फतवा या जागीरदारी

असम की एक बेटी नाहिद आफरीं जब अपनी सुरीली आवाज से दुनिया को अपनी ओर खींचती है और 15 मार्च को जब असम के लंका में उसका म्यूजिकल नाइट होना होता है, तो उसपर 46 उलेमाओं का फतवा जारी होता है, जबकि नाहिद इस आवाज को खुदा का तोहफा करार देती है. क्या यह उलेमाओं […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 23, 2017 6:17 AM

असम की एक बेटी नाहिद आफरीं जब अपनी सुरीली आवाज से दुनिया को अपनी ओर खींचती है और 15 मार्च को जब असम के लंका में उसका म्यूजिकल नाइट होना होता है, तो उसपर 46 उलेमाओं का फतवा जारी होता है, जबकि नाहिद इस आवाज को खुदा का तोहफा करार देती है.

क्या यह उलेमाओं की जागीरदारी है कि बेटियों को अपने फतवों की जंजीरों में जकड़े रखें. नाहिद फतवों से बेखौफ होकर उन गायकों को अपना रहबर मानती हैं. मौलवी जी फतवा उन लोगों पर लगाओ, जो देश की माटी में रहकर भी आतंकवाद से मुहब्बत करते हैं. नाहिद बेटी तो देश का नाम रोशन कर रही है.

शादाब इब्राहिमी, रांची

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