आंतरिक और बाहरी चुनौतियां

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री इतिहासकार आर्नोल्ड टायनबी ने अध्ययन किया है कि सभ्यताएं ऐसी चुनौतियों का सामना करने में किन परिस्थितियों में सफल या असफल होती हैं. उन्होंने पाया कि जब शासक वर्ग जनता को अपने साथ जोड़ लेता है, तो वह ऐसी चुनौतियों का सामना कर लेता है. जब शासक वर्ग जनता को अपने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 7, 2017 6:42 AM
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
इतिहासकार आर्नोल्ड टायनबी ने अध्ययन किया है कि सभ्यताएं ऐसी चुनौतियों का सामना करने में किन परिस्थितियों में सफल या असफल होती हैं. उन्होंने पाया कि जब शासक वर्ग जनता को अपने साथ जोड़ लेता है, तो वह ऐसी चुनौतियों का सामना कर लेता है. जब शासक वर्ग जनता को अपने साथ नहीं जोड़ पाता है, तो वह फिसल जाता है. जनता अपने निष्ठुर शासक की क्रूरता से छुटकारा पाने के लिए आक्रमणकारियों का साथ देती है और देश के शासक की पराजय होती है.
हम संभवतया इसीलिए फेल हुए. राजस्थान के डुंगरपुर के आदिवासियों ने एक दृष्टांत बताया. एक आदिवासी घी का मटका लेकर अपनी बेटी के घर जा रहा था. रास्ते में पानी बरसा तो उसने जंगल से एक पत्ता तोड़ कर मटके के मुंह पर रख दिया.
फाॅरेस्ट गार्ड ने मामले को राजा के समक्ष रखा. राजा ने आदेश दिया कि पत्ते की चोरी के लिए आदिवासी के हाथ काट दिये जायें. आदिवासी को भनक लगी तो वह अजमेर के ब्रिटिश नियंत्रण वाले क्षेत्र को भाग गया और अपने प्राणों की रक्षा की. ऐसे अत्याचार से ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के आम आदमी को पनाह दी थी, इसलिए देश की जनता ने ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया था. फलस्वरूप भारत गुलाम हो गया.
टायनबी कहते हैं कि अपने राज्य को बनाये रखने के लिए आंतरिक जनता के साथ-साथ बाहरी जनता का भी समर्थन हासिल करना जरूरी होता है. टायनबी की मानें, तो केवल अंदरूनी जनता का समर्थन हासिल करने से बात नहीं बनती है. भारत इस समय विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है. वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार और कालेधन पर नियंत्रण किया है. सरकार द्वारा राफेल, बुलेट ट्रेन एवं फ्रेट कारीडोर जैसे तमाम भविष्योन्मुखी कदम उठाये जा रहे हैं.
लेकिन, हमारे सामने आंतरिक व बाहरी दोनों तरह की चुनौतियां खड़ी हैं. दलित एवं मुसलमान की बेरुखी, आतंकवाद और कश्मीर आंतरिक चुनौतियां हैं, जबकि चीन से सस्ते माल का आयात एवं साइबर अटैक बाहरी चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों का सामना हम तभी कर पायेंगे, जब हमारे नेतृत्व को आंतरिक और बाहरी जनता का समर्थन हासिल होगा.
इस दृष्टि से देखें, तो हमारी परिस्थिति कठिन है. देश में 16 प्रतिशत आबादी दलितों की है. हाल में गुजरात में कुछ दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया है, जो दर्शाता है कि इस समुदाय का समर्थन हमारे नेतृत्व को प्राप्त नहीं है. देश में 18 प्रतिशत मुसलमान हैं. हाल में ट्रेन में मुंबई के एक हाजी साहब से भेंट हो गयी. आपने वाजपेई के कार्यकाल में भाजपा के टिकट पर एमएलए का चुनाव लड़ा था. आज वे भाजपा को छड़ी से भी छूने को तैयार नहीं हैं. तात्पर्य यह कि मुसलमान समुदाय का हमारे नेतृत्व को समर्थन उपलब्ध नहीं है. कश्मीर की जनता हमारे साथ मन से नहीं जुड़ी हुई है.
देश के आम आदमी के रोजगार पर मेक इन इंडिया का प्रहार हो रहा है. मध्यम वर्ग के अतिरिक्त शेष सभी जनता नेतृत्व से विमुख दिखती है. नोटबंदी को सरकार गरीबोन्मुख कदम के रूप में दर्शाने में सफल हुई है, परंतु इसके मूल में गरीब-विरोधी चरित्र को छुपा कर नहीं रखा जा सकेगा. बाहरी जनता भी विमुख है.
पाकिस्तान के युवा भारत में घुसपैठ करके अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार हैं. इनके सामने हमारे युवा पाकिस्तान में घुस कर अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार नहीं हैं. हिंदुओं की अपेक्षा है कि सेना के वेतन भोगी कर्मी यह कार्य करें. नेपाल के गैर-मधेसी हमारे विरुद्ध हैं. बांग्लादेश की जनता इसलाम के नाम पर हमारे विरुद्ध है. चीन, श्रीलंका तथा म्यांमार की जनता का भी भारत के प्रति स्नेह कम हुआ है. बलूचों का हमें समर्थन मिल सकता है, परंतु इसकी गहराई परखने की जरूरत है.
इस समय भारत को आगे बढ़ाने की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि हम अपनी आंतरिक और बाहरी जनता का समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं. टायनबी की मानें, तो किसी नेतृत्व को यह समर्थन तब तक नहीं मिलता है, जब तक वह भविष्य की ओर देखने के स्थान पर अपने बीते ऐश्वर्य पर फोकस करता है. कुछ वर्ष पूर्व ऋषिकेश में साधुओं की संगोष्ठी में मैंने मंचासीन महामंडलेश्वरजी से पूछा कि क्या कारण है कि पिछले हजार वर्षों में हिंदू धर्म सिकुड़ता जा रहा है.
जवाब में उन्होंने मुझसे पूछा जनेउ धारण करते हो? चोटी रखते हो? दोनों प्रश्नों पर मेरे नकारात्मक जवाब देने पर उन्होंने कहा, ‘मैं आपसे चर्चा नहीं करना चाहता हूं.’ महामंडलेश्वरजी जनेउ और चोटी के बीते ऐश्वर्य पर टिके हुए थे. हिंदू धर्म के सिकुड़ते आकार, गरीबी, सस्ते चीनी माल का आयात तथा साइबर अटैक जैसे मुद्दे उनके लिए गौण थे. यही पिछले हजार वर्षों में भारत के ह्रास का कारण है. अपने पुराने ऐश्वर्य के महिमामंडन, अपनी आंतरिक जनता का दमन और बाहरी जनता को जोड़ने में असफलता के कारण हम गुलाम हुए थे.
हमारे सामने चुनौती रोम जेसे हस्र से बचने की है. मात्र मध्यम वर्ग के प्रसन्न होने से हमारी सभ्यता सफल नहीं होगी, जैसा कि रोम के नागरिकों के प्रसन्न होने से वह सफल नहीं हुई थी. दलित, मुसलमान, गरीब और पाक नागरिकों को जोड़ेंगे, तभी हम अपने वैश्विक गौरव को हासिल कर पायेंगे.

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