Premanand Ji Maharaj: क्या पाप का धन दान से धुल सकता है? जानें प्रेमानंद जी महाराज की सीख
Premanand Ji Maharaj: आज के समय में किसी भी कार्य चाहे वह धर्म हो या दान-पुण्य को करने के लिए धन की आवश्यकता होती है. लेकिन धन सही या गलत तरीके से कमाया गया है, इसका दान-पुण्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. प्रेमानंद जी महाराज ने गलत कार्य करके कमाए गए धन से किए गए पुण्य कर्मों पर विस्तार से चर्चा की है और उनके परिणामों के बारे में बताया है.
Premanand Ji Maharaj: हिंदू धर्म में दान-धर्म को अत्यंत महत्व दिया जाता है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति जरूरतमंदों को दान देता है या उन्हें भोजन कराता है, उसके पापों का नाश होता है. लेकिन प्रश्न यह है कि यदि दान या जरूरतमंदों को भोजन कराने के लिए इस्तेमाल किया गया धन ही बेईमानी से इकट्ठा किया गया हो, तो क्या तब भी उसका शुभ प्रभाव पड़ेगा? या फिर ऐसे दान और भंडारा करने से मिलने वाला पुण्य नष्ट हो जाएगा? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब प्रेमानंद जी महाराज के शब्दों में.
ईमानदारी और बेईमानी की कमाई
दुनिया में धन कमाने के दो तरीके होते हैं. पहला, वह धन जो ईमानदारी से मेहनत करके कमाया जाता है, जिससे किसी को नुकसान न पहुंचे. दूसरा, वह धन जो बेईमानी, छल-कपट और दूसरों को नुकसान पहुंचाकर कमाया गया हो. ईमानदारी और बेईमानी दोनों तरीकों से कमाए गए धन की ऊर्जा और उनका प्रभाव अलग-अलग होता है.
गलत आचरण से कमाए गए धन से मंदिर और भंडारा
प्रेमानंद जी महाराज से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि क्या गलत आचरण से कमाए गए धन से भंडारा कराना और मंदिर बनवाना सही होता है? यदि ऐसा है, तो इन दोनों में से क्या करना उचित है?
नरक में दंड
इस पर प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि मनमाना या गलत आचरण पाप कर्म होता है. ऐसी कमाई से भंडारा कराना, मंदिर बनवाना और पंडितों को दान देना भी पाप का कारण बनता है. ऐसे पापों के लिए नरक में दंड भोगना पड़ता है.
पाप का भागी
उनका कहना है कि गलत कार्य करके पहले व्यक्ति स्वयं पाप करता है और फिर उसी धन को किसी और को देकर उसे भी पाप का भागी बना देता है, जो कि और भी बड़ा पाप है. इसलिए इस प्रकार से धन कमाना और उसका उपयोग करना उचित नहीं है.
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