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Aadhaar Card : बिहार में मतदाता सूची में किए जा रहे संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट में आज सवाल उठे और कोर्ट ने चुनाव आयोग से कई तीखे सवाल पूछे. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपने मतदाता सूची में संशोधन का जो समय चुना है, वह चिंता जनक है. कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज को संशोधन प्रक्रिया के सत्यापन से बाहर रखना बहुत ही चिंताजनक है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि यदि विशेष सूचना रिपोर्ट (SIR) का उद्देश्य नागरिकता सत्यापित करना है, तो यह प्रक्रिया इतनी देर से शुरू क्यों हुई है और इसे चुनाव से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है.
चुनाव आयोग और याचिकाकर्ताओं ने क्या दिए तर्क
चुनाव आयोग की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत संवैधानिक रूप से अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 326 में यह कहा गया है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदाता के रूप में नामांकित किया जा सकता है. इसी वजह से मतदाता सूची को दुरुस्त करने के लिए और सभी योग्य नागरिकों को वोट का अधिकार दिलाने के लिए नागरिकता की पुष्टि हो रही है. चुनाव आयोग ने कहा कि इससे पहले 2003 में यह प्रक्रिया की गई थी.चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होगा. आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को कानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए. हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते.
वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ठीक चुनाव से पहले प्रदेश के 7.9 करोड़ मतदाताओं को यह कहना कि आप अपनी पात्रता को सत्यापित करें, बहुत ही परेशानी खड़ी करने वाला है और यह एक तरह से हजारों वोटर्स को मतदान से रोकने की कोशिश है. याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार कार्ड स्वीकार नहीं किया जाएगा. सिंघवी का दावा है कि यह पूरी तरह से नागरिकता जांच की कवायद है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या की टिप्पणी
बिहार में मतदाता सूची में संशोधन के मामले में जो विवाद शुरू हुआ है, उसपर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि गैर-नागरिकों को मतदाता सूची से बाहर करना केंद्रीय गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है, चुनाव आयोग का नहीं. कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आयोग क्यों इस मसले पर ध्यान दे रहा है, यह उनका काम नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने सूची के सत्यापन के लिए जो समय चुना है, वह सही नहीं है और इससे चिंता बढ़ी है. साथ ही आधार को सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों में शामिल ना करने पर भी कोर्ट ने चिंता जताई.
क्यों शुरू हुआ है विवाद
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को अपडेट करने का काम शुरू किया है, जिसमें नए मतदाताओं के नाम जोड़े जा रहे हैं और वैसे वोटर जो अब नहीं हैं, उनके नाम हटाए जा रहे हैं. इस बार के संशोधन की खास बात यह है कि प्रदेश के सभी मतदाताओं को सत्यापन का फाॅर्म भरना पड़ रहा है. चुनाव आयोग ने इसके लिए एक फाॅर्म सभी मतदाताओं से भरवाना शुरू किया है, जिसमें अपने बारे में कुछ जरूरी जानकारी वोटर्स को देनी है, जैसे नाम, एपिक नंबर आदि है. जो नए मतदाता हैं उन्हें अपने माता-पिता का डिटेल देना होगा. चुनाव आयोग जो जानकारी मांग रहा है, उसमें दो प्रावधान किए गए हैं, जैसे 2003 या उसके बाद पैदा हुए मतदाताओं को अपना जन्मप्रमाण पत्र या माता-पिता के वोटरआईडी का एपिक नंबर देना होगा. जबकि 2003 से पहले पैदा हुए लोगों को कोई दस्तावेज नहीं देना है. आयोग ने सत्यापन के दस्तावेजों में राशन कार्ड और आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी है, जिसकी वजह से विवाद सबसे ज्यादा बढ़ा है. सभी मतदाताओं से सत्यापन का फाॅर्म भरवाने से विपक्ष नाराज है और कह रहा है कि यह गरीब मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश है. यह एक तरह से नागरिकता का सत्यापन हो रहा है.
आधार कार्ड अगर नागरिकता का प्रमाण नहीं तो क्या है?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में आज आधार कार्ड सबसे जरूरी दस्तावेजों में से एक है, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों ने ही यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है. जस्टिस एस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2018) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कहा था कि आधार एक विशिष्ट पहचान पत्र है,लेकिन यह भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं है. सरकार की ओर से भी यह स्पष्ट कहा गया था कि आधार कार्ड को नागरिकता और जन्मतिथि का प्रमाण पत्र नहीं माना जा सकता है. यह सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति का पहचान पत्र है और उसके निवास स्थान की जानकारी देता है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है. यह सिर्फ एक व्यक्ति का पहचान पत्र है. उन्होंने यह भी बताया कि आधार कार्ड विदेशी नागरिकों का भी बनता है. नेपाल और भूटान के वैसे नागरिक जो भारत में नौकरी कर रहे हैं उनका आधार कार्ड बनता है और उसकी अवधि 10 साल तक की होती है, उसके बाद यह स्वत: निरस्त हो जाता है. अन्य देश के नागरिकों का जो आधार कार्ड बनता है उसमें उसके वीजा की अवधि के समाप्त होते ही आधार कार्ड भी समाप्त हो जात है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अनुसार अगर कोई विदेशी नागरिक 182 दिन तक भारत में लगातार रहता है, तो उसका आधार कार्ड बन सकता है, लेकिन यह सिर्फ पहचान पत्र है उसकी नागरिकता का प्रमाण नहीं.
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