Begusarai News : गढ़हरा यार्ड में नहीं हुए विकास के कार्य, 2200 एकड़ भूमि अब भी वीरान
साल दर साल सरकारें और जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन किसी ने भी गढ़हरा यार्ड की 2200 एकड़ वीरान भूमि पर नये औद्योगिक प्रतिष्ठान स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया.
बरौनी. साल दर साल सरकारें और जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन किसी ने भी गढ़हरा यार्ड की 2200 एकड़ वीरान भूमि पर नये औद्योगिक प्रतिष्ठान स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया. कभी एशिया का प्रसिद्ध पलटैया यार्ड कहा जाने वाला यह क्षेत्र आज उपेक्षा और बदहाली का प्रतीक बन चुका है. 1959 में स्थापित गढ़हरा यार्ड अपने स्वर्णकाल में लगभग 8000 कर्मचारियों को रोजगार देता था. यहां रेलवे वर्कशॉप, इंटर कॉलेज और एक बड़ा अस्पताल तक संचालित था. 1962 के भारत-चीन युद्ध में भी इस यार्ड ने विशेष भूमिका निभायी थी. दो राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा यह इलाका औद्योगिक दृष्टि से बेहद उपयुक्त रहा है. वर्ष 1994 में तत्कालीन रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ के कार्यकाल में छोटी लाइन वाष्प इंजन लोको शेड को बंद कर दिया गया, जिसके बाद धीरे-धीरे गढ़हरा यार्ड का महत्व घटता गया. आंदोलन और मांगों के बावजूद अब तक इस क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग या रेलवे परियोजना शुरू नहीं की गयी. 1997 में रेल मंत्री रामविलास पासवान ने एयर ब्रेक माल डिब्बा पुनर्कल्पन डिपो की आधारशिला रखी थी, लेकिन यह परियोजना हरनौत स्थानांतरित कर दी गयी. 2007 में लालू प्रसाद यादव ने वैगन पुनर्कल्पन डिपो की नींव रखी, पर वह भी अधर में लटक गयी. इसी तरह मेडिकल कॉलेज, आरओएच डिपो और कोच फैक्ट्री की योजनाएं भी केवल कागजों तक सीमित रह गयीं. गढ़हरा में कभी हजारों परिवारों की रोजी-रोटी लोडिंग-अनलोडिंग कार्य से चलती थी, पर अब वह इतिहास बन चुका है. वर्तमान में यहां केवल आरपीएसएफ की 11वीं बटालियन और विद्युत लोको शेड कार्यरत हैं, जबकि अधिकांश भूमि अब भी बेकार पड़ी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकार इच्छाशक्ति दिखाये तो इस विशाल भूमि पर औद्योगिक कॉरिडोर, एयरपोर्ट या रेलवे कारखाना स्थापित किया जा सकता है. फिलहाल गढ़हरा यार्ड अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है और विकास की उम्मीद लगाये बैठा है.
न खुला मेडिकल कॉलेज, न बन सका वीर सपूत का स्मारक
यार्ड की वीरान पड़ी 2200 एकड़ भूमि पर कोच फैक्ट्री भी स्थापित की जा सकती थी, लेकिन पर्याप्त जमीन और आधारभूत संरचना मौजूद होने के बावजूद यह फैक्ट्री पंजाब के कपूरथला में खोल दी गयी. जोनल कार्यालय भी गढ़हरा में न खोलकर हाजीपुर में स्थापित किया गया. वर्ष 1997 में तत्कालीन रेल मंत्री ने आरओएच डिपो का शिलान्यास किया था, लेकिन परियोजना जस की तस रह गयी. इसी वर्ष गृह सचिव बाल्मीकि प्रसाद सिंह ने गढ़हरा में रेलवे मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोलने की बात कही, पर यह भी अधूरा ही रह गया. स्थानीय लोगों के अनुसार गढ़हरा यार्ड में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर स्वतंत्रता सेनानी वीर उचित का स्मारक भी वर्षों से उपेक्षित पड़ा रहा. फिलहाल यह स्मारक आरपीएसएफ की 11वीं बटालियन मुख्यालय परिसर में स्थानांतरित किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब दो बार केंद्रीय मंत्री रहे, उसके बावजूद गढ़हरा की वीरान भूमि पर कोई औद्योगिक कल-कारखाना स्थापित नहीं किया गया, तो अब इसका भविष्य अंधकारमय ही प्रतीत होता है. लोग इस विशाल भूमि पर एयरपोर्ट और औद्योगिक परियोजनाएं स्थापित करने की मांग कर रहे हैं.
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