Utpanna Ekadashi katha 2025: जानिए देवी एकादशी के जन्म की कथा और इस व्रत का धार्मिक महत्व

Utpanna Ekadashi 2025: मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष एकादशी को मनाई जाने वाली उत्पन्ना एकादशी को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र तिथि माना जाता है. आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी को इतना खास क्यों माना जाता है? और इस व्रत की कथा और महत्व.

By JayshreeAnand | November 14, 2025 9:21 AM

Utpanna Ekadashi katha 2025: हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है. पुराणों में इसे साल की सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक माना गया है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने माता एकादशी का जन्म बताया था. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है और मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

पुराणों के अनुसार एक समय अत्याचारी असुर मुर ने देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया था. उसके अत्याचारों से भयभीत होकर देवता श्रीहरि विष्णु के पास गए. विष्णु भगवान ने मुरासुर का अंत करने का संकल्प लिया और कई दिनों तक उससे युद्ध किया, लेकिन मुर अत्यंत बलशाली था.

देवी एकादशी का जन्म

कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु युद्ध से थककर हिमालय की एक गुफा में विश्राम करने लगे, तो मुरासुर ने वहां आकर उन पर हमला करने की कोशिश की. तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य ऊर्जा उत्पन्न हुई. वह ऊर्जा एक तेजस्वी देवी के रूप में प्रकट हुई. उसी देवी को “एकादशी” कहा गया. यह देवी इतनी शक्तिशाली थीं कि उन्होंने अकेले ही मुरासुर का वध कर दिया और देवताओं को भय से मुक्त किया.

विष्णु भगवान ने दिया आशीर्वाद

भगवान विष्णु उस दिव्य शक्ति से प्रसन्न हुए और कहा “हे देवी! आप धर्म की रक्षक होंगी. आपके नाम की तिथि पर जो भी व्रत करेगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे.” यहीं से उत्पन्ना एकादशी का आरंभ हुआ, क्योंकि इस दिन ही देवी एकादशी का ‘उत्पन्न’ यानी जन्म हुआ था.

व्रत का धार्मिक महत्व

उत्पन्ना एकादशी को मोक्षदायिनी माना गया है.

इस व्रत से काल-त्रास, अशुभ ग्रह-दोष और पापों का नाश होता है.

जो भक्त इस दिन उपवास करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ माना गया है जो मानसिक अशांति, रोग या दुर्भाग्य से परेशान हों.

व्रत कैसे करें? (सरल विधि)

सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें.

भगवान विष्णु को तुलसी, पीला पुष्प और घी का दीपक अर्पित करें.

विष्णु सहस्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें.

रात में जागरण करना अत्यंत शुभ माना गया है.

अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं.

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