Aadhyatmik Margadarshan: आपका जीवन ही आपके लिए सबसे उत्कृष्ट उपहार है: स्वामी शिवानंद सरस्वती

Aadhyatmik Margadarshan: आपका जीवन ही आपके लिए सबसे उत्कृष्ट उपहार है. जीवन का वास्तविक मूल्य पहचान कर इसके हर पल का सदुपयोग कीजिए. सफलता उन्हीं के कदम चूमती है, जो हिम्मत और साहस के साथ अपने संकल्पों को सिद्ध करते हैं. अपने जीवन को आनंद की एक अंतहीन धारा बन जाने दीजिए. सत्य में आनंद, तप में हर्ष और करुणा में आह्लाद का अनुभव कीजिए.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2020 10:31 AM

Aadhyatmik Margadarshan: आपका जीवन ही आपके लिए सबसे उत्कृष्ट उपहार है. जीवन का वास्तविक मूल्य पहचान कर इसके हर पल का सदुपयोग कीजिए. सफलता उन्हीं के कदम चूमती है, जो हिम्मत और साहस के साथ अपने संकल्पों को सिद्ध करते हैं. अपने जीवन को आनंद की एक अंतहीन धारा बन जाने दीजिए. सत्य में आनंद, तप में हर्ष और करुणा में आह्लाद का अनुभव कीजिए. अपने जीवन को सरल, श्रमपूर्ण और अनुशासित बनाइए. हर पल को जप, ध्यान, सेवा और प्रार्थना में लगाइए. हर दिन को अपना अंतिम मान कर जीएं. बीते हुए कल को एक सपना समझकर भूल जाइए और आनेवाले कल के बारे में मत सोचिए. जीवन के उद्देश्य को अच्छी तरह समझकर इस पथ पर अग्रसर होइए.

खिलते हुए फूलों और हरी-हरी दूब के साथ मुस्कुराइए. पक्षियों और तितलियों के संग खेलिए. सतरंगी इंद्रधनुष, लहराती पवन, चमकते सूरज और सितारों के संग बातें कीजिए. अपने पड़ोसियों, पेड़-पौधों, फूलों, गाय, बिल्ली-कुत्तों के संग दोस्ती बढ़ाइए. तब ही आपके जीवन में समृद्धि, व्यापकता और परिपूर्णता आयेगी. आपको न तो कोई कमी होगी और न असंतोष. जीवन में पूर्ण एकता का अनुभव होगा. यही मानव जीवन का वास्तविक प्रयोजन है. यही दिव्य जीवन है.

आध्यात्मिक मार्गदर्शन

यदि आप देश की, समाज की अथवा गरीब, बीमार व्यक्तियों की थोड़ी भी सेवा करेंगे, तो इससे आपको विशेष लाभ अवश्य होगा. इससे आपका हृदय शुद्ध होगा तथा आपका अंत:करण आत्मज्ञान को प्राप्त करने एवं ग्रहण करने में समर्थ बनेगा. इन भले कर्मों के संस्कार आपके हृदय में गहरे बन जायेंगे. इन संस्कारों की शक्ति आपको पुन: भले कार्यों की ओर प्रवृत्त करेगी. सहानुभूति, प्रेम, राष्ट्रभक्ति तथा सेवा भावना का विकास होगा.

जीवन के प्रत्येक क्षण को जीवन के आदर्श तथा लक्ष्य के लिए बिताइए तभी आप निष्काम सेवा के वास्तविक महत्व को समझ सकेंगे. वैसा ही कीजिए, जैसा आप दूसरों से चाहते हैं. कारण कार्य में निहित है तथा कार्य कारण में. यह नियम अमोद्य तथा अकाट्य है. प्रत्येक क्रिया की आपके अंदर आवश्यक प्रतिक्रिया होगी.

यदि आप किसी दूसरे व्यक्ति की भलाई कर रहे हैं, तो वस्तुत: आप अपनी ही भलाई कर रहे हैं, क्योंकि आत्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है. जिंदगी छोटी है. समय क्षणभंगुर है. स्वयं को जानो. हृदय की पवित्रता ईश्वर का प्रवेश द्वार है. महत्वाकांक्षा त्यागो और ध्यान करो. और अच्छा बनो, अच्छा करो. दयालु रहो. उदार बनो. अपने आप से पूछो कि आप कौन हो.

News posted by : Radheshyam kushwaha

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