अहिंसा की शक्ति

इतिहास साक्षी है कि इस धरती पर जितने घृणा के बीज बोये गये, उतने प्रेम के बीज नहीं बोये गये. इसके माध्यम से हम मनुष्य मनुष्य के बीच इतना सशक्त वातावरण बनायें कि उसमें भ्रष्टाचार, नशाखोरी, घृणा, नफरत एवं सांप्रदायिक विद्वेष को पनपने का मौका ही न मिले. अहिंसा को एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 19, 2014 8:31 AM

इतिहास साक्षी है कि इस धरती पर जितने घृणा के बीज बोये गये, उतने प्रेम के बीज नहीं बोये गये. इसके माध्यम से हम मनुष्य मनुष्य के बीच इतना सशक्त वातावरण बनायें कि उसमें भ्रष्टाचार, नशाखोरी, घृणा, नफरत एवं सांप्रदायिक विद्वेष को पनपने का मौका ही न मिले.

अहिंसा को एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. यह अस्त्र संहारक नहीं होगा, मानवजाति के लिए बहुत कल्याणकारी होगा. अहिंसा में इतनी शक्ति है कि सांप्रदायिक हिंसा में जकड़े हिंसक लोग भी अहिंसक आभा के पास पहुंच जायें, तो उनका हृदय परिवर्तन निश्चित है, पर इस शक्ति का प्रयोग करने हेतु बलिदान की भावना एवं अभय की साधना जरूरी है. अहिंसा में सांप्रदायिकता नहीं, ईष्र्या नहीं, द्वेष नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक व्यापकता है, जो संकीर्णता को दूर कर एक विशाल सार्वजनिन भावना को लिये हुए है.

विश्व के समस्त धर्मो, धर्माचार्यो, धर्मग्रंथों, महापुरुषों और विचारकों ने अहिंसा को सबके लिए कल्याणकारी माना है. मानवीय-मूल्यों में अहिंसा सर्वोपरि है. अहिंसा की स्थापना के लिए जरूरी है कि अनेकता के ऊपर एकता की प्रतिष्ठा हो. तभी हम धर्म और राष्ट्र की सार्वभौमिकता को बचा सकेंगे. धर्म के बचने पर ही राष्ट्र बचेगा, राष्ट्र के बचने पर ही समाज बचेगा और समाज के बचने पर ही व्यक्ति बचेगा. अहिंसा सर्वोत्तम मानवीय मूल्य तो है ही, यह समस्त मानवीय मूल्यों का मूलाधार भी है. अहिंसा के नहीं होने से दूसरे सारे मूल्य भी मूल्यहीन होते चले जाते हैं.

आचार्य लोकेशमुनि

Next Article

Exit mobile version