Sarhul 2022: सरहुल पर्व आज, जान लें पूजा विधि, महत्व और इस दिन से जुड़ी कथाएं

Sarhul 2022: सरहुल उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है. इस साल सरहुल 4 अप्रैल यानी आज को है. सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है, जो झारखंड, उड़ीसा और बंगाल के आदिवासी द्वारा मनाया जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2022 2:57 PM

Sarhul 2022: सरहुल पर्व 4 अप्रैल यानी आज मनाया जा रहा है. सरहुल त्योहार प्रकृति को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. सरहुल आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है जो कि वसंत में मनाया जाता है. पतझड़ के बाद पेड़ पौधे खुद को नए पत्तों और फूलो से सजा लेते है, आम मंजरने लगता है सरई और महुआ के फूलो से वातावरण सुगन्धित हो जाता है. सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है, जो झारखंड, उड़ीसा और बंगाल के आदिवासी द्वारा मनाया जाता है. यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है. इसमें वृक्षों की पूजा की जाती है. यह पर्व नये साल की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है.

सरहुल से जुड़ी कथाएं

सरहुल से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं, उन में से एक महाभारत से जुडी कथा है. इस कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध चल रहा था, तब आदिवासियों ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया था, जिस कारण कई मुंडा सरदार पांडवों के हाथों मारे गए थे. इसलिए उनके शवों को पहचानने के लिए उनके शरीर को साल के वृक्षों के पत्तों और शाखाओं से ढका गया था.
इस युद्ध में ऐसा देखा गया कि जो शव साल के पत्तों से ढका गया था, वे शव सड़ने से बच गए थे और ठीक थे. पर जो अन्य चीजों से ढके गए थे वे शव सड़ गए थे. ऐसा माना जाता है कि इसके बाद आदिवासियों का विश्वास साल के पेड़ों और पत्तों पर बढ़ गया होगा, जो सरहुल पर्व के रूप में जाना जाता है.

पूजा के दौरान घड़े का पानी देख वार्षिक भविष्यवाणी करते हैं पाहन

प्रकृति पर्व सरहुल 4 अप्रैल सोमवार को हिंदू तिथि के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाएगा. गाव के पाहन अखरा में विधि-विधान पूर्वक आदिदेव सींग बोंगा की पूजा अनुष्ठान करेंगे. सुख समृद्धि के लिए मुर्गे की बलि देने की परंपरा निभाई जाएगी. ग्राम देवता के लिए रंगवा मुर्गा अर्पित किया जाएगा. पाहन देवता से बुरे आत्मा को गाव से दूर करने की कामना करेंगे. पूजा के दौरान पाहन घड़े का पानी देख वार्षिक भविष्यवाणी करेंगे.

इससे पूर्व रविवार को प्रकृति पूजक उपवास में रहकर जल रखाई की रस्म निभाई. सुबह में उपवास में रहकर केकड़ा और मछली पकड़ा गया. परंपरा के अनुसार विभिन्न मौजा के पाहन भी केकड़ा मछली पकड़ने की रस्म निभाया. परंपरा है कि घर के नए दामाद या बेटा केकड़ा पकड़ने खेत गए. पकड़े गए केकड़े को साल पेड़ के पत्ते से लपेट कर चूल्हे के सामने टागा गया. मान्यता है कि ऐसा करने से घर में खुशहाली आती है.

इससे पूर्व रविवार को प्रकृति पूजक उपवास में रहकर जल रखाई की रस्म निभाई. सुबह में उपवास में रहकर केकड़ा और मछली पकड़ा गया. परंपरा के अनुसार विभिन्न मौजा के पाहन भी केकड़ा मछली पकड़ने की रस्म निभाया. परंपरा है कि घर के नए दामाद या बेटा केकड़ा पकड़ने खेत गए. पकड़े गए केकड़े को साल पेड़ के पत्ते से लपेट कर चूल्हे के सामने टागा गया. मान्यता है कि ऐसा करने से घर में खुशहाली आती है.

वही संध्या में अखरा स्थल पर जल रखाई हुई. पास के नदी तालाब से दो घड़ा में पवित्र जल भर कर अखरा स्थल लाया गया. यहा पाहन ने पूजन कर जल रखाई का विधान पूरा किया गया. पानी की गहराई को साल के तनी से नापा गया. इसके बाद नए धागे से उनके सिरों को जोड़कर घड़े के ऊपर मिट्टी के बर्तन से ढका गया. हातमा में मुख्य पाहन जगलाल पाहन ने केकड़ा पकड़ने व संध्या पूजन संपन्न कराया गया.

Next Article

Exit mobile version