Happy Lohri 2022: सुंदर मुंदरिये…हो गीत गाने और लोहड़ी के दिन दुल्ला भट्‌टी की कहानी सुनने की है परंपरा

Happy Lohri 2022: लोहड़ी के त्योहार पर पवित्र अग्नि की पूजा करने की परंपरा है. नाचते-गाते लोग अग्नि में जल, तिल चढ़ाते हैं. लाहेड़ी 13 जनवरी को है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2022 5:06 PM

Lohri 2022 : लोहड़ी एक लोकप्रिय लोक उत्सव है जो मुख्य रूप से पंजाब से जुड़ा है. यह पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाते हैं. लोहड़ी पर्व में आग का अलाव जलाया जाता है और इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी, मूंगफली चढ़ाया जाता है. लोहड़ी त्योहार के महत्व और किंवदंतियां कई हैं. साल 2022 में लोहड़ी पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा.

अग्नि की पूजा करने की है परंपरा

लोहड़ी की संध्या पर लकड़ियां एकत्रित करके जलायी जाती हैं और तिलों से अग्नि का पूजन किया जाता है. इस त्योहार के लिए बच्चे और युवा घर–घर जाकर लकड़ियां एकत्र करते हैं. लोहड़ी के लिए लकड़ियां एकत्र करने का ढंग भी बड़ा ही रोचक है. इसमें बच्चों-युवाओं की टोली लोहड़ी गाते हुए घर–घर से लकड़ियां मांग कर इक्ट्‌ठा करती है. इस दौरान टोली जो गीत गाती है वह बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है.

लोहड़ी के पारंपरिक गीत

सुंदर मुंदरिये ! ………………हो
तेरा कौन बेचारा, ……………..हो
दुल्ला भट्टी वाला, ……………हो
दुल्ले घी व्याही, ………………हो
सेर शक्कर आई, ……………..हो
कुड़ी दे बाझे पाई, ……………..हो
कुड़ी दा लाल पटारा, ……………हो

13 जनवरी को मनाया जाएगा लोहड़ी का उत्सव

लोहड़ी पर्व मकर संक्रांति से पहले की रात को मनाया जाता है, जिसे माघी के नाम से भी जानते हैं. चंद्र सौर विक्रमी कैलेंडर के सौर भाग के अनुसार और आमतौर पर हर साल 13 जनवरी को ही लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है. इस साल यानी 2022 में भी लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाएगा. लोहड़ी के पर्व को लेकर मान्यता है कि यह त्योहार शीतकालीन संक्रांति के गुजरने का प्रतीक है. लोहड़ी सर्दियों के अंत का प्रतीक भी माना गया है.

लोहड़ी पर सुनाई जाती है दुल्ला भट्टी की ये कथा

लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की प्रसिद्ध कथा सुनने-सुनाने की परंपरा प्रचलित है. कहानी के अनुसार दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था. उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था. उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को ग़ुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था. इस रिवाज को दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत रोकने में कामयाब रहे. उन्होंने लड़कियों को न केवल मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लड़कों से करवाई और उनके शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई थी.

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