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पर्यटकों को नहीं हो पाता है दीदार, केवल कैमरे में क्यों दिखते हैं पलामू टाइगर रिजर्व के बाघ?

पलामू टाइगर रिजर्व में बाघ है या नहीं? ये सवाल इसलिए खड़े हो रहे है क्योंकि पर्यटकों को इनका दीदार नहीं होता है. इसी सवाल के साथ PTR के फील्ड डायरेक्टर कुमार आशुतोष से खास बातचीत की गई और पीटीआर से जुड़े कई अहम मुद्दों पर चर्चा की. इसमें टाइगर मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल, बाघों की असली संख्या, उनके विलुप्त होने के कारण समेत कई विषय शामिल है.

Palamu Tiger Reserve : क्या झारखंड में टाइगर हैं? जवाब अगर हां है तो आम लोगों या पर्यटकों को क्यों नहीं दिखते हैं? केवल पलामू टाइगर रिजर्व के कैमरों में ही क्यों दिखते हैं? यह सवाल कई बार, कई लोगों के मुंह से आपने सुना होगा या कहीं पढ़ा होगा. गांव वालों और पर्यटकों को ये बाघ क्यों नहीं दिखते हैं? ये बाघ आखिर खाते क्या हैं ? क्योंकि, पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में दूसरे जानवरों के बाघों के शिकार होने की पुष्टि तो नहीं होती है. यहां तक कि पीटीआर के अंदर रहने वाले ग्रामीण भी कभी अपने मवेशियों के मारे जाने की शिकायत शायद ही करते हैं. बेतला जाकर लौटने वाला हर पर्यटक भी यही कहता मिलता है कि उसे बाघ दिखाई नहीं दिया. आपके ऐसे ही कई सवालों के जवाब खोजते हुए प्रभात खबर ने पलामू टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक कुमार आशुतोष से बातचीत की. कुमार आशुतोष ने अपनी सफाई में हमें टाइगर मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल, बाघों की असली संख्या, उनके विलुप्त होने के कारण समेत कई विषयों की जानकारी दी.

Palamu Tiger Reserve : वनरक्षियों का दावा, कई बार सामने भी दिखे बाघ

फील्ड निदेशक कुमार आशुतोष ने कहा कि कई बार वनरक्षी बताते हैं कि उन्हें सामने से भी बाघ दिखे हैं. आमतौर पर पर्यटक घने जंगलों में घूमने नहीं जाते हैं. बेतला नेशनल पार्क में अन्य जीव-जंतु दिख जाते हैं, लेकिन बाघ के बूढ़ा पहाड़ में दिखने की संभावना ज्यादा होती है. हालांकि, उन्होंने कहा कि दो से तीन बार पर्यटकों ने ही बाघ देखने की बात बताई है और तस्वीरें भी साझा की हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड हाईकोर्ट के एक जज ने भी पिछले साल कहा था कि उन्हें पीटीआर घूमने के दौरान तेंदुआ दिखा था. बाघ दूसरे जानवरों का शिकार क्यों नहीं करते हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जंगल के अन्य जानवरों का वे शिकार तो करते हैं, लेकिन उसके बाद जो कुछ बच जाता है उसे तेंदुआ, जंगली सूअर खा जाते हैं, इसलिए अवशेष काफी बार नहीं मिल पाता है. इस कारण बाघों ने ही शिकार किया है, इस तरह की पुष्टि मुश्किल हो जाती है.

Tiger In Ptr
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Palamu Tiger Reserve : क्या है टाइगर मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल

भारत के नौ बाघ रिजर्वों में केवल पलामू टाइगर रिजर्व झारखंड में है। 1,130 वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में बेतला नेशनल पार्क और पलामू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी है, पीटीआर के फील्ड निदेशक का दावा है कि पिछले साल चार बाघ देखे गए थे। इनकी तस्वीर पीटीआर की ओर से जारी की गई थी. उसके बाद से यहां टाइगर मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल अपनाया गया है. इसके जरिए बाघों के मूवमेंट पर नजर रखी जाती है और डाटा तैयार कर वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट के टाइगर सेल को भेजा जाता है. इस आधार पर यह तय होता है कि PTR को बाघों के संरक्षण के लिए क्या-क्या बदलाव करने हैं. कुमार आशुतोष ने बताया कि लोकल मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल को और मजबूत किया जा रहा है. आइए जानते है इसमें क्या-क्या होता है.

Tiger Monitoring Protocol
Tiger monitoring protocol
  • बाघों के घूमने के कोर एरिया में कैमरा ट्रैकर लगाना
  • इलाके में फॉरेस्ट गार्ड और ट्रैकर एम स्ट्रिप ऐप की डे और नाइट पेट्रोलिंग
  • हर चीज का डाटा तैयार करना, जो ऑनलाइन डाटाबेस से जुड़ा हो
  • पग मार्क, स्कैट, वीडियो फोटो के रिपोर्ट को एक जगह जमा करना

बाघ दिखने के बाद क्या करते है?

कुमार आशुतोष ने बताया कि बाघों का विचरण रात में अधिक होता है. इसीलिए इंफ्रारेड रे वाले तकनीक का इस्तेमाल भी किया जाता है. उन्होंने बताया कि बेतला कुल 9 गांव से घिरा हुआ है. ऐसे में बाघों के दिन में दिखने की संभावना कम होती है. लेकिन रात में बेतला के पास के 1 किलोमीटर लंबे कॉरीडोर से इनके आने की संभावना बढ़ जाती है.उन्होंने बताया कि जिस क्षेत्र में बाघ दिखने का दावा किया जाता है, वहां हम कैमरा ट्रैकर लगाते है. साथ ही कई अन्य जरूरी काम किए जाते हैं. जितने भी पर्यटक यह दावा करते हैं कि उन्हें बाघ दिखा है, उसका रिकॉर्ड पलामू टाइगर रिजर्व अपने पास रखता है. महीने में एक-दो बार बाघ दिख जा रहे हैं.

Ptr
Tiger monitoring protocol
  • कैमरा ट्रैकर लगाना : बाघ दिखने पर उस क्षेत्र में कैमरा ट्रैकरों की संख्या बढ़ा दी जाती है.
  • पग मार्क से नर-मादा की पहचान: पग मार्क की तलाश की जाती है. पग मार्क से यह पता चल जाता है कि बाघ नर है या मादा. नाखूनों के आधार पर भी नर-मादा में अंतर की पहचान होती है.
  • मल के सैंपल को देहरादून भेजना : अगर क्षेत्र में कैमरा ट्रैकर नहीं लगा हुआ है तो उसके स्कैट के सैम्पल को देहरादून भेजा जाता है और यह अंतर तय किया जाता है कि दिखा जानवर बाघ है या तेंदुआ.

कैसे पता चलता है कि यह बाघ अलग है?

पलामू टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक कुमार आशुतोष ने बताया कि जिस तरह करोड़ों लोगों के हाथों में रेखा होती है, लेकिन सब अलग-अलग होते हैं। वैसे ही बाघों के शरीर की धारियों से यह पता चल जाता है.

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पर्यटकों को नहीं हो पाता है दीदार, केवल कैमरे में क्यों दिखते हैं पलामू टाइगर रिजर्व के बाघ? 7

PTR के अधिकारी ने बताया, दूसरी जगहों से लाए जाएंगे बाघ

कुमार आशुतोष ने बताया कि पिछले साल ट्रैकर के जरिए हमने चार बाघों की पुष्टि की थी और इसी संख्या को असली मान रहे है. ये सभी बाघ नर हैं. किसी भी मादा बाघ के होने की न तो पुष्टि हुई है और न ही कोई शंका जताई गई है. कुमार आशुतोष ने बताया कि हम ट्रांसलोकेशन का भी प्रयास कर रहे है और संभावना है कि जल्द ही दूसरी जगहों से बाघ यहां लाए जाएंगे. मादा बाघों को लाने पर अधिक फोकस है, ताकि उनकी मदद से PTR में बाघों की संख्या जल्दी बढ़ाई जा सके. हालांकि, उन्होंने कहा कि बाघ 400 से 500 किमी तक प्रवास आसानी से कर लेते है और ऐसे में यहां से वे हजारीबाग, गुमला के साथ-साथ छत्तीसगढ़ तक भी जा सकते है.

कहीं जंगल की कटाई से तो कम नहीं हो रहे बाघ

पलामू टाइगर रिजर्व के वन क्षेत्र में बड़े हिस्से की कटाई की बात भी कही जा रही है। यह भी बाघों के विलुप्त होने का कारण बताया जाता है. PTR के फील्ड निदेशक इस बारे में कहते हैं कि आज ग्रासलैंड के लिए 200 हेक्टेयर का खाली एरिया आपको PTR में कहीं नहीं मिलेगा. ऐसे में पेड़ काटने के आरोप निराधार हैं. उन्होंने कहा कि बीते तीन साल से मैं यहां हूं और जिस क्षेत्र में पेड़ कटे है वहां फिर से रोपण किया गया है.

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Aditya kumar
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I adore to the field of mass communication and journalism. From 2021, I have worked exclusively in Digital Media. Along with this, there is also experience of ground work for video section as a Reporter.

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