हवा में घुलता जहर

शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण अब एक चिंताजनक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुका है. दूषित वायु से जनित रोगों से हर साल औसतन 12 लाख भारतीय असमय मौत का शिकार हो रहे हैं. देश के ज्यादातर हिस्सों में रासायनिक और जैविक तत्वों की वातावरण में मात्रा बढ़ती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्था ग्रीनपीस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 13, 2017 12:59 AM
शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण अब एक चिंताजनक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुका है. दूषित वायु से जनित रोगों से हर साल औसतन 12 लाख भारतीय असमय मौत का शिकार हो रहे हैं. देश के ज्यादातर हिस्सों में रासायनिक और जैविक तत्वों की वातावरण में मात्रा बढ़ती जा रही है.
अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्था ग्रीनपीस ने देश के 168 शहरों में हुए सर्वे में पाया है कि दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, इलाहाबाद, बरेली, फरीदाबाद, अलवर, झरिया, रांची, कुसुंदा, कानपुर और पटना में खतरनाक प्रदूषक पीएम-10 का स्तर 258 ग्राम प्रति घन मीटर से 200 ग्राम प्रति घन मीटर के बीच है. हवा में पीएम कणों की सघनता 154 शहरों में राष्ट्रीय मानक से अधिक रही. दिल्ली में पीएम-10 की सलाना औसतन सघनता 268 ग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गयी, जो निर्धारित मानक से चार गुना अधिक है. पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) यानी अतिसूक्ष्म कण वातावरण के लिए गंभीर चुनौती हैं.
पिछले साल भारत सरकार ने वायु प्रदूषकों के स्तर की निगरानी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) लांच किया था. पीएम-2.5 और पीएम-10 के अलावा शहरों की हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन, कॉर्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया और लेड की मात्रा खतरनाक तरीके से बढ़ रही है. इससे फेफड़ों का संक्रमण, हृदय की बीमारी, आंखों और गले की बीमारियों का होना स्वाभाविक है. वाहनों की बढ़ती संख्या, भवनों के निर्माण, ईंधन जलाने से और उद्योगों से होनेवाले प्रदूषण खतरनाक हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रोजाना निकलनेवाले 10 हजार टन कचरा और इसे जलाने से होनेवाले प्रदूषण के अलावा सड़कों पर दौड़ रहे 74 लाख से अधिक वाहन दिल्ली को प्रदूषण का ‘हॉट स्पॉट’ बना रहे हैं.
नागरिकों को जीवनदायी स्वच्छ हवा मिलती रहे, इसके लिए जरूरी है कि सड़कों पर वाहनों की संख्या नियंत्रित कर सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा दिया जाये. उद्योगों, निर्माण कार्यों, आतिशबाजी आदि से होनेवाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए फौरी तौर पर उपाय करना जरूरी हो गया है. इस दिशा में सरकारों को सतत विकास की दीर्घकालिक योजनाओं पर गंभीरता से काम करना चाहिए. इसके साथ ही भविष्य के लिए शहरी योजनाकारों, समाजशास्त्रियों, पर्यावरणविदों, नागरिक समूहों, चिकित्सकों, शिक्षकों और जागरूक नागरिकों को आगे आना चाहिए.

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