समझौतों की समीक्षा

निर्बाध आयात ने हमारे घरेलू उद्योग-धंधों पर नकारात्मक असर तो डाला ही है, उत्पादन के कई क्षेत्रों में हमारी संभावनाओं को भी कुंद कर दिया है.

By संपादकीय | July 28, 2020 12:26 AM

द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते वैश्वीकरण की प्रक्रिया के आधारभूत तत्व हैं. विश्व व्यापार संगठन तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समय-समय पर निर्धारित नियमों व निर्देशों से यह समझौते संचालित होते हैं. कुछ समय पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक महत्वपूर्ण बयान में कहा था कि अनेक ऐसे मुक्त व्यापार समझौते भारत ने किये हैं, जिनसे हमारा नुकसान हुआ है. आर्थिक वृद्धि के बावजूद हमारा आयात भी बढ़ा है और घाटा भी. चीन समेत अनेक देशों से निर्बाध आयात ने हमारे घरेलू उद्योग-धंधों पर नकारात्मक असर तो डाला ही है, उत्पादन के कई क्षेत्रों में हमारी संभावनाओं को भी कुंद कर दिया है.

इसका एक नतीजा यह हुआ है कि हम अनेक अहम उद्योगों और उपभोक्ता वस्तुओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हो गये हैं. इस स्थिति से निपटने तथा देश के भीतर उद्योग को बढ़ावा देने के इरादे से कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल हुई थी. हालांकि इस कार्यक्रम तथा अन्य कई उपायों से उत्पादन और निर्यात में प्रगति हुई है, किंतु व्यापार समझौतों के बहाल रहने के कारण आयात भी चलता रहा है.

कुछ देशों, विशेष रूप से चीन, से आनेवाले उत्पाद सरकारी सहायता और छूट के कारण सस्ते होते हैं, सो उनकी मांग भी बरकरार रहती है. सस्ते सामान मुहैया कराकर बाजार पर काबिज होने की उनकी रणनीति भी होती है. आज जब कोरोना संकट की वजह से वैश्विक राजनीति और आर्थिकी के समीकरणों में नये बदलाव आ रहे हैं, तो व्यापार समझौतों की समीक्षा भी जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने तथा स्थानीय स्तर पर उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ावा देने का लक्ष्य देश के सामने रखा है.

यदि ऐसी वस्तुओं, जिन्हें देश में ही तैयार किया जा सकता है, की बड़े पैमाने पर आमद बनी रही, तो आत्मनिर्भर हो पाना बेहद मुश्किल होगा. देशी उद्योगों के बढ़ने का सीधा संबंध रोजगार, आमदनी और मांग में बढ़ोतरी से है, जो कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए भी जरूरी शर्त हैं. कोरोना वायरस का मसला हो या अपने पड़ोस में आक्रामक हरकत करने की हो, या फिर सही-गलत निवेशों से अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का मामला हो, चीन से दुनिया अभी बहुत नाराज है. भारत तो उसकी सामरिक और आर्थिक धौंस का सामना ही कर रहा है.

मुक्त व्यापार समझौतों के कड़वे अनुभवों के कारण ही भारत ने पिछले साल दिसंबर में चीन समेत 15 देशों के साथ व्यापक व्यापारिक संधि से अपने को अलग कर लिया था. भारत कुछ समय से अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ आयात और निर्यात के साथ निवेश और तकनीक में सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. वे देश भी भारत की संसाधन संपन्नता तथा बाजार के बड़े आकार को देखते हुए सहभागिता को विस्तार देने के लिए तत्पर हैं. व्यापार व वित्तीय समझौतों में नयापन समय की जरूरत है.

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