Durga Chalisa Lyrics: नवरात्रि में रोजाना कर लें इस स्तुति का पाठ, कर्ज, गरीबी और दुश्मनों मिलेगी मुक्ति  

Durga Chalisa Lyrics: शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 यानि आज से शुरू हो चुकी है. इस पावन अवसर पर भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा और दुर्गा चालीसा पाठ कर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, मान्यता है की इसके पाठ से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं.

By JayshreeAnand | September 22, 2025 10:08 AM

Durga Chalisa Lyrics: हिंदू धर्म में मां दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना गया है, इसलिए उन्हें आदि शक्ति भी कहा जाता है. देवी के नौ स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में बड़े श्रद्धाभाव से की जाती है. साल में चार बार आने वाले नवरात्रि में भक्त व्रत रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 यानी आज से शुरू हो गई है. मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान पूजन और दुर्गा चालीसा के पाठ से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

दुर्गा चालीसा पढ़ने के लाभ

दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में अनेक सकारात्मक बदलाव आते हैं. मां दुर्गा की कृपा से परेशानियां दूर होती हैं और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है. यह कर्ज़, गरीबी और दुश्मनों से मुक्ति दिलाने में मदद करता है. रोजाना पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है, चिंता और निराशा कम होती है, मनोबल बढ़ता है और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है. इसके अलावा व्यक्ति का मान-सम्मान और जीवन में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है.

दुर्गा चालीसा लिरिक्स (Durga Chalisa Lyrics)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

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