Sankashti Chaturthi 2020: संकष्टी चतुर्थी आज, पूजा के बाद यह पौराणिक कथा पढ़ने पर सभी मनोकामनाएं होती है पूरी

Sankashti Chaturthi 2020: आज संकष्टी चतुर्थी व्रत है. इस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा की जाती है. यह व्रत भादो के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिन रखा जाता है. इसे हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. संकष्टी चतुर्थी व्रत पर इसकी कथा का भी बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस कथा को सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मनचाहा फल प्राप्त होता है. व्रत रखने वाली महिलाएं इस कथा को जरूर पढ़. मान्यता है कि इस कथा को पढ़ने बिना पूजा अधूरी रह जाती है...

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2020 7:18 AM

Sankashti Chaturthi 2020: आज संकष्टी चतुर्थी व्रत है. इस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा की जाती है. यह व्रत भादो के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिन रखा जाता है. इसे हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. संकष्टी चतुर्थी व्रत पर इसकी कथा का भी बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस कथा को सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मनचाहा फल प्राप्त होता है. व्रत रखने वाली महिलाएं इस कथा को जरूर पढ़. मान्यता है कि इस कथा को पढ़ने बिना पूजा अधूरी रह जाती है…

यह कथा है भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का विवाह का. एक समय की बात है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का विवाह की तैयारी चल रही थी. सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए. लेकिन गणेशजी को इस विवाह के लिए आमंत्रित नहीं किया गया. विष्णु जी की बारात में सभी देवी-देवताओं ने देखा कि भगवान गणपति बारात में कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं. सभी देवताओं ने जानना चाहा कि गणपति को विवाह का बुलावा नहीं दिया गया है या वो अपनी मर्जी से विवाह में नहीं आए हैं. देवताओं ने भगवान विष्णु से गणेश जी की अनुपस्थिति का कारण जानना चाहा.

भगवान विष्णु ने उत्तर दिया भगवान शिव को न्यौता दिया गया है. गणेश उनके साथ आना चाहें तो आ सकते हैं. साथ ही यह भी कहा कि गणेश बहुत अधिक भोजन करते हैं. ऐसे में किसी और के घर ले जाकर हम उनको पेट भर भोजन कैसे करवाएंगे. उनकी यह बात सुनकर एक देवता ने यह सुझाव दिया कि गणपति को बुला लेते हैं, लेकिन उनको विष्णुलोक की रक्षा में यही छोड़ कर चले जाएंगे, इससे न बुलाने की चिंता भी खत्म हो जाएगी और उनके खाने की चिंता भी खत्म हो जाएगी. सबको यह उपाय पसंद आया.

गणेश सभी देवताओं के कहने पर वहां रुक गए लेकिन वो क्रोधित थे. तभी देवऋषि नारद वहां आए और उनसे बारात में न चलने का कारण पूछा. गणेश ने कारण बताया. साथ ही यह भी बताया कि वो भगवान विष्णु से गुस्सा हैं. देवऋषि ने गणेश जी को कहा कि बारात के आगे अपने चूहों की सेना को भेजकर रास्ता खुदवा दो. तब सबको आपकी अहमियत समझ आएगी. चूहों की सेना ने गणपति की आज्ञा पाकर आगे से जमीन खोखली कर दी. भगवान विष्णु का रथ वहीं जमीन में धंस गया. बहुत कोशिश करने पर भी कोई भी देवता उस रथ को गड्ढे से ना निकाल सके.

देवऋषि ने देवताओं से कहा कि विघ्नहर्ता गणेश को क्रोधित करने के कारण ऐसा हुआ है, इसलिए अब उन्हें मनाना चाहिए. सभी देवता गणेश के पास पहुंचे और उनका पूजन किया. इसके बाद रथ गड्ढे से निकला. लेकिन उसके पहिए टूट गए थे. फिर से देवता सोच में पड़ गए कि अब क्या करें. पास के खेत से खाती को बुलाया गया. खाती ने गणेश जी की वंदना कर पहिए ठीक कर दिए, जिसके बाद सभी देवी-देवताओं को विघ्नहर्ता गणेश को सर्वप्रथम पूजने का महत्व समझ में आया. उसके बाद विवाह विघ्नों के बिना सम्पूर्ण हुआ.

News posted by : Radheshyam kushwaha

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