगी नमी बैंक

मिली जानकारी के अनुसार आम की गुठली से बने इस हाइड्रोजेल का स्टार्च अपने वजन से 400–500 गुना तक पानी सोख सकता है. खास बात यह है कि खेत की मिट्टी में मिलाने पर यह धीरे-धीरे पौधों को नमी उपलब्ध कराता है. इससे एक तो सिंचाई का खर्च घटेगा, फसल सुरक्षित रहेगी और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेती भी आसान हो जाएगी.

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किसानों के लिए नई अर्थव्यवस्था

बता दें कि भारत में हर साल करीब 4 करोड़ टन आम का उत्पादन होता है, जिसके साथ 40–50 लाख टन गुठलियां निकलती हैं. अब तक ये गुठलियां बेकार चली जाती थीं. एक टन गुठली से 100–120 किलो कर्नेल पाउडर बनाया जाता है. वहीं, हाइड्रोजेल में बदलने पर इसका मूल्य 5 से 7 गुना तक बढ़ जाता है.

बढ़ सकती है किसानों की आय

अगर सिर्फ बिहार और पूर्वी भारत की 25 प्रतिशत गुठलियों का भी उपयोग किया जाए, तो किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को हर साल 300–400 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हो सकती है. विश्वविद्यालय के अनुसार यह हाइड्रोजेल पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण-अनुकूल है.

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