अब खादी भंडार की चमक हो गयी फीकी

मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने खादी उद्योग की तरक्की के लिए नयी-नयी योजना व रणनीति बनाने की बात कही, परंतु बांका स्थित खादी भंडार की सूरत अब तक नहीं बदल सकी है. बांका : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने खादी उद्योग के जरिये स्वरोजगार का जो अभियान चलाया था, वह आधुनिकता की चकाचौंध में दम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 18, 2018 6:26 AM

मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने खादी उद्योग की तरक्की के लिए नयी-नयी योजना व रणनीति बनाने की बात कही, परंतु बांका स्थित खादी भंडार की सूरत अब तक नहीं बदल सकी है.

बांका : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने खादी उद्योग के जरिये स्वरोजगार का जो अभियान चलाया था, वह आधुनिकता की चकाचौंध में दम तोड़ती नजर आ रही है. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री व इसके अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों ने खादी उद्योग की तरक्की के लिए नयी-नयी योजना व रणनीति बनाने की बात कही. परंतु बांका स्थित खादी भंडार की सूरत अबतक नहीं बदल सकी है. समय के साथ इसका ह्रास जारी है. आजादी के बाद कोई ऐसा हमदर्द नहीं मिल पाया है, जो खादी भंडार को पुरानी वाली रहिसी दे सके. यहां कभी गांधीवादियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमघट प्रतिदिन लगती थी, अब खामोशी का डेरा है.
महज दो अक्टूबर, 15 अगस्त, 26 जनवरी सहित अन्य राष्ट‍्रीय पर्व पर ही खादी भंडार की याद लोगों को रह जाती है. जी हां, भागलपुर खादी ग्राम उद्योग संघ के तहत बांका में संचालित बिक्री केंद्र की हालत पस्त हो गयी है. बिक्री तो ठप है ही, इसके साथ ही यहां रख-रखाव आदि पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है. एक मात्र महिला प्रबंधक किसी तरह अपनी मेहनत से देश की बड़ी संपदा को जोगने का काम कर रही है. जानकारों का कहना है कि जितनी बड़ी भूमि पर खादी भंडा है, अगर यह भूमि निजी होती तो आज यहां फाइव स्टार इमारत नजर आता. सरकार को चाहिए की वह बांका के ह्दय पर अवस्थित खादी भंडार के जीर्णोद्धार के लिए संकल्पित कार्ययोजना लेकर आए्, ताकि इसकी ख्याति समय के साथ और प्रभावशाली हो सके.
खादी भंडार में नहीं है पेयजल व रोशनी की समुचित व्यवस्था
गांधी भंडार प्रांगण काफी बड़ा है. गांधी की सोच से बने इस भवन में मजदूरों का जमावड़ा अक्सर कुछ समय के लिए लग ही जाता है. मजदूरी करने वाले लोग यहां आकर बैठते हैं और नास्ता-पानी कर वापस जाते हैं. परंतु यहां पेयजल की संकट है. इतने बड़े प्रांगण के मुख्य द्वार पर चापाकल खराब पड़ा हुआ है. यही एक स्ट्रीट लाईट भी नहीं लगाया गया है. बताया जाता है कि रात के अंधेरे में कभी-कभी यहां असामाजिक तत्वों का जमघट लग जाता है. अगर पर्याप्त रोशनी रहे तो हर आने-जाने वाले की निगाहों में यह बना रहेगा.
मूलभूत समस्या को दूर करने की जरूरत है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खादी कपड़ों की बिक्री में कैसे तेजी आये, इसके लिए जागरूकता फैलाने की जरुरत है. बिक्री बढ़ने व नये-नये संसाधन जुड‍़ने से खादी भंडार की रौनकता लौटने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.

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