साइबर सेंधमारी

गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि जब बेहद प्रभावशाली लोगों और कंपनियों की हैकिंग हो सकती है तथा सरकारी फाइलों की चोरी हो सकती है, तो आम लोगों का डेटा कैसे सुरक्षित रह सकता है.

By संपादकीय | July 17, 2020 1:31 AM

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, बिल गेट्स व एलन मस्क जैसे उद्योगपतियों तथा एप्पल और उबर जैसी कंपनियों के ट्विटर हैंडलों की हैकिंग ने एक बार फिर यह साबित किया है कि डिजिटल सुरक्षा को सुनिश्चित करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. हैकरों ने इन हैंडलों का इस्तेमाल बिटक्वाइन से जुड़े फर्जीवाड़े के लिए कर यह भी जता दिया है कि डिजिटल मुद्रा व लेन-देन भी सुरक्षित नहीं है.

सूचना तकनीक और डिजिटल डिवाइस मानव सभ्यता के अभिन्न अंग बन चुके हैं. हमारे जीवन का शायद ही कोई पक्ष ऐसा है, जो इंटरनेट, स्मार्ट फोन, कंप्यूटरों आदि के वैश्विक संजाल से परे हो. ऐसे में न केवल अपराधी साइबर स्पेस में सेंध मारते रहते हैं, बल्कि आतंकी संगठनों के लिए भी यह एक मुफीद जगह बन चुका है तथा देशों की आपसी दुश्मनी का एक अहम मोर्चा यहां भी खुल गया है.

हालांकि डिजिटल सेक्टर में सक्रिय कंपनियों और सॉफ्टवेयर के माहिरों द्वारा इंटरनेट व कंप्यूटर सिस्टम को सुरक्षित करने के लगातार उपाय किये जा रहे हैं, पर हैकिंग की बढ़ती संख्या और बड़े होते दायरे को देखें, तो साफ दिखता है कि हैकर कुछ कदम आगे ही चल रहे हैं. पिछले कुछ सालों में ही करोड़ों लोग ठगी और फर्जीवाड़े के शिकार हो चुके हैं और अरबों डॉलर चुराये जा चुके हैं.

संवेदनशील डेटा व गोपनीय दस्तावेजों के बारे में तो आकलन कर पाना भी संभव नहीं है. कुछ मामलों में तो यह भी पाया गया है कि इंटरनेट पर सेवा मुहैया करा रहीं या सोशल मीडिया मंच चला रही कंपनियों द्वारा अनजाने में या जान-बूझकर की गयी लापरवाही का फायदा भी हैकरों या डेटा चोरों ने उठाया है. आलम यह है कि बैंक खातों, डेबिट व क्रेडिट कार्डों, ऑनलाइन लेन-देन के एप आदि से पैसों की चोरी तो मामूली बात हो चुकी है.

अब तो ऐसे फर्जीवाड़े चर्चा में भी नहीं आते. सरकारी विभागों और कंपनियों की वेबसाइट को हैक करना भी आम चलन बन गया है. समुचित साइबर कानूनों का अभाव तथा पुलिस-प्रशासन की चूक से भी हैकरों का मनोबल बढ़ता है. एक बड़ी चुनौती तो यह भी है कि हैकरों के कई गिरोह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिखरे हैं या किसी अन्य देश से अपनी करतूतों को अंजाम देते हैं. ऐसे में किसी दूसरे देश के लिए कोई कार्रवाई कर पाना आसान नहीं होता.

डिजिटल तंत्र में सबूत जुटाना भी टेढ़ी खीर है. अब तो ऐसे मामले भी सामने आने लगे हैं, जिनमें हैकर देश के भीतर या बाहर किसी दूसरे के कंप्यूटर या डिजिटल पहचान का इस्तेमाल कर अपराध करते हैं. इस पहलू पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि जब बेहद प्रभावशाली लोगों और अरबों-खरबों के टर्नओवर वाली कंपनियों के सोशल मीडिया खातों को बड़े पैमाने पर हैक किया जा सकता है तथा सरकारी फाइलों की चोरी हो सकती है, तो आम लोगों का डेटा कैसे सुरक्षित रह सकता है.

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